Sunday, November 30, 2014

उम्मीदों के बीज

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मैं करती हूँ प्रतीक्षा तुम्हारी ठीक वैसे
जैसे करता है इंतज़ार न्याय की
साल दर साल उम्मीद बाँधे कोई बेक़सूर


मैं करती हूँ सवाल और देखती हूँ तुम्हें
टकटकी लगाये जैसे देखता है आसमान
बीज रोपण के बाद कोई किसान


मैं करती हूँ प्रेम तुमसे कुछ उस तरह
बिन देखे नौ महीने की लम्बी अवधि तक
जैसे करती है प्रेम अपने अजन्मे शिशु को माँ


प्रेम ने उम्मीदों के बीज बचाकर रक्खे हैं !!!

----सुलोचना वर्मा------

Saturday, November 29, 2014

बीता हुआ वक़्त

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क्या बाँधा किसी ने उस इकलौते कुत्ते को 
मरुथल में काटा जिसने ऊँट पर बैठे इंसान को
और जिंदगी की अदालत में मुजरिम बना वक़्त


क्या वक्त इतना था बुरा कि मिले उसे सजा उम्रकैद की 
