Thursday, December 30, 2021

दुर्बलता (मीठे की)

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 केवल चाहने भर से 

नाप सकती हूँ देश की चौहद्दी 

लाँघ सकती हूँ समन्दर, पहाड़ और नदी

पड़ ही जाए अगर ज़रुरत  

कर सकती हूँ जूता सिलाई से चण्डी पाठ तक 

जनम सकती हूँ कोई महापुरुष खाकर परमान्न 

लिख सकती हूँ व्यर्थ प्रेम की सबसे सुन्दर कविता

उगा सकती हूँ नीला फूल दुर्गम दरिया के ठीक मध्य  

केवल चाहने भर से 

कर सकती हूँ और भी बहुत कुछ 

पर वर्षों से चाह-चाहकर भी 

नहीं मिटा पाती तुम्हारी चाहत !

उपचार करे मेरी इस अवस्था का  

वह कविराज नहीं पृथ्वी पर 

न ऐसी औषधि की है उपलब्धता   

और ईश्वर ?

जो स्वयं खा रहा है छप्पन भोग

भला कैसे करेगा दूर मेरी यह दुर्बलता ! 


Saturday, September 18, 2021

महादेव साहा की कविताएँ

 १. अंतराल 


मनुष्यों की भीड़ में मनुष्य छुपे रहते हैं 

पेड़ों की ओट में पेड़,

आकाश छुपता है छोटी नदी के मोड़ पर 

जल की गहराईयों में मछलियाँ;

पत्तों की ओट में छुपते हैं जंगली फूल 

फूलों की ओट में काँटा,

मेघों की ओट में चाँद की हलचल 

सागर में ज्वार-भाटा |

आँखों की ओट में स्वप्न छुपे रहते हैं 

तुम्हारी ओट में मैं,

दिन के वक्ष में रात्रि को रखते हैं 

इसप्रकार दिवसयामिनी |  


२. अकेले हो जाओ 


अकेले हो जाओ, निसंग पेड़ की तरह

ठीक दुखी असहाय कैदी की तरह

निर्जन नदी की तरह,

तुम और अधिक विच्छिन्न हो जाओ

स्वाधीन स्वतंत्र हो जाओ

हिस्सों में बँटे यूरोप के मानचित्र की तरह;

अकेले हो जाओ सभी संग-साथ से, उन्माद से

आकाश के आखिरी उदास पक्षी की तरह,

निर्जन निस्तब्ध मौन पहाड़ की तरह

अकेले हो जाओ |

इतनी दूर जाओ कि किसी की पुकार 

नहीं पहुँचे वहाँ 

या तुम्हारी पुकार कोई सुन न पाये कभी,

उस जनशून्य, निःशब्द द्वीप की तरह,

अपनी परछाई की तरह, पदचिन्हों की तरह,

शुन्यता की तरह अकेले हो जाओ |

अकेले हो जाओ इस दीर्घश्वास की तरह 

अकेले हो जाओ | 


३. एक करोड़ वर्ष हुए तुम्हें नहीं देखा


एक करोड़ वर्ष हुए तुम्हें नहीं देखा

एक बार तुम्हें देख सकूँगा 

यह आश्वासन मिले तो-

विद्यासागर की तरह मैं भी तैरकर पार करूँगा भरा दामोदर

कुछेक हजार बार पार करूँगा इंग्लिश चैनल;

तुम्हें बस एक बार देख सकूँगा इतना भर भरोसा मिले तो  

अनायास फाँद जाऊँगा इस कारा की प्राचीर,

दौड़ पडूँगा नागराज्य और पातालपुरी की ओर    

या बमवर्षक विमान उड़ते हों ऐसी 

आशंका वाले शहर में।

अगर मुझे पता हो कि मैं तुम्हें एक बार मिल सकूँगा, तो उतप्त मरुभूमि 

अनायस चलकर पार करूँगा,

कँटीले तारों को फाँद जाऊँगा सहज ही, लोकलाज झाड़ पोंछकर 

फेंक जाऊँगा किसी भी सभा में 

या पार्क और मेले में;

एकबार मिल सकूँगा सिर्फ़ यह आश्वासन मिले तो 

एक पृथ्वी की इतनी सी दूरी मैं आसानी से तय कर लूँगा।

तुम्हें देखा था कितने समय पूर्व, वह कभी, किसी बृहस्पतिवार को

और एक करोड़ वर्ष हुए तुम्हें नहीं देखा।



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१. অন্তরাল


মানুষের ভিড়ে মানুষ লুকিয়ে থাকে

গাছের আড়ালে গাছ,

আকাশ লুকায় ছোট্ট নদীর বাঁকে

জলের গভীরে মাছ;

