Wednesday, March 21, 2018

काज़ी नज़रूल इस्लाम की कविताएँ

1. साम्यवादी 

गाता हूँ साम्यता का गान 
जहाँ आकर एक हो गए सब बाधा - व्यवधान 
जहाँ मिल रहे हैं हिन्दू - बौद्ध - मुस्लिम - ईसाई 
गाता हूँ साम्यता का गान !

तुम कौन? पारसी? जैन? यहूदी? संथाली, भील, गारो?
कनफ्यूसियस? चार्वाक के चेले? कहते जाओ, कहो और !
बन्धु, जितने खुश हो जाओ,
पेट, पीठ, कांधे, मगज में जो मर्जी पाण्डुलिपि व किताब ढोओ,
कुरआन- पुराण-वेद- वेदान्त-बाइबिल-त्रिपिटक 
जेंदावेस्ता-ग्रन्थसाहिब पढ़ते जाओ, जितनी मर्जी 
किन्तु क्यूँ ये व्यर्थ परिश्रम, मगज में हनते हो शूल?
दुकान में क्यूँ ये दर मोल-भाव? पथ में खिलते ताज़ा फूल !
तुममे है सभी किताब सभी काल का ज्ञान,
सभी शास्त्र ढूँढ सकोगे सखा, खोलकर देखो निज प्राण !
तुममे है सभी धर्म, सभी युगावतार,
तुम्हारा हृदय विश्व -देवालय सभी देवताओं का |
क्यूँ ढूँढते फिरते हो देवता-ठाकुर मृत पाण्डुलिपि - कंकाल में ?
हँसते हैं वो अमृत हिया के निभृत अंतराल में !

बन्धु, नहीं कहा झूठ,
यहाँ आकर लूट जाते हैं सभी राजमुकुट |
यह हृदय ही है वह नीलाचल, काशी, मथुरा, वृन्दावन,
बोधगया यही, जेरूसलम यही, मदीना, काबा भवन,
मस्जिद यही, मंदिर यही, गिरिजा यही हृदय,
यहीं बैठ ईसा मूसा ने पाया सत्य का परिचय |
इसी रणभूमि में बाँसुरी के किशोर ने गाया महा-गीता,
इसी मैदान में भेड़ों का चरवाहा हुआ नबी खुदा का मीता |
इसी हृदय के ध्यान गुफा में बैठ शाक्यमुनि 
त्यागा राज्य मानव के महा-वेदना की पुकार सुनि  |
इसी कन्दरा में अरब-दुलाल सुनते थे आह्वान,
यहीं बैठ गाया उन्होंने कुरआन का साम-गान |
मिथ्या नहीं सुना भाई,
इस हृदय से बड़ा कोई मंदिर - काबा नाही |
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সাম্যবাদী – কাজী নজরুল ইসলাম

গাহি সাম্যের গান-
যেখানে আসিয়া এক হয়ে গেছে সব বাধা-ব্যবধান
যেখানে মিশছে হিন্দু-বৌদ্ধ-মুস্‌লিম-ক্রীশ্চান।
গাহি সাম্যের গান!
কে তুমি?- পার্সী? জৈন? ইহুদী? সাঁওতাল, ভীল, গারো?
কন্‌ফুসিয়াস্‌? চার্বআখ চেলা? ব’লে যাও, বলো আরো!
বন্ধু, যা-খুশি হও, 
পেটে পিঠে কাঁধে মগজে যা-খুশি পুঁথি ও কেতাব বও,
কোরান-পুরাণ-বেদ-বেদান্ত-বাইবেল-ত্রিপিটক-
জেন্দাবেস্তা-গ্রন্থসাহেব প’ড়ে যাও, যত সখ-
কিন্তু, কেন এ পন্ডশ্রম, মগজে হানিছ শূল?
দোকানে কেন এ দর কষাকষি? -পথে ফুটে তাজা ফুল!
তোমাতে রয়েছে সকল কেতাব সকল কালের জ্ঞান,
সকল শাস্র খুঁজে পাবে সখা, খুলে দেখ নিজ প্রাণ!
তোমাতে রয়েছে সকল ধর্ম, সকল যুগাবতার,
তোমার হৃষয় বিশ্ব-দেউল সকল দেবতার।
কেন খুঁজে ফের’ দেবতা ঠাকুর মৃত পুঁথি -কঙ্কালে?
হাসিছেন তিনি অমৃত-হিয়ার নিভৃত অন্তরালে!

