Tuesday, June 12, 2012

अल्मोड़ा-भीमताल- कौसानी-बैजनाथ-रानीखेत

जून का महीना आते ही दिल्ली की भीषण गर्मी से भागने का बहाना मिल जाता है| स्कूलों में छुट्टियाँ शुरू हो जाती हैं और इसी बहाने बच्चों के साथ बड़े किसी ठंढे प्रदेश का रुख कर लेते हैं| इसी क्रम में हमने रुख किया उत्तराखंड का | गाजियाबाद से रेलमार्ग से हम अलसुबह काठगोदाम पहुँचे और वहाँ से टैक्सी में बैठ हम चल पड़े अल्मोड़ा की ओर |
 रात की यात्रा का थकान था या पहाड़ी घुमावदार रास्तों का असर, घुमावदार रास्तों से होते हुए अल्मोड़ा की ओर जाते हुए हमें चक्कर आने लगे | अल्मोड़ा के किसी घुमावदार मोड़ पर गाड़ी रोकी गयी |


आँखों में नींद थी और बाहर का नजारा ऐसा था मानो कि सपना था | कुछ ही देर में फेफड़े और दिमाग में ऑक्सीजन जी ताजगी भर हम आगे बढ़ गए | गाड़ी का शीशा नीचे कर लिया |



नीलमोहर की तरह दिखने वाला पेड़ सड़क के दोनों ओर शोभायमान था | उस पेड़ के फूलों की पंखुड़ियाँ रास्ते के दोनों ओर किसी अल्पना की तरह बिखरी हुईं थीं | हवा में शायद उन फूलों की ही खुशबू मौजूद थी |
प्राकृतिक नजारों में खोये हम भीमताल पहुँच गए | यहाँ झील की मौजूदगी प्राकृतिक छटा में चार चाँद लगा रही थी | थोड़ी देर हम झील के किनारे बैठे | झील के पास ही एक हस्तशिल्प की दूकान है|





मेढ़क की आकृति वाले चट्टान को भी हमने ड्राईवर के आग्रह पर देखा | यहाँ देखने को और कुछ भी विशेष न था, सो हम कौसानी की ओर चल पड़े | रास्ते में कई जगह मूँग दाल के पकौड़े मिल रहे थे | हमने चाय के साथ पकौड़ों का लुत्फ़ लिया |

कुछ समय बाद हम कौसानी पहुँच गए | रास्ते भर हमारे साथ रहे वो बैंजनी फूल जो अल्मोड़ा से कौसानी तक हमारे नासारन्ध्रों को सुरभित करते रहे और पहाड़ी मोड़ों पर आने वाले उबकाई से हमें बचाते रहे |








कौसानी पहुँचते ही पता चला कि एक दिन पहले वहाँ बारिश हुई थी | मौसम खुशनुमा था | होटल में सामान रखकर चाय नाश्ता किया | नहाने के बाद सबसे पहले चाय बगान गए |

चाय बगान किसी अन्य चाय बगान कि तरह ही खूबसूरत था | वहाँ बगान वालों ने बकायदा गिरियस चाय का स्टाल लगा रखा था जिसके पास ही गिरियस चाय से होने वाले स्वास्थ्य संबंधित फायदे लिखे थे | हम भी रुके और उत्सुकतावश चाय भी पीया | चाय कुछ ख़ास नहीं लगा | शायद दार्जीलिंग की चाय का जायका जुबान की स्मृति में दर्ज था | थोड़ी ही देर में हल्की बारिश शुरू हो गयी और हम शाल की खरीदारी करने पास की दूकान तक चले गए |

खरीदारी के बाद दिन का खाना उन्हीं प्राकृतिक नजारों को देखते हुए किया | रेस्त्रां के मेनू को देखते हुए नूडल खाना ही ज्यादा सुरक्षित लगा | बारिश के बाद मिटटी कि सौंधी खुशबू और आप सबसे ऊँचे रेस्त्रां में बैठ नजारों में खोए गरमागरम नूडल खा रहें हों, तो जिंदगी कुछ पल के लिए परिकथा सी लगने लगती है| लगभग तीन बज रहा होगा जब हम खाना खाकर अनासक्ति आश्रम के लिए निकल पड़े |


अनासक्ति आश्रम का वातावरण ही गांधीमय है| आश्रम के हर ओर गांधी जी के कथन वाली तख्तियां टंगी हुई हैं| आश्रम परिसर में प्रवेश करते ही गांधी जी की भव्य मूर्ती लगी है|

वहाँ एक छोटा सा पुस्तकालय भी है और एक दूकान भी, जहाँ से आप गांधी जी कि लिखी हुई किताबें खरीद सकते हैं | हमने वहाँ से कई किताबें खरीदीं | परिसर में लगे रंग-बिरंगे फूलों को जी भर निहारा | आश्रम की एक तख्ती पर गाँधी जी की वंशावली है|

कुछ ही देर बाद आसमान में बादल उमड़ने लगे | शाम हो गयी थी और उस जगह से दूर जाने का मन ही नहीं कर रहा था | हमारा होटल वहाँ से दूर था, इसलिए बिना देर लिए होटल के लिए निकलना ही उचित लगा | लौटते हुए पता चला कि पहाड़ों की शाम कितनी खूबसूरत होती है| एक दिन पहले हुई बारिश की वजह से सब कुछ साफ़ था | 