পাতার আড়ালে লুকায় বনের ফুল

ফুলের আড়ালে কাঁটা,

মেঘের আড়ালে চাঁদের হুলস্তুল

সাগরে জোয়ার ভাটা।

চোখের আড়ালে স্বপ্ন লুকিয়ে থাকে

তোমার আড়ালে আমি,

দিনের বক্ষে রাত্রিকে ধরে রাখে

এভাবে দিবসযামী।


२. একা হয়ে যাও


একা হয়ে যাও, নিঃসঙ্গ বৃক্ষের মতো

ঠিক দুঃখমগ্ন অসহায় কয়েদীর মতো

নির্জন নদীর মতো,

তুমি আরো পৃথক বিচ্ছিন্ন হয়ে যাও

স্বাধীন স্বতন্ত্র হয়ে যাও

খণ্ড খণ্ড ইওরোপের মানচিত্রের মতো;

একা হয়ে যাও সব সঙ্গ থেকে, উন্মাদনা থেকে

আকাশের সর্বশেষ উদাস পাখির মতো,

নির্জন নিস্তব্ধ মৌন পাহাড়ের মতো

একা হয়ে যাও।

এতো দূরে যাও যাতে কারো ডাক

না পৌঁছে সেখানে

অথবা তোমার ডাক কেউ শুনতে না পায় কখনো,

সেই জনশূন্য নিঃশব্দ দ্বীপের মতো,

নিজের ছায়ার মতো, পদচিহ্নের মতো,

শূন্যতার মতো একা হয়ে যাও।

একা হয়ে যাও এই দীর্ঘশ্বাসের মতো

একা হয়ে যাও।

3. এক কোটি বছর তোমাকে দেখি না


এক কোটি বছর হয় তোমাকে দেখি না

একবার তোমাকে দেখতে পাবো

এই নিশ্চয়তাটুকু পেলে-

বিদ্যাসাগরের মতো আমিও সাঁতরে পার হবো ভরা দামোদর

কয়েক হাজার বার পাড়ি দেবো ইংলিশ চ্যানেল;

তোমাকে একটিবার দেখতে পাবো এটুকু ভরসা পেলে

অনায়াসে ডিঙাবো এই কারার প্রাচীর,

ছুটে যবো নাগরাজ্যে পাতালপুরীতে

কিংবা বোমারু বিমান ওড়া

শঙ্কিত শহরে।

যদি জানি একবার দেখা পাবো তাহলে উত্তপ্ত মরুভূমি

অনায়াসে হেঁটে পাড়ি দেবো,

কাঁটাতার ডিঙাবো সহজে, লোকলজ্জা ঝেড়ে মুছে

ফেলে যাবো যে কোনো সভায়

কিংবা পার্কে ও মেলায়;

একবার দেখা পাবো শুধু এই আশ্বাস পেলে

এক পৃথিবীর এটুকু দূরত্ব আমি অবলীলাক্রমে পাড়ি দেবো।

তোমাকে দেখেছি কবে, সেই কবে, কোন বৃহস্পতিবার

আর এক কোটি বছর হয় তোমাকে দেখি না।


शक्ति चट्टोपाध्याय की कविताएँ

 1. हो सके तो दुःख दो


हो सके तो दुःख दो, मुझे दुःख पाना अच्छा लगता है

दो दु:ख, दु:ख दो- मुझे दुःख पाना अच्छा लगता है।

तुम सुख लेकर रहो, सुखी रहो, दरवाज़ा खुला है।


आकाश के नीचे, घर में, सेमल के दुलार से स्तंभित

मैं पदप्रान्त से उस स्तंभ का निरीक्षण करता हूँ।

जिस तरह वृक्ष के नीचे खड़ा होता है पथिक, उस तरह  


अकेले-अकेले देखता हूँ मैं इस सुन्दरता की संग्लिष्ट पताका को ।


अच्छा हो बुरा हो, मेघ आसमान में फैल जाता है  

मुझे गले लगाती है हवा, अपनी बाहों में ले लेती है।

दिल उसे रखता है, मुँह कहता है - 'न रखना सुख में, प्रिय सखी' !