বন্ধু, বলিনি ঝুট,
এইখানে এসে লুটাইয়া পড়ে সকল রাজমুকুট।
এই হৃদ্য়ই সে নীলাচল, কাশী, মথুরা, বৃন্দাবন,
বুদ্ধ-গয়া এ, জেরুজালেম্‌ এ, মদিনা, কাবা-ভবন,
মস্‌জিদ এই, মন্দির এই, গির্জা এই হৃদয়,
এইখানে ব’সে ঈসা মুসা পেল সত্যের পরিচয়।
এই রণ-ভূমে বাঁশীর কিশোর গাহিলেন মহা-গীতা,
এই মাঠে হ’ল মেষের রাখাল নবীরা খোদার মিতা।
এই হৃদয়ের ধ্যান-গুহা-মাঝে বসিয়া শাক্যমুনি
ত্যজিল রাজ্য মানবের মহা-বেদনার ডাক শুনি’।
এই কন্দরে আরব-দুলাল শুনিতেন আহবান,
এইখানে বসি’ গাহিলেন তিনি কোরানের সাম-গান!
মিথ্যা শুনিনি ভাই,
এই হৃদয়ের চেয়ে বড় কোনো মন্দির-কাবা নাই।

2. क्षमा कीजिए हजरत



आपकी वाणी को नहीं किया ग्रहण
क्षमा कीजिए हजरत
भूल गया हूँ आपके आदर्श
आपका दिखाया हुआ पथ
क्षमा कीजिए हजरत |
विलास वैभव को रौंदा है पाँव तले
धूल समान आपने प्रभु
आपने नहीं चाहा कि हम बने
बादशाह, नवाब कभू |
इस धरणी की धन सम्पदा
सभी का है उस पर समान अधिकार,
आपने कहा था धरती पर हैं सब
समान पुत्रवत
क्षमा कीजिए हजरत |

आपके धर्म में नास्तिकों से
आप घृणा नहीं करते,
आपने उनकी की है सेवा
आश्रय दिया उन्हें घर में

भिन्न धर्मियों के पूजा मंदिर
तोड़ने का आदेश नहीं दिया, हे वीर !
हम आजकल सहन
नहीं कर पाते दूसरों का मत
क्षमा कीजिए हजरत |

नहीं चाहा आपने कि हो धर्म के नाम पर
ग्लानिकर हत्या-जीवन हानि
तलवार आपने नहीं दिया हाथ में
दी है अमर वाणी

हमने भूल कर आपकी उदारता
बढ़ा ली है धर्मान्धता,
जन्नत से नहीं झरती है अब
तभी आपकी रहमत
क्षमा कीजिए हजरत |

आपकी वाणी को नहीं किया ग्रहण
क्षमा कीजिए हजरत
भूल गया हूँ आपके आदर्श
आपका दिखाया हुआ पथ
क्षमा कीजिए हजरत |
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ক্ষমা করো হজরত

তোমার বাণীরে করিনি গ্রহণ, ক্ষমা করো হজরত।

ভুলিয়া গিয়াছি তব আদর্শ, তোমার দেখানো পথ

ক্ষমা করো হজরত॥

বিলাস বিভব দলিয়াছ পায় ধূলিসম তুমি প্রভু

তুমি চাহ নাই আমরা হইব বাদশা নওয়াব কভু

এই ধরণির ধন সম্ভার

সকলের তাহে সম অধিকার

তুমি বলেছিলে, ধরণিতে সবে সমান পুত্রবৎ॥

ক্ষমা করো হজরত॥

তোমার ধর্মে অবিশ্বাসীরে তুমি ঘৃণা নাহি করে

আপনি তাদের করিয়াছ সেবা ঠাঁই দিয়ে নিজ ঘরে।

ভিন-ধর্মীর পূজা মন্দির

ভাঙিতে আদেশ দাওনি, হে বীর,

আমরা আজিকে সহ্য করিতে পারিনোকো পর-মত॥

ক্ষমা করো হজরত!!

তুমি চাহ নাই ধর্মের নামে গ্লানিকর হানাহানি,

তলওয়ার তুমি দাও নাই হাতে, দিয়াছ অমর বাণী,

মোরা ভুলে গিয়ে তব উদারতা

সার করিয়াছি ধর্মান্ধতা,

বেহেশ্‌ত হতে ঝরে নাকো আর তাই তব রহমত॥

ক্ষমাকরো হজরত॥

3.तरुण प्रेमी 


तरुण प्रेमी, प्रणय वेदना
बताओ बताओ बे-दिल  प्रिया को
ओ विजयी, निखिल हृदय
करो करो जय मोहन माया से |

नहीं वो एक हिया समान
हजार काबा, हजार मस्जिद
क्या होगा तुम्हारे काबा की खोज से
आश्रय ढूँढों तुम्हारी हृदय की छाँव में |

प्रेम की रौशनी से है जो दिल रौशन
जहाँ हो समान उसके लिए
खुदा की मस्जिद, मूरत मंदिर
इसाई गिरिजा, यहूदीखाना |

अमर है उसका नाम प्रेम के पन्नों पर
ज्योति से जिसे जाएगा लिखा
दोजख़ का भय नहीं होता है उसे
नहीं रखता है वह जन्नत की आशा |
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তরুন প্রেমিক
তরুণ প্রেমিক, প্রণয় বেদন
জানাও জানাও বে-দিল প্রিয়ায়
ওগো বিজয়ী, নিখিল হূদয়
কর কর জয় মোহন মায়ায়।

