Friday, October 31, 2014

छिपकली

--------------------------------------------------------

एक संसार हुआ करता था वह कमरा तब
और कमरे का लाल बल्ब था दहकता सूरज
रहती थी उस संसार में एक जोड़ी छिपकली
जो खेलती थी छुआ-छुई देर शाम तलक
संसार में तब कोई और था ही कहाँ




दूर से दिखता बुरा वक़्त हुआ कमरे में लगा लाल बल्ब
और घड़ी के दो कांटो की मानिंद रही एक जोड़ी छिपकली
जो कर रही थी प्रदक्षिणा कमरे में लगे लाल बल्ब की
जहाँ घड़ी की टिक-टिक बढ़ा जाती थी दिल की धड़कन
हर बुरे अंदेशे पर ठीक-ठीक कह जाती थी छिपकली




किसी बहुत सुन्दर स्त्री के चेहरे सा है एक कमरा
जो है यादों के कैनवास पर गुलाबी और आकर्षक
जिसमे माथे की बिंदी सा है सजा कमरे का लाल बल्ब
जहाँ एक जोड़ी छिपकली देखती है एक-दुसरे को दूर से
जो बनाता है हँसुली सा आकार; हँसुली जो है फंसी गले में


-----सुलोचना वर्मा-----------------------