हो सके तो दुःख दो, मुझे दुःख पाना अच्छा लगता है

दो दु:ख, दु:ख दो- मुझे दुःख पाना अच्छा लगता है।

अच्छा लगता है मुझे फूलों में काँटा, अच्छा लगता है,  भूल में मनस्ताप-

अच्छा लगता है मुझे सिर्फ़ तट पर बैठे रहना पत्थर की तरह

नदी में है बहुत जल, प्रेम, निर्मल जल -

डर लगता है।


२. एक बार तुम 


एक बार तुम प्यार करने की कोशिश करना -

देखोगी, नदी के भीतर, मछलियों के ह्रदय से पत्थर झड़ रहे हैं

पत्थर, पत्थर, पत्थर और नदी-समुद्र का जल 

नीला पत्थर लाल हो रहा है, लाल पत्थर नीला

एक बार तुम प्यार करने की कोशिश करना ।


ह्रदय में कुछ पत्थरों का होना अच्छा होता है - आवाज़  देने पर मिलती है प्रतिध्वनि 

जब पूरा पैदल पथ ही हो फिसलन भरा, तब उन पत्थरों के  

पाल एक के ऊपर एक बिछाकर

जैसे कविता का नग्न प्रयोग, जैसे लहर, जैसे कुमोरटुली की

सलमा-चमकी-जरी-जड़ी मूर्ति

बहुत दूर हेमन्त के धूसर नक्षत्र के दरवाजे तक को देखकर 

लौट सकता हूँ मैं 


ह्रदय में कुछ पत्थरों का होना अच्छा होता है

चिट्ठी-पत्र के बक्से जैसी तो कोई चीज़ नहीं होती- पत्थरों का अंतराल-

मुख में डाल आने पर ही काम हो जाता है-

कई बार घर बनाने का भी मन करता है।


मछलियों के ह्रदय के पत्थर क्रमशः हमारे ह्रदय में जगह बना रहे हैं 

हमें सब कुछ ही चाहिए। हम घरबार बनाएंगे-सभ्यता का 

एक स्थायी स्तम्भ खड़ा करेंगे 

रुपहली मछलियों के पत्थर झड़ा झड़ाकर चले जाने पर  

एक बार तुम प्यार करने की कोशिश करना ।


३. जिस तरह से जाता है, हर कोई जाता है


रास्ते में एक पेड़ के अपने दूसरे पेड़ के 

बेहद करीब रहने के दृश्य को देखते-देखते देखते-देखते 

मुझे याद आया, मैं हमेशा से ही हूँ बेहद अकेला ।


दोनों पेड़ों को क्या सभी ने देखा है ?

पेड़ को क्या सभी ने नहीं देखा है?


ऐसी बात सोचते-सोचते, हल्की बात सोचते-सोचते

मैं पोखर पर गया मुँह धोने के लिए

एक और चेहरा मुझे छूने के लिए - आते-आते बह गया

जिस तरह से जाता है, हर कोई जाता है, जिस प्रकार जाने की बात को  

अकेला छोड़।

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१. যদি পারো দুঃখ দাও 


যদি পারো দুঃখ দাও, আমি দুঃখ পেতে ভালোবাসি

দাও দুঃখ, দুঃখ দাও – আমি দুঃখ পেতে ভালোবাসি।

তুমি সুখ নিয়ে থাকো, সুখে থাকো, দরজা হাট-খোলা।


আকাশের নিচে, ঘরে , শিমূলের সোহাগে স্তম্ভিত

আমি পদপ্রান্ত থেকে সেই স্তম্ভ নিরীক্ষণ করি।

যেভাবে বৃক্ষের নিচে দাঁড়ায় পথিক, সেইভাবে


একা একা দেখি ঐ সুন্দরের সংশ্লিষ্ট পতাকা।


ভালো হোক মন্দ হোক যায় মেঘ আকাশে ছড়িয়ে

আমাকে জড়িয়ে ধরে হাওয়া তার বন্ধনে বাহুর।

বুকে রাখে, মুখে রাখে – ‘না রাখিও সুখে প্রিয়সখি!