নহে ও এক হিয়ার সমান
হাজার কাবা হাজার মস্‌জিদ
কি হবে তোর কাবার খোঁজে
আশয় খোঁজ তোর হূদয় ছায়ায়।

প্রেমের আলোয় যে দিল্‌ রোশন
যেথায় থাকুক সমান তাহার
খুদার মস্‌জিদ মুরত মন্দির
ইশাই দেউল ইহুদখানায়।

অমর তার নাম প্রেমের খাতায়
জ্যোতির লেখায় রবে লেখা
দোজখের ভয় করে না সে
থাকে না সে বেহেস্তের আশায়।।

4. विजयनी


ओ मेरी रानी ! हार मानता हूँ आज अंततः तुमसे
मेरा विजय-केतन लूट गया आकर तुम्हारे चरणों के नीचे |
मेरी समरजयी अमर तलवार
हर रोज़ थक रही है और हो रही है भारी,
अब ये भार तुम्हें सौंप कर हारूँ
इस हार माने हुए हार को तुम्हारे केश में सजाऊँ ||

ओ जीवन-देवी |
मुझे देख जब तुमने बहाया आँखों का जल,
आज विश्वजयी के विपुल देवालय में आन्दोलित है वह जल !
आज विद्रोही के इस रक्त-रथ के ऊपर,
विजयनी ! उड़ता है तुम्हारा नीलाम्बरी आँचल,
जितने तीर है मेरे, आज से सब तुम्हारे, तुम्हारी माला उनका तरकश,
मैं आज हुआ विजयी तुम्हारे नयन जल में बहकर |

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হে মোর রাণি! তোমার কাছে হার মানি আজ শেষে।
আমার বিজয়-কেতন লুটায় তোমার চরণ-তলে এসে।
আমার সমর-জয়ী অমর তরবারী
দিনে দিনে ক্লানি- আনে, হ'য়ে ওঠে ভারী,
এখন এ ভার আমার তোমায় দিয়ে হারি,
এই হার-মানা-হার পরাই তোমার কেশে।।

ওগো জীবন-দেবী।
আমায় দেখে কখন তুমি ফেললে চোখের জল,
আজ বিশ্বজয়ীর বিপুল দেউল তাইতে টলমল!
আজ বিদ্রোহীর এই রক্ত-রথের চূড়ে,
বিজয়িনী! নীলাম্বরীর আঁচল তোমার উড়ে,
 যত তৃণ আমার আজ তোমার মালায় পূরে',
আমি বিজয়ী আজ নয়ন-জলে ভেসে।

5. किसानों की ईद


बिलाल ! बिलाल ! हिलाल निकला है पश्चिम के आसमान में,
छुपे हुए हो लज्जा से किस मरुस्थल के कब्रिस्तान में |
देखो ईदगाह जा रहे हैं किसान, जैसे हों प्रेत-कंकाल
कसाईखाने जाते देखा है दुर्बल गायों का दल ?
रोजा इफ्तार किया है किसानों ने आँसुओं के शर्बत से, हाय ,
बिलाल ! तुम्हारे कंठ में शायद अटक जा रही है अजान |
थाली, लोटा, कटोरी रखकर बंधक देखो जा रहे हैं ईदगाह में,
सीने में चुभा तीर, ऋण से बंधा सिर, लुटाने को खुदा की राह में |

जीवन में जिन्हें हर रोज़ रोजा भूख से नहीं आती है नींद
मुर्मुष उन किसानों के घर आज आई है क्या ईद ?
मर गया जिसका बच्चा नहीं पाकर दूध का महज एक बूँद भी
क्या निकली है बन ईद का चाँद उस बच्चे की पसली की हड्डी?
काश आसमान में छाए काले कफ़न का आवरण टूट जाए
एक टुकड़ा चाँद खिला हुआ है, मृत शिशु के अधर-पुट में |
किसानों की ईद ! जाते हैं वह ईदगाह पढ़ने बच्चे का नमाज-ए-जनाजा,
सुनते हैं जितनी तकबीर, सीने में उनके उतना ही मचता है हाहाकार |
मर गया बेटा, मर गयी बेटी, आती है मौत की बाढ़
यजीद की सेना कर रही है गश्त मक्का मस्जिद के आसपास |