बर्फ से ढँकी नंदा देवी पर्वत की चोटी शाम के रंगों में नहा रही थी | हम कमरे में लौट तो आए थे, पर जिन आँखों ने बर्फ में ढँकी पर्वत की चोटी पर सूर्यास्त का नजारा झलक भर देखा हो, उन्हें चैन कहाँ ! कमरे की बालकनी में खड़े हो अँधेरा होने तक सूरज की सुनहली और रक्तिम किरणों को बर्फीली चोटियों से स्नेह जताते देखते रहे |

जब खड़े-खड़े पाँव थक गए, तब कमरे में औंधे लेटे उस भव्य नजारे का आनंद उठाया | लगा रहा था जैसे इस जीवन में ही स्वर्ग का दर्शन कर लिया हो | हिम आच्छादित चोटी पर सूर्य किरणों की कलाकारी का दृश्य किसी वर्णन से परे अलौकिक था |

सुंदर दृश्यों ने आँखों की थकान पर आराम का लेप लगा दिया था | रात का खाना कमरे में ही मंगा लिया | खाना खाकर थोड़ी देर बालकनी में ही चहलकदमी करते हुए पहाड़ों के "अंधेरे में जगमग" को देखा और फिर सोने चले गए | अगले रोज रूद्रधारी और बैजनाथ जाने का कार्यक्रम था |

अगली सुबह नहाने के बाद नाश्ता कर हम रूद्रधारी की ओर चल पड़े | न जाने क्या सोचकर साड़ी पहन लिया था | शायद बैजनाथ जाना था, इसीलिए ! रास्ते में जाते हुए ड्राईवर खूब बातें कर रहा था | उसने अपने पिता और अपने संघर्ष की दास्तान सुनाई | फिर रास्ते में खेत में काम करती हुई स्त्री की ओर दिखाकर बताया कि वहाँ स्त्रियाँ घर और बाहर दोनों मोर्चा संभालती हैं| मैंने तपाक से पूछा "तो पुरुष क्या करते हैं?"

उसने कहा " यह देवभूमि है मैडम | यहाँ हर पुरुष खुद को शिव से कम कहाँ मानता है|  नशे में रहता है और आवारागर्दी करता है"

"तो तुम गाड़ी क्यूँ चलाते हो" मुझे कौतुहल हुआ |

"मेरे पिता डाकघर में नौकरी करते थे, सो उन्होंने हमें पढ़ाया| बाहर भेजा | थोड़ी बहुत दुनिया देख ली | हम चाहते हैं हमारे बच्चे भी पढ़ -लिख जाएँ | यहाँ बहुत तकलीफ है| बिजली, पानी और खाना बनाने का सिलेंडर....." वह तकलीफें गिनवाता रहा |


रूद्रधारी पहुँचे तो सुनील नामक एक छोटे बच्चे को दिखाकर कहा गया कि वह हमारा गाइड है|  वह उछलता -कूदता हमें थोड़ी दूर ही ले गया था , लौटते हुए सैलानियों के दल ने मुझे साड़ी में देख लौट जाने की नसीहत दी | उन्होंने कहा कि आगे का मार्ग दुर्गम है जिसे साड़ी पहनकर तो तय नहीं किया जा सकता |

हम लौटे और बैजनाथ की ओर कूच कर गए |




बैजनाथ कोई एक मंदिर न होकर कई छोटे मंदिरों का समूह है|  मंदिर के बाहर शिला पर मंदिर समूह निर्माण से जुडी जानकारी दर्ज है|





यहाँ शिव के साथ कुबेर भी पूजे जाते हैं| मंदिर के अहाते में है एक झील जहाँ कई किस्म की मछलियाँ दिखाई देती हैं| हमने भी अन्य सैलानियों की तरह इन्हें मुरमुरे खिलाकर बैजनाथ यात्रा का अंत किया |




 कौसानी के होटल लौटते हुए रात हो गयी थी | खाना खाकर सो गए | अगली सुबह नाश्ते के बाद कौसानी को विदा कहा और रानीखेत की ओर निकल पड़े |

रानीखेत के बारे में सुन रखा था कि खूबसूरत जगह है, तो जब घूमने का प्लान बनाया, तो दिमाग में खूबसूरत नजारे तैर रहे थे | वहाँ पहुँचकर काफी हद तक मायूसी हुई |
 वहाँ पहुँचते ही सबसे पहले हमें कालका जी के मंदिर ले जाया गया | वहाँ पहले से ही सैलानियों की भीड़ जमा थी | कुल मिलाकर जंगल के बीच के आम मंदिर जिसे प्राचीन मंदिर कहा जा रहा था | हमें बताया गया वह एक सिद्ध पीठ है| सुकून बस इतना था कि वहाँ हरियाली थी इसलिए थोड़ी देर रुकना बुरा नहीं लगा | वहाँ एक बंगाली बाबा भी थे (उनके पास लगी तख्ती बता रही थी)| मैंने उनसे बांग्ला में बात करने कि कोशिश की तो पता चला उन्हें बांग्ला भाषा का ज्ञान नहीं है| पूछना चाहती थी बिना बांग्ला जाने वह बंगाली बाबा कैसे बने पर भीड़ कुछ ज्यादा ही थी | हम दो
मंजिला मंदिर का कुछ वक़्त निरीक्षण कर, प्रसाद चढाकर आगे बढ़ गए |