যদি পারো দুঃখ দাও আমি দুঃখ পেতে ভালোবাসি

দাও দুঃখ, দুঃখ দাও – আমি দুঃখ পেতে ভালোবাসি।

ভালোবাসি ফুলে কাঁটা, ভালোবাসি, ভুলে মনস্তাপ –

ভালোবাসি শুধু কূলে বসে থাকা পাথরের মতো

নদীতে অনেক জল, ভালোবাসা, নম্রনীল জল –

ভয় করে।


२. একবার তুমি 


একবার তুমি ভালোবাসতে চেষ্টা করো–

দেখবে, নদির ভিতরে, মাছের বুক থেকে পাথর ঝরে পড়ছে

পাথর পাথর পাথর আর নদী-সমুদ্রের জল

নীল পাথর লাল হচ্ছে, লাল পাথর নীল

একবার তুমি ভালোবাসতে চেষ্টা করো ।


বুকের ভেতর কিছু পাথর থাকা ভালো- ধ্বনি দিলে প্রতিধ্বনি পাওয়া যায়

সমস্ত পায়ে-হাঁটা পথই যখন পিচ্ছিল, তখন ওই পাথরের পাল একের পর এক বিছিয়ে

যেন কবিতার নগ্ন ব্যবহার , যেন ঢেউ, যেন কুমোরটুলির সালমা-চুমকি- জরি-মাখা প্রতিমা

বহুদূর হেমন্তের পাঁশুটে নক্ষত্রের দরোজা পর্যন্ত দেখে আসতে পারি ।


বুকের ভেতরে কিছু পাথর থাকা ভাল

চিঠি-পত্রের বাক্স বলতে তো কিছু নেই – পাথরের ফাঁক – ফোকরে রেখে এলেই কাজ হাসিল-

অনেক সময়তো ঘর গড়তেও মন চায় ।


মাছের বুকের পাথর ক্রমেই আমাদের বুকে এসে জায়গা করে নিচ্ছে

আমাদের সবই দরকার । আমরা ঘরবাড়ি গড়বো – সভ্যতার একটা স্থায়ী স্তম্ভ তুলে ধরবো

রূপোলী মাছ পাথর ঝরাতে ঝরাতে চলে গেলে

একবার তুমি ভলবাসতে চেষ্টা করো ।


३. যেভাবে যায়, সক্কলে যায়


পথের উপর একটি গাছের মধ্যে আপন অন্য গাছের

গভীর কাছে-থাকার দৃশ্য দেখতে-দেখতে দেখতে-দেখতে

আমার মনে পড়লো, আমি আগাগোড়াই ভীষণ একা।

.

গাছ দুটি কি সবার দেখা?

গাছটি কি নয় সবার দেখা?

.

এমন কথা ভাবতে-ভাবতে, আলতো কথা ভাবতে-ভাবতে

পুকুরে মুখ গেলাম ধুতে

আর একটি মুখ আমায় ছুঁতে — আসতে-আসতে ভাসতে গেলো

যেভাবে যায়, সক্কলে যায়, যেমনভাবে যাবার কথা

একলা রেখে।

Tuesday, July 6, 2021

बारिश

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१.

आषाढ़ के दुलार से झरती हैं वृष्टि की बूँदें 

और प्रकृति की तृषित इच्छाओं से मनुष्य

हम मनुष्य भी बूँदें हैं इस भवसागर की

अभिसार को निकली मृत्यु जब हो उठेगी असभ्य 

और करेगी दुलार जीवन को आपादमस्तक 

झर जायेंगे हम बूँदें, जमा होंगे मेघ सरोवर में 

दीर्घतपा पृथ्वी करेगी प्रतीक्षा आषाढ़ की हर बरस 

सहस्र जन्मों बाद हम भी बरसेंगे मिलन-ऋतू में  

वृष्टि की पवित्र बूँदें बनकर किसी रोज़ कहीं धरा पर 


जीवन क्या है?

बारिश की नौका पर सवार एक जलीय यात्रा है|


२.

जब सृष्टि करती है वृष्टि 

सुविन्यस्त वर्षा के जल में 

बूँदें बनकर उतरते हैं हमारे पूर्वज

बरसते हैं सर पर बनकर आशीष 

लगते हैं तन को बनकर दिव्य औषधि    

ठहर जाते हैं कुछ देर धरा पर बन नदी 

कि जता सकें हम उनपर अपना अधिकार 

और चला सकें उन पर ख्वाहिशों की नाव 

डूब जाती है कागज़ की नौका कुछ देर चलकर 

जल में नहीं, प्रेम में !


बारिश क्या है?