कहाँ हैं इमाम? कौन सा ख़ुत्बा पढ़ेंगे वह आज ईद में ?
चारों ओर है मुर्दों की लाश, उन्ही के बीच जो चुभता है आँखों में
जरी वाले पोशाकों से ढँक कर शरीर धनी लोग आए हैं वहाँ
इस ईदगाह में आप इमाम, क्या आप हैं इन्हीं लोगों के नेता ?
निचोड़ते हैं कुरआन, हदीस और फिकह, इन मृतकों के मुँह में
क्या अमृत कभी दिया आपने ? सीने पर रखकर हाथ कहिये |
पढ़ा है नमाज, पढ़ा है कुरआन, रोजे भी रखे हैं जानता हूँ
हाय रट्टू तोता ! क्या शक्ति दे पाए जरा सी भी  ?
ढ़ोया है फल आपने, नहीं चखा रस, हाय री फल की टोकरी,
लाखों बरस झरने के नीचे डूबकर भी रस नहीं पाता है बजरी |

अल्लाह - तत्व जान पाए क्या, जो हैं सर्वशक्तिमान?
शक्ति जो नहीं पा सके जीवन में, वो नहीं हैं मुसलमान |
ईमान ! ईमान ! कहते हैं रात दिन, ईमान क्या है इतना आसान ?
ईमानदार होकर क्या कोई ढ़ोता है शैतानी का बोझ ?

सुनो मिथ्यावादी ! इस दुनिया में है पूर्ण जिसका ईमान,
शक्तिधर है वह, बदल सकता है इशारों में आसमान |
अल्लाह का नाम लिया है सिर्फ, नहीं समझ पाए अल्लाह को |
जो खुद ही अंधा हो, वह क्या दूसरों को ला सकता है प्रकाश की ओर ?
जो खुद ही न हो पाया हो स्वाधीन, वह स्वाधीनता देगा किसे ?
वह मनुष्य शहद क्या देगा, शहद नहीं है जिसके मधुमक्खियों के छत्ते में ?

कहाँ हैं वो शक्ति- सिद्ध इमाम, जिनके प्रति पदाघात से
आबे जमजम बहता है बन शक्ति-स्रोत लगातार ?
जिन्होंने प्राप्त नहीं की अपनी शक्ति , हाय वह शक्ति-हीन
बने हैं इमाम, उन्हीं का ख़ुत्बा सुन रहा हूँ निशिदिन |
दीन दरिद्र के घर-घर में आज करेंगे जो नयी तागिद
कहाँ हैं वह महा-साधक लायेंगे जो फिर से ईद ?
छीन कर ले आयेंगे जो आसमान से ईद के चाँद की हंसी,
हंसी जो नहीं होगी खत्म आजीवन, कभी नहीं होगी बासी |
आयेंगे वह कब, कब्र में गिन रहा हूँ दिन ?
रोजा इफ्तार करेंगे सभी, ईद होगी उस दिन |

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কৃষকের ঈদ
বেলাল! বেলাল! হেলাল উঠেছে পশ্চিম আসমানে,
লুকাইয়া আছ লজ্জায় কোন মরুর গরস্থানে।
হের ঈদগাহে চলিছে কৃষক যেন প্রেত- কংকাল
কশাইখানায় যাইতে দেখেছ শীর্ণ গরুর পাল?
রোজা এফতার করেছে কৃষক অশ্রু- সলিলে হায়,
বেলাল! তোমার কন্ঠে বুঝি গো আজান থামিয়া যায়।
থালা, ঘটি, বাটি বাঁধা দিয়ে হের চলিয়াছে ঈদগাহে,
তীর খাওয়া বুক, ঋণে- বাঁধা- শির, লুটাতে খোদার রাহে।

জীবনে যাদের হররোজ রোজা ক্ষুধায় আসে না নিদ
মুমুর্ষ সেই কৃষকের ঘরে এসেছে কি আজ ঈদ?
একটি বিন্দু দুধ নাহি পেয়ে যে খোকা মরিল তার
উঠেছে ঈদের চাঁদ হয়ে কি সে শিশু- পাঁজরের হাড়?
আসমান- জোড়া কাল কাফনের আবরণ যেন টুটে।
এক ফালি চাঁদ ফুটে আছে, মৃত শিশুর অধর পুটে।
কৃষকের ঈদ!ঈদগাহে চলে জানাজা পড়িতে তার,
যত তকবির শোনে, বুকে তার তত উঠে হাহাকার।
মরিয়াছে খোকা, কন্যা মরিছে, মৃত্যু- বন্যা আসে
এজিদের সেনা ঘুরিছে মক্কা- মসজিদে আশেপাশে।

কোথায় ইমাম? কোন সে খোৎবা পড়িবে আজিকে ঈদে?
চারিদিকে তব মুর্দার লাশ, তারি মাঝে চোখে বিঁধে
জরির পোশাকে শরীর ঢাকিয়া ধণীরা এসেছে সেথা,
এই ঈদগাহে তুমি ইমাম, তুমি কি এদেরই নেতা?
নিঙ্গাড়ি' কোরান হাদিস ও ফেকাহ, এই মৃতদের মুখে
অমৃত কখনো দিয়াছ কি তুমি? হাত দিয়ে বল বুকে।
নামাজ পড়েছ, পড়েছ কোরান, রোজাও রেখেছ জানি,
হায় তোতাপাখি! শক্তি দিতে কি পেরেছ একটুখানি?
ফল বহিয়াছ, পাওনিক রস, হায় রে ফলের ঝুড়ি,
লক্ষ বছর ঝর্ণায় ডুবে রস পায় নাকো নুড়ি।

আল্লা- তত্ত্ব জেনেছ কি, যিনি সর্বশক্তিমান?
শক্তি পেলো না জীবনে যে জন, সে নহে মুসলমান।
ঈমান! ঈমান! বল রাতদিন, ঈমান কি এত সোজা?
ঈমানদার হইয়া কি কেহ বহে শয়তানি বোঝা?

