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एक दिन बना लूँगी मैं अपना ठिकाना
किसी हरे-भरे पहाड़ पर
ढूँढते हुए आस्ताना
फिर एक दिन तपस्या में लीन आदिम पुरुष सा पहाड़
माँगेगा मुझसे आश्रय, बन प्रणय भिक्षुक
और प्रतिदान में चाहूँगी मैं अभयदान
तब हमारे प्रणय अभ्यास का फल
लेगी जन्म हमारी नैसर्गिग संतान, बन वितस्ता सी कोई नदी
उस दिन करते हुए हमारा अनुसरण
अपने अमरत्व के लिए
बहुत-बहुत लोग करेंगे पर्वतारोहण
तपस्या कर रहा है पहाड़ अनंतकाल से कि आएगा माहेन्द्र-क्षण
दे रही है आहुति कालिंदी, इक्षुला, तमसा जैसी नदियाँ इस अनुष्ठान में
मंत्रोच्चार कर रहे है हिलाकर पत्तों को सनोबर और देवदार के वृक्ष
मैं ढूँढ रही हूँ सूत्र पहाड़ को पिघलाने का !
दुविधा में है भगीरथ का समयपुरुष !!
एक दिन बना लूँगी मैं अपना ठिकाना
किसी हरे-भरे पहाड़ पर
ढूँढते हुए आस्ताना
फिर एक दिन तपस्या में लीन आदिम पुरुष सा पहाड़
माँगेगा मुझसे आश्रय, बन प्रणय भिक्षुक
और प्रतिदान में चाहूँगी मैं अभयदान
तब हमारे प्रणय अभ्यास का फल
लेगी जन्म हमारी नैसर्गिग संतान, बन वितस्ता सी कोई नदी
उस दिन करते हुए हमारा अनुसरण
अपने अमरत्व के लिए
बहुत-बहुत लोग करेंगे पर्वतारोहण
तपस्या कर रहा है पहाड़ अनंतकाल से कि आएगा माहेन्द्र-क्षण
दे रही है आहुति कालिंदी, इक्षुला, तमसा जैसी नदियाँ इस अनुष्ठान में
मंत्रोच्चार कर रहे है हिलाकर पत्तों को सनोबर और देवदार के वृक्ष
मैं ढूँढ रही हूँ सूत्र पहाड़ को पिघलाने का !
दुविधा में है भगीरथ का समयपुरुष !!