पूर्वजों से हमारा साक्षात्कार है|

Sunday, July 4, 2021

नहीं कहा पिता ने कभी

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एक दिन किसी साहसिक कथा ने पसारे अपने पंख 

और जिस उम्र में ब्याही जा रही थीं मेरी सखियाँ 

पिता ने मुझे पढ़ने, कुछ बनने के लिए दूर शहर भेजा 


एक दिन अंधकार सहसा गया सालाने अवकाश पर  

और जब लड़कियों का स्वप्न देखना भी होता था गुनाह 

पिता ने मुझे दिलाया मेरा पसंदीदा रंगीन धूप चश्मा


एक दिन कहानियों से रूपकथा उतर आई जीवन में

और जहाँ समाज में कन्याओं का दान किया जाता रहा 

पिता ने की मेरे प्रेमी से रो-रोकर मेरे लिए प्रेम की याचना    


दिन प्रतिदिन पितृसत्ता ढ़ोते पुरुष ने सहा प्रेम का चाबुक 

प्रेम है, ऐसा कुछ नहीं कहा पिता ने कभी 

प्रेम है, पिता ने हर बार निभाकर दिखाया   


Thursday, June 24, 2021

मोक्ष

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जैसे कि जीवन नहीं 

था मृत्यु का सघन पूर्वाभ्यास  

निस्तब्ध चेतना-संज्ञा तप्त भाल 

धूमिल स्मृतियों का तंतुवाय जाल 


जैसे कि जीवन नहीं 

था झड़ते ईंट गारेवाला प्राचीन स्मारक 

दीवारों पर जिसकी उग आये थे पीपल 

क्षितिज की ओर जाने को जो थे विह्वल  

 

केतकीपत्र पर हस्तलिखित 

एक पाण्डुलिपि थी जिंदगी 

जब पिघला उम्र का हिमाला 

तो बह गई एक-एक वर्णमाला 

Thursday, April 1, 2021

सुबोध सरकार की कविताएँ

 अनुवाद: सुलोचना 


१. एक कुत्ते का बायोडेटा 


पिता जर्मन, माँ रहती थी एंटली की गली में

जन्म के समय वजन: २१/२ पाउंड, डाकनाम जीना

घर की लड़कियाँ पुकारती हैं फुचू, फुचूमणि, फुचान

त्वचा का रंग गहरा काला, पूँछ नहीं है।


दिन में गोमांस के आठ टुकड़े

रात में एक कटोरी दूध। फिलहाल उम्र तीन बरस 

आज तक किसी को भी नहीं काटा।


सिर्फ़ पिछली बार मतदान से पहले

धोती पहने एक सज्जन आए थे 

हाथ जोड़कर वोट माँगने 


जीना ने उन्हें दौड़ाया था सड़क तक 

काटा नहीं, काटने पर, जीना का बायोडेटा कहता है:

जीना खुद ही पागल हो गया होता ।


२. छात्र को लिखी चिठ्ठी 


तुम जिस दिन पहली बार मेरे पास आए

तुम्हारे हाथों में मायाकोवस्की

और आँखों में था 

सुबह का उजाला |


बिहार से लौटकर तुम फिर आए

धीमी आवाज़ में, वाष्प छुपाकर 

तुमने सुनाई थी बिहार की दास्ताँ 

खून हो चुके पिता के बारे में

मैं देख पाया तुम्हारे पीछे खड़ी है विषन्नता |


फिर आये एक दिन, एक दिन और, फिर से, बारबार 

एक दिन बात हुई चीन के बारे में 

एक दिन वियतनाम

एक दिन कंबोडिया

एक दिन क्यूबा

तुम्हारी आँखों में था सुबह का उजाला

तुमने सुनायी थी चे-ग्वेरा की डायरी मुँह-जबानी | 


लेकिन क्या हो गया तुम्हें ?

आना बंद क्यों कर दिया ?

एक दिन फोन किया था, तुम्हारे घर से

मुझसे कहा गया, तुम तीन दिन से घर नहीं लौटे हो

तुम ऐसे तो नहीं थे? क्या हुआ तुम्हें ?

 

अभी-अभी पता चला है 

तुम आमूल बदल गए हो 

तुम अब मुझे बर्दाश्त नहीं कर पाते 

मायाकोवस्की जला दिया है तुमने 

भारत के गो-वलय से निगलने के लिए निकलकर आये   

एक दल में तुमने नाम लिखवाया है |


मैंने कोई गलती तो नहीं की ?

लिखवाया, तो लिखवाया |

तुमने मेरे घर आना क्यों बंद कर दिया?