শোনো মিথ্যুক! এই দুনিয়ায় পুর্ণ যার ঈমান,
শক্তিধর সে টলাইতে পারে ইঙ্গিতে আসমান।
আল্লাহর নাম লইয়াছ শুধু, বোঝনিক আল্লারে।
নিজে যে অন্ধ সে কি অন্যরে আলোকে লইতে পারে?
নিজে যে স্বাধীন হইলনা সে স্বাধীনতা দেবে কাকে?
মধু দেবে সে কি মানুষে, যাহার মধু নাই মৌচাকে?

কোথা সে শক্তি- সিদ্ধ ইমাম, প্রতি পদাঘাতে যার
আবে- জমজম শক্তি- উৎস বাহিরায় অনিবার?
আপনি শক্তি লভেনি যে জন, হায় সে শক্তি-হীন
হয়েছে ইমাম, তাহারি খোৎবা শুনিতেছি নিশিদিন।
দীন কাঙ্গালের ঘরে ঘরে আজ দেবে যে নব তাগিদ
কোথা সে মহা- সাধক আনিবে যে পুন ঈদ?
ছিনিয়া আনিবে আসমান থেকে ঈদের চাঁদের হাসি,
ফুরাবে না কভু যে হাসি জীবনে, কখনো হবে না বাসি।
সমাধির মাঝে গণিতেছি দিন, আসিবেন তিনি কবে?
রোজা এফতার করিব সকলে, সেই দিন ঈদ হবে।

Monday, March 5, 2018

शंख घोष की कविताएँ

1. त्रिताल
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तुम्हारा कोई धर्म नहीं है, सिर्फ
जड़ से कसकर पकड़ने के सिवाय
तुम्हारा कोई धर्म नहीं है, सिर्फ
सीने पर कुठार सहन करने के सिवाय
पाताल का मुख अचानक खुल जाने की स्थिति में
दोनों ओर हाथ फैलाने के सिवाय
तुम्हारा कोई धर्म नहीं है,
इस शून्यता को भरने के सिवाय |
श्मशान से फेंक देता है श्‍मशान
तुम्हारे ही शरीर को टुकड़ों में
दुःसमय तब तुम जानते हो
ज्वाला नहीं, जीवन बुनता है जरी |
तुम्हारा कोई धर्म नहीं है उस वक़्त
प्रहर जुड़ा त्रिताल सिर्फ गुँथा
मद्य पीकर तो मत्त होते सब
सिर्फ कवि ही होता है अपने दम पर मत्त

2. जन्मदिन
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तुम्हारे जन्मदिन पर और क्या दूँगा इस वायदे के सिवा
कि फिर हमारी मुलाक़ात होगी कभी
होगी मुलाक़ात तुलसी चौरे पर, होगी मुलाक़ात बाँस के पुल पर
होगी मुलाक़ात सुपाड़ी वन के किनारे
हम घूमते फिरेंगे शहर में डामर की टूटी सड़कों पर
दहकते दोपहर में या अविश्वास की रात में
लेकिन हमें घेरे रहेंगी कितनी अदृश्य सुतनुका हवाएँ
उस तुलसी या पुल या सुपाड़ी की
हाथ उठाकर कहूँगा, यह रहा, ऐसा ही, सिर्फ
दो-एक तकलीफ बाकी रह गया आज भी
जब जाने का समय हो आए, आँखों की चाहनाओं से भिगो लूँगा आँख
सीने पर छू जाऊँगा ऊँगली का एक पंख
जैसे कि हमारे सामने कहीं भी और कोई अपघात नहीं
मृत्यु नहीं दिगंत अवधि
तुम्हारे जन्मदिन पर और क्या दूँगा इस वायदे के सिवा कि
कल से हर रोज़ होगा मेरा जन्मदिन |

3. जल

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क्या जल समझता है तुम्हारी किसी व्यथा को? फिर क्यों, फिर क्यों
जाओगे तुम जल में क्यों छोड़ गहन की सजलता को?
क्या जल तुम्हारे सीने में देता है दर्द? फिर क्यों, फिर क्यों
क्यों छोड़ जाना चाहते हो दिन रात का जलभार?