एक मंदिर से निकले ही थे कि आगे चलकर हमारे कार के ड्राईवर ने गाड़ी दूसरी मंदिर के पास खड़ी कर दी | हमने उसे बताया कि हम तीर्थ करने के उद्देश्य से नहीं आए, पर उसने ज़ोर देकर कहा कि जब आ ही गए हैं, तो हमें झूला देवी का दर्शन करना ही चाहिए | हमारे मना करने पर उसने कहा कि वह जब भी आता है बिना झूला देवी के दर्शन किए नहीं जाता | हम कार से उतरे |
वह हमें प्रसाद कि दूकान तक ले गया और फिर हमने झूला देवी मंदिर का जायजा भी लिया | मंदिर के बाहर ही मंदिर का इतिहास लिखा था | 

यहाँ से निकलकर हम कार की ओर गए ही थे कि ड्राईवर ने बता दिया हमें आगे भी मंदिर ही जाना है| 







हम पहुँचे मनकामेश्वर मंदिर जिसकी देखभाल  कुमाऊं रेजिमेंट करता है| यहाँ प्रवेश करने के लिए पाँव धोना अनिवार्य है| मंदिर में पुजारी के अतिरिक्त किसी आगंतुक द्वारा पूजा कर्म का निषेध है| फर्श पर बैठने के लिए साफ़ शफ्फाक दरी और चादर बिछी है| कुल मिलाकर यह मंदिर देश के उन दुर्लभ मंदिरों में से है जहाँ स्वच्छता का वास है|शायद छावनी प्रशासन के कड़े नियम की वजह से यह संभव हो सका | 







मंदिर से कुछ आगे ही उल्टी दिशा में सर्जिकल बैंडेज प्रशिक्षण और उत्पादन केंद्र है| अंग्रेजों द्वारा निर्मित यह भवन अपनी भव्यता के कारण लुभाता है| यहाँ स्त्रियाँ सूत कातकर साड़ी व अन्य प्रकार के कपड़े बना रही थी | थोड़ी देर रुककर उन्हें काम करते हुए देखा | यह दिलचस्प था | यहाँ काम करने वाली ज्यादातर स्त्रियाँ युद्ध में मारे गए सैनिकों की विधवाएँ थीं | 

यहाँ से निकलकर हम दिन का खाना खाने के लिए बाजार की ओर गए और फिर वहाँ से सीधे आर्मी म्यूजियम गए |    म्यूजियम के मुख्य द्वार से प्रवेश करते हुए हस्ताक्षर करना होता है और फिर कुछ दूर चलने के बाद म्यूजियम का मुख्य भवन आता है| यहाँ सेना (विशेषतः कुमाऊँ रेजिमेंट) और युद्ध से जुड़ी वस्तुओं, मसलन तोप, वर्दी, टोपी इत्यादि  व कुमाऊँ क्षेत्र के पारम्परिक वाद्य यंत्रों को प्रदर्शित किया गया है| अंदर फोटो लेने की सख्त मनाही है|                                         

म्यूजियम से निकलते हुए शाम के लगभग साढ़े चार बज चुके थे | 


यहाँ से निकलकर हम चौबतिया उद्यान गए | इस उद्यान में सेब का बाग है| छोटा सा चाय का बगान भी है| सैलानियों के खाने-पीने के लिए एक छोटा सा रेस्त्रां हैं| इसके अतिरिक्त वहाँ के स्थानीय मुरब्बे , अचार, शहद और जूस का एक स्टाल है और इसके साथ ही पौधों की नर्सरी जहाँ से हमने कई किस्म के पौधे खरीदे| 

जूस और अचार भी खरीदा |






शाम घिर आई थी और अब हमारे लौटने की बारी थी | रानीखेत की मन में जो छवि थी वह भले ही वहाँ जाकर हमने महसूस न किया हो, पर लौटते हुए इतने किस्म के पौधे और वहाँ के स्थानीय अचार व जूस साथ पाकर हम खुश थे | इस जगह की एक बात जो काबिले तारीफ़ है, वह है स्वच्छता | कुमाउं रेजिमेंट को इसके लिए धन्यवाद कहना बनता है|

Thursday, May 31, 2012

Ufff.. can't pick these
How do I eat this papaya?

Mee, too,  monkey

Out of the box thinking



Oh run... see that leaf has taken yellow color from my dress



Self explanatory
Funny Menu on the way to Jim Corbett




What do I do now? Laddo is bigger than my mouth
I perfectly fit in this shelf

Funny Times

Laughing at each other
The Chimpanzee is in shock state since then
Its not fun to carry footwear on your head

Paan petiole competition:) This is from haldi ritual from my brother's marriage.