मैं क्या तुम्हें जबरन 

कार्ल मार्क्स पढ़ाऊंगा ?

घोड़े को तालाब तक पकड़कर लाया जा सकता है

उसे क्या जबरन पानी पिलाया जा सकता है?

ओ मेरे सुबह के उजाले, तुम एक दिन

फिर लौट आओगे मेरे पास, दरवाजा खुला रहेगा मेरा 

प्यार लेना |


३. रूपम


रूपम को एक नौकरी दीजिये  - एम. ए पास, पिता नहीं हैं 

है प्रेमिका जो एक या दो महीने देखेगी, फिर 

नदी के इस पार से नदी की दूसरी ओर जाकर कहेगी, रूपम

आज चलती हूँ 

तुम्हें याद रखूंगी हमेशा

रूपम को एक नौकरी दीजिये, कोई भी नौकरी 

चपरासी का काम हो तो भी चलेगा |


तमालबाबू ने फोन उठाया, फोन के दूसरे छोर पर

जो लोग करते हैं बात

उन्हें चूँकि देखा नहीं जा सकता है, इसलिए वे समझ से बाहर हैं |

तमालबाबू ने मामा से कहा कि रुपम को एक नौकरी की है जरूरत 

मामा ने चाचा से कहा, चाचा ने कहा ताऊ से,

ताऊ ने कहा

हवा से |

मनुष्य का जानना एक बात है, लेकिन हवा जान जाये तो 

पहले ही दौड़ जायेगी दक्षिण की ओर, वह कहेगी दक्षिण के अरण्य से 

अरण्य कहेगा आग से, आग गई अलीमुद्दीन स्ट्रीट पर

अलीमुद्दीन दौड़ा नदी को बताने के लिए 

नदी आकर गिर पड़ी 

तट पर, समुद्र से लेकर हिमाचल तक सब कहने लगे 

रूपम को एक नौकरी दीजिये, एम. ए पास कर बैठा है लड़का |


कुछेक महीने बाद की घटना, मैं घर लौट रहा था शाम के समय 

गली के मोड़ पर सात-आठ लोगों का जमावड़ा देख मैं अचानक रुक गया

था पानी से सद्य बाहर लाया गया रूपम का शव 

पूरे शरीर पर घास, पुआल, हाथ की मुट्ठी में 

पकड़ा हुआ एक एक रूपये का सिक्का |

सार्वजनिक बूथ से किसी को फ़ोन करना चाहा था, रूपम ने?

भारत सरकार के एक रूपये के सिक्के पर है मेरी नजर |


पूरे शरीर पर है हरित घास, घास नहीं, अक्षर

एम. ए. पास करने के लिए एक लड़के को जितने अक्षर पढ़ने पड़ते हैं

वे समस्त व्यर्थ अक्षर उसके शरीर पर लगे हुए हैं |


एक लड़के को आपलोग एम. ए. क्यों पढ़ाते हैं, किस ख़ुशी में 

बनाया है आठ विश्वविद्यालय ? बंद कर दीजिये 

ये बातें कहने के लिए पवित्र सरकार को फोन लगाया 

फोन बज उठा, फोन बजता रहा, फोन बजता ही रहा

२० सालों से वह फोन बजता ही चला जा रहा है, अगले बीस सालों तक बजता रहेगा |


हवा कह रही है अरण्य से, अरण्य बढ़ रहा है नदी की ओर

नदी ने तट से गिरते हुए कहा:

रूपम को एक नौकरी दीजिये |

रूपम कौन है?

रूपम आचार्य, उम्र २६, एम. ए. पास

बाएँ गाल पर कटे का निशान है|


४. एक निर्जन रास्ता 

  

कई वर्षों से मैं तुम्हें एक निर्जन रास्ते पर ले जाना चाहता हूँ 

लेकिन क्यों?

एक निर्जन रास्ता 

भीषण निर्जन एक रास्ता मैंने देखा था 

विरही नामक एक गाँव है, रास्ता उसी तरफ है।


शहर की एक गली से दूसरी गली, एक रास्ते से दूसरा रास्ता  

एक मधुशाला से दूसरे मधुशाला तक 

मध्यरात्रि में दस गिलास पलटकर रख 

निकल आया हूँ तुम्हें साथ लेकर  

फिर भी मेरी प्यास नहीं बुझी


मुझे जाना होगा एक भीषण निर्जन रास्ते पर 

निर्जन एक रास्ते पर।

'बताओ तो क्यों रह रहकर एक निर्जन रास्ते की बात करते हो?'