4. कलकत्ता

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हे बापजान
कलकत्ता जाकर देखा हर कोई जानता है सब कुछ
सिर्फ मैं ही कुछ नहीं जानता
मुझे कोई पूछता नहीं था
कलकत्ता की सड़कों पर भले ही सब दुष्ट हों
खुद तो कोई भी दुष्ट नहीं

कलकत्ता की लाश में
जिसकी ओर देखता हूँ उसके ही मुँह पर है आदिकाल का ठहरा हुआ पोखर
जिसमें तैरते हैं सड़े शैवाल

ओ सोना बीबी अमीना
मुझे तू बाँधी रखना
जीवन भर मैं तो अब नहीं जाऊँगा कलकत्ता

5, बाउल
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कहा था तुम्हें लेकर जाऊँगा दूर के दूसरे देश में
सोचता हूँ वह बात
दौड़ती रहती है दूर-दूर तक जीवन की वह सातों माया
सोचता हूँ वह बात
तकती रहती है पृथ्वी, तुमसे हार मानकर वह
बचेगी कैसे !
जहाँ भी जाओ अतृप्ति और तृप्ति दोनों चलती है जोड़े में
सदर में - अंदर में
उदासीन नहीं कुछ से-- समझ सकता हूँ तुम्हारे सीने में
है कुछ और,
यंत्रणा खोलती है उसका ह्रदय फेरों में, उस खुलने का
है अर्थ कुछ और |
नींद में देखता हूँ प्रकाश के पूर्ण- कुसुम नीलांशु को
नहीं बाँध सकता है यह
जगते ही देखता हूँ कितनी विचित्र बात है, एक भी खरोंच नहीं लगी
उसके प्रेम की देह पर
कहा था तुम्हें मैं फैला दूँगा दूर हवा में
सोचता हूँ वह बात
तुम्हारे सीने के अन्धकार में बजा है सुख मदमत्त हाथों से
सोचता हूँ वह बात


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ত্রিতাল
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তোমার কোনো ধর্ম নেই, শুধু
শিকড় দিয়ে আঁকড়ে ধরা ছাড়া
তোমার কোনো ধর্ম নেই, শুধু
বুকে কুঠার সইতে পারা ছাড়া
পাতালমুখ হঠাত্ খুলে গেলে
দুধারে হাত ছড়িয়ে দেওয়া ছাড়া
তোমার কোনো ধর্ম নেই, এই
শূন্যতাকে ভরিয়ে দেওয়া ছাড়া।
শ্মশান থেকে শ্মশানে দেয় ছুঁড়ে
তোমারই ঐ টুকরো-করা-শরীর
দু:সময়ে তখন তুমি জানো
হলকা নয়, জীবন বোনে জরি।
তোমার কোনো ধর্ম নেই তখন
প্রহরজোড়া ত্রিতাল শুধু গাঁথা-
মদ খেয়ে তো মাতাল হত সবাই
কবিই শুধু নিজের জোরে মাতাল !


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জন্মদিন
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তোমার জন্মদিনে কী আর দেব এই কথাটুকু ছাড়া
আবার আমাদের দেখা হবে কখনো
দেখা হবে তুলসীতলায় দেখা হবে বাঁশের সাঁকোয়
দেখা হবে সুপুরি বনের কিনারে
আমরা ঘুরে বেড়াবো শহরের ভাঙা অ্যাসফল্টে অ্যাসফল্টে
গনগনে দুপুরে কিংবা অবিশ্বাসের রাতে
কিন্তু আমাদের ঘিরে থাকবে অদৃশ্য কত সুতনুকা হাওয়া
ওই তুলসী কিংবা সাঁকোর কিংবা সুপুরির
হাত তুলে নিয়ে বলব, এই তো, এইরকমই, শুধু
দু-একটা ব্যথা বাকি রয়ে গেল আজও
যাবার সময় হলে চোখের চাওয়ায় ভিজিয়ে নেবো চোখ
বুকের ওপর ছুঁয়ে যাবো আঙুলের একটি পালক
যেন আমাদের সামনে কোথাও কোনো অপঘাত নেই আর
মৃত্যু নেই দিগন্ত অবধি
তোমার জন্মদিনে কী আর দেবো শুধু এই কথাটুকু ছাড়া যে
কাল থেকে রোজই আমার জন্মদিন।


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জল ~

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জল কি তোমার কোনো ব্যথা বোঝে ? তবে কেন, তবে কেন
জলে কেন যাবে তুমি নিবিড়ের সজলতা ছেড়ে ?
জল কি তোমার বুকে ব্যথা দেয় ? তবে কেন তবে কেন
কেন ছেড়ে যেতে চাও দিনের রাতের জলভার ?


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কইলকাত্তায়
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বাপজান হে
কইলকাত্তায় গিয়া দেখি সক্কলেই সব জানে
আমিই কিছু জানি না
আমারে কেহ পুছত না
কইলকাত্তার পথে ঘাটে সবাই দুষ্ট বটে
নিজে তো কেউ দুষ্ট না

কইলকাত্তার লাশে
যার দিকে চাই তারই মুখে আদ্যিকালের মজা পুকুর
শ্যাওলপচা ভাসে

অ সোনাবৌ আমিনা
আমারে তুই বাইন্দা রাখিস,
জীবন ভইরা আমি তো আর কইলকাত্তায় যামু না



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বাউল
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বলেছিলাম তোমায় নিয়ে যাব অন্য দূরের দেশে
সেই কথাটা ভাবি,
জীবনের ওই সাতটা মায়া দূরে দূরে দৌড়ে বেড়ায়
সেই কথাটা ভাবি,
তাকিয়ে থাকে পৃথিবীটা, তোমার কাছে হার মেনে সে
বাঁচবে কেমন ক'রে !
যেখানে যাও অতৃপ্তি আর তৃপ্তি দুটো জোড়ায় জোড়ায়
সদরে - অন্দরে
উদাসিনী নও কিছুতে --- বুঝতে পারি তোমার বুকে
অন্য কিছু আছে,
যন্ত্রণা তার পাকে পাকে হৃদয় খোলে, সে খোলাটার
অন্য মানে আছে।
ঘুমের মাধ্যে দেখি আলোর ভরা-কুসুম নিলাংশুকে
বাঁধতে পারে না এ :
উঠেই দেখি কী বিচিত্র, একটি আঁচড় লাগে নি তার
ভালোবাসার গায়ে !
বলেছিলাম তোমায় আমি ছড়িয়ে দেব দূর হাওয়াতে
সেই কথাটা ভাবি
তোমার বুকের অন্ধকারে সুখ বেজেছে মদির হাতে
সেই কথাটা ভাবি ।।

पोलियर वाहिद की कविताएँ

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1. शोक

बीते हुए समय की मानिंद
समस्त शोक परिवर्तित हो जाता है भ्रम में
चढ़ाकर रखती है लेप जहर का
इतिहास के अंतिम पन्ने पर रानी!
सोये रहते हैं धुल से सने हुए
गोली के शब्द से मुखर, अप्रस्तुत शोक!

चला जा रहा है मुँह बनाकर ही
अवैध समय!

2. बुलेट 

प्रिय
तुम्हें पता है?
प्रतिदिन सपने में
मेरा पीछा करता है
एक राष्ट्रीय श्वान

मैं बार-बार देखता हूँ दुस्वप्न.....

3. विरोधी स्वप्न 

आज सपने में देखा
खालदे नाम की स्त्री
मुझसे करती है प्रेम!
और इस अपराध में
जलकर राख हो गयी है
हसीना, मेरी पूर्व प्रेमिका!
हाय!
नहीं है इस नाम की मेरी कोई भी प्रेमिका!

4. अवैध समय की संतान 

एक अवैध समय में हुआ मेरा जन्म

जब महत्वपूर्ण हो गया समस्त पृथ्वी में

मन से कहीं अधिक शरीर

और मैं भय से सिहर उठा !

दुधमुंहा संतान जब कर देता है हत्या माँ की

और अपने ही बच्चे माँ को करते हैं कब्र के सुपुर्द

उस दिन से हो जाता है स्नायु अचल....



कुंद होती अनुभूतियां कितने ही पुराने कपड़ों में क्यूँ ना जमा हो

समय के हाथ में वह पहुँचा देगा उत्कट गंध



देखो, हरियाली की हत्या कर बन गया है इंसानों का घर

मिट्टी छोड़ इंसान पैर जमा रहा है आकाश में

ठीक है, लेकिन कोई नहीं रख रहा याद

कि वह भी है प्रकृति की ही संतान



जिस दिन श्रद्धा का पैमाना तब्दील हुआ रुपयों में

जिस दिन पिता का स्नेह भी सन्तान ने तौल दिया तराजू में

ऐसा कि ईश्वर भी हमें जाता देख रोया

प्रेम का पैगम्बर सजदे के बाद भी जब नहीं उठा आज

तब मुझे महसूस हुआ

कि हम हैं इस अवैध समय की संतान!



दो भागों में बंटें हुए हैं इंसान

जिन्हें आज भी बताया जाता है सफ़ेद और काले का अंतर

जो पूजे जा रहे हैं मानविकता के गुणगान पर

उन्ही के हाथों हुई ध्वंश पृथ्वी

तब नहीं रहा कोई भी सामियाना हमारे पास

फिर भी देखो, बबूल में फूल खिले हैं

भाभी की नथ की तरह आयोजित कर

इस कविता में आ सकता था गुलमोहर का विवरण



क्या विडंबना है!

इस कविता को भी लिख गया समय?

फिर भी इस स्वप्न को देखकर जी रहा हूँ

कि पति को घर पर छोड़ आज भी भाग रही है कहीं कोई स्त्री

अपने पूर्व प्रेमी के पास ....