कौन, किसने मुझसे यह सवाल पूछा?

क्या तुम छोटानागपुर की हवा हो या 

असम की मेखला?


मैं पूर्वजन्म से ही तुम्हारे साथ एक निर्जन रास्ते पर 

जाना चाहता हूँ, रास्ते का नाम गोधूलि है

इस पृथ्वी के दो मनुष्य उस रास्ते पर थोड़ी देर चलेंगे

काम, अर्थ, यश कुछ नहीं चाहिए सिर्फ़ एक निर्जन रास्ता ।


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१. একটি কুকুরের বায়োডেটা 


বাবা জার্মান, মা থাকত এন্টালির গলিতে

জন্মের সময় ওজন : ২১/২ পাউন্ড, ডাকনাম জিনা

বাড়ির মেয়েরা ডাকে ফুচু, ফুচুমণি, ফুচান…

গায়ের রঙ কুচকুচে কালো, লেজ নেই।


দিনের বেলায় আট টুকরো গরুর মাংস

রাতে একবাটি দুধ। এখন বয়স তিন

আজ পর্যন্ত কাউকে কামড়ায়নি।


শুধু গেল বার ভোটের আগে

ধুতিপরা এক ভদ্রলোক এসেছিলেন

করজোড়ে ভোট চাইতে


জিনা তাকে তেড়ে গিয়েছিল রাস্তা পর্যন্ত

কামড়ায়নি, কামড়ালে, জিনার বায়োডেটা বলছে :

জিনা নিজেই পাগল হয়ে যেত।


२. ছাত্রকে লেখা চিঠি


তুমি যেদিন প্রথম এসেছিলে আমার কাছে

তোমার হাতে মায়াকভ্ স্কি

আর চোখে

সকালবেলার আলো |


বিহার থেকে ফিরে এসে তুমি আবার এলে

গলা নামিয়ে, বাষ্প লুকিয়ে

তুমি বলেছিলে বিহারের কথা

খুন হয়ে যাওয়া বাবার কথা

আমি দেখতে পেলাম তোমার পেছনে দাঁড়িয়ে আছে বিষণ্ণতা |


আবার এলে একদিন, আবারও এলে, আবার, আবার

একদিন চিন নিয়ে কথা হল

একদিন ভিয়েৎনাম

একদিন কম্বোডিয়া

একদিন কিউবা

তোমার চোখে সকালবেলার আলো

তুমি চে-গুয়েভারার ডায়েরি মুখস্ত বলেছিলে  |


কিন্তু কী হল তোমার ?

আসা বন্ধ করে দিলে কেন ?

একদিন ফোন করেছিলাম, তোমার বাড়ি থেকে

আমায় বলল, তিনদিন বাড়ি ফেরনি তুমি

এরকম তো ছিলে না তুমি ? কী হয়েছে তোমার  ?

 

এইমাত্র জানতে পারলাম

তুমি আমূল বদলে গেছ

তুমি আর আমাকে সহ্য করতে পার না

মায়াকভ্ স্কি পুড়িয়ে ফেলেছ

ভারতের গো-বলয় থেকে গ্রাস করতে ছুটে আসা

একটা দলে তুমি নাম লিখিয়েছ |


আমি কোন দোষ করিনি তো  ?

লিখিয়েছ, লিখিয়েছ |

তুমি কেন আমার বাড়ি আসা বন্ধ করে দিলে ?

আমি কি তোমাকে জোড় করে

কার্ল মার্কস পড়াব ?

ঘোড়াটিকে পুকুর পর্যন্ত ধরে আনা যায়

তাকে কি জোড় করে জল খাওয়ানো যায় ?