शायद पृथ्वी बची है इसी निश्वास में

मैं तो कवि हूँ , इसीलिए ऐसा प्रेम

 है आज भी बचा विश्वास में ...

5. मृत्यु का निर्भूल क्षण 

ठीक जिस समय मैं लिख रहा हूँ यह कविता
बसंतकाल है!
लेकिन मेरे भीतर हो रही है प्रवाहित
रूखी मानवता!!

मुझे पसंद है मृत्यु
जैसे कि पता है मुझे मृत्यु का निर्भूल क्षण!!

बर्तनी की गलती के इस समय में
जल रहा है दीर्घश्वास का जंगल  

समर्पित स्त्रियों ने फिर भी
नहीं किया प्रेम कभी!
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1. শোক

সমস্ত শোকেরা গতকালের মতোন
ইলুশন হয়ে যায়। ইতিহাস লেখা
শেষক্ত পৃষ্টায় বিষ মাখিয়ে রাখেন
রাণী!
গুলির শব্দে মুখর, অপ্রস্তুত
শোকগুলো ধুলোবালি ছেড়ে শুয়ে থাকে!

মুখ গোমড়া করেই
বয়ে যাচ্ছে অবৈধ সময়!

2. বুলেট

      প্রিয়
          জানো?
         প্রতিদিন
       একটি রাষ্ট্রীয়
       কুকুর; আমাকে
       স্বপ্নঘোরে তাড়া
        করে ফেরে!
         বারবার
          দুঃস্বপ্ন
          ভাবি..

3. বিরোধী স্বপ্ন

আজ স্বপ্ন দেখলাম
খালদে নামের এক নারী
আমাকে ভালোবাসেন!
এই অপরাধে প্রাক্তন প্রেমিকা
হাসিনা জ্বলে ছাই!
হায়!
এমন নামের কোনো প্রেমিকা আমার নাই!

4. অবৈধ সময়ের সন্তান

একটা অবৈধ সময়ে আমার জন্ম
যখন সারা পৃথিবীতে মনের চেয়ে
শারীল মূখ্য হয়ে ওঠে
আর ভয়ে কুকড়ে উঠি আমি!
দুধের সন্তান যেদিন হত্যা করে ফেলে মা
আর আপন সন্তান কবরে গাড়ছে মাকে
যেদিন থেকে স্নায়ু অচল...

ভোঁতা অনুভূতিগুলো যতই পুরনো কাপড়ে জমায় না কেন
সময়ের হাতে সে পৌঁছে দেবে উৎকট গন্ধ

দ্যাখো সবুজকে খুন করে গড়ে উঠছে মানুষের আবাস
মাটি ছেড়ে মানুষ পাড়ি জমাচ্ছে আকাশে
সেও ভালো কিন্তু কেউ মনে রাখছে না
সেও যে প্রকৃতির সন্তান

যেদিন শ্রদ্ধা পরিমাপ হলো টাকার বদলায়
যেদিন বাবার স্নেহও সন্তান তুলে দিলো তুলাদÐ
এমন কি প্রভু আমাদের গমন দেখে ক্রন্দন করলো
প্রেমের নবী সিজদা থেকে আজো যখন উঠলো না
তখন আমার মনে হলো
আমরা এই অবৈধ সময়ের সন্তান!

দুভাগা সব মানুষ
যাদের কাছে সাদা কালোর পার্থক্য আজো সূচীত হয়
যারা মানবিকতার কথা বলে পূজিত হয়
তাদের হাতে ধ্বংস হলো পৃথিবী
তখন আমাদের কোনো সামিয়ানা থাকে না
তবু দ্যাখো বাবলার ফুল ফুটে আছে
ভাবির নথের মতো আয়োজন করে
এই কবিতায় আসতে পারতো কৃষ্ণচূড়ার বিবরণ

কি পরিহাস!
এই কবিতাও নির্মাণ করে দিলো সময়?
তবু এই স্বপ্ন দেখে বাঁচি যে
স্বামীকে ঘরে রেখে আজো পালায় কোনো কোনো স্ত্রী
তার সাবেক প্রেমিকার কাছে...
সম্ভবত পৃথিবী বেঁচে আছে এই নিঃশ্বাসে
আমি তো কবি তাই এমন প্রেম
আছে আজো এই বিশ্বাসে..

5. মৃত্যুর নির্ভুল ক্ষণ

এই কবিতাটি যখন লিখছি
তখন বসন্তকাল!
অথচ আমার ভেতরেই
প্রবাহিত হচ্ছে রুক্ষè মানবতা!!

আমি ভালোবসি মৃত্যু!
যেন দিন-ক্ষণ জানা আছে আমার নির্ভুল!!

বানান ভুলের এই
সময়ে পুড়ছে দীর্ঘশ্বাসের বন

উৎসর্গীত নারীরা তবু
বাসেনি কখনো ভালো!