ওগো সকালবেলার আলো, তুমি একদিন

আবার কাছে ফিরে আসবে, দরজা খোলা থাকবে আমার

ভালোবাসা নিয়ো  |


३. রূপম 


রূপমকে একটা চাকরি দিন—এম. এ পাস, বাবা নেই

আছে প্রেমিকা সে আর দু’-এক মাস দেখবে, তারপর

নদীর এপার থেকে নদীর ওপারে গিয়ে বলবে, রূপম

আজ চলি

তোমাকে মনে থাকবে চিরদিন

রূপমকে একটা চাকরি দিন, যে কোন কাজ

পিওনের কাজ হলেও চলবে |


তমালবাবু ফোন তুললেন, ফোনের অন্য প্রান্তে

যারা কথা বলেন

তাদের যেহেতু দেখা যায় না, সুতরাং তারা দুর্জ্ঞেয় |

তমালবাবু মামাকে বললেন কূপমের একটা চাকরি দরকার

মামা বললেন কাকাকে, কাকা বললেন জ্যাঠাকে,

জ্যাঠা বললেন

বাতাসকে |

মানুষ জানলে একরকম, কিন্তু বাতাস জানলে

প্রথমেই ছুটে যাবে দক্ষিণে, সে বলবে দক্ষিণের অরণ্যকে

অরণ্য বলবে আগুনকে, আগুন গেল আলিমুদ্দিন স্ট্রিটে

আলিমুদ্দিন ছুটল নদীকে বলার জন্য

নদী এসে আছড়ে পড়ল

উপকূলে, আসমুদ্র হিমাচল বলে উঠল

রূপমকে একটা চাকরি দাও, এম. এ. পাশ করে বসে আছে ছেলেটা |


কয়েক মাস বাদের ঘটনা, আমি বাড়িফিরছিলাম সন্ধেবেলায়

গলির মোড়ে সাত-আটজনের জটলা দেখে থমকে দাঁড়ালাম

জল থেকে সদ্য তুলে আনা রূপমের ডেডবডি

সারা গায়ে ঘাস, খরকুটো, হাতের মুঠোয়

ধরে থাকা একটা এক টাকার কয়েন |

পাবলিক বুথ থেকে কাউকে ফোন করতে চেয়েছিল, রূপম?

ভারত সরকারের এক টাকা কয়েনের দিকে আমার চোখ |


সারা গায়ে সবুজ ঘাস, ঘাস নয়, অক্ষর

এম. এ. পাস করতে একটা ছেলেকে যত অক্ষর পড়তে হয়

সেই সমস্ত ব্যর্থ অক্ষর ওর গায়ে লেগে আছে |


একটা ছেলেকে কেন আপনারা এম. এ. পড়ান, কোন আহ্লাদে আটখানা

বিশ্ববিদ্যালয় বানিয়েছেন? তুলে দিন

এই কথাগুলো বলব বলে ফোন তুললাম পবিত্র সরকারের

ফোন বেজে উঠল, ফোন বেজে চলল, ফোন বেজেই চলল

২০ বছর ধরে ওই ফোন বেজে চলেছে, আরো কুড়ি বছর বাজবে |


বাতাস বলছে অরণ্যকে, অরণ্য চলেছে নদীর দিকে

নদী উপকূল থেকে আছড়ে পড়ে বলল :

রূপমকে একটা চাকরি দিন |

কে রূপম?

রূপম আচার্য, বয়স ২৬, এম. এ. পাস

বাঁ দিকের গালে একটা কাটা দাগ আছে |


৪. একটা নির্জন রাস্তা


কয়েকবছর ধরে আমি তোমাকে একটা নির্জন রাস্তায় নিয়ে যেতে চাইছি

কিন্তু কেন?

একটা নির্জন রাস্তা

ভীষণ নির্জন একটা রাস্তা আমি দেখেছিলাম

বিরহী নামে একটা গ্রাম আছে, রাস্তাটা সেইদিকে।


শহরের এক গলি থেকে আরেক গলি, এক রাস্তা থেকে অন্য রাস্তা

এক পানশালা থেকে অন্য পানশালা

মাঝরাতে দশটা গেলাস উল্টে রেখে

বেরিয়ে এলাম তোমাকে নিয়ে

তবু আমার পিপাসা গেল না


আমাকে যেতে হবে একটা ভীষণ নির্জন রাস্তায়

নির্জন একটা রাস্তায় ।

'কেন বলো তো থেকে থেকেই একটা নির্জন রাস্তার কথা বলো?'

কে, কে আমাকে এই প্রশ্ন করলে?

তুমি কি ছোটনাগপুরের বাতাস না

আসামের মেখলা?


আমি পূর্বজন্ম থেকে তোমার সঙ্গে একটা নির্জন রাস্তায়

যেতে চাইছি, রাস্তাটার নাম গোধূলি

এই পৃথিবীর দুজন মানুষ সেই রাস্তায় কিছুক্ষণ হাঁটবে

কাম, অর্থ, যশ কিচ্ছু চাই না শুধু একটা নির্জন রাস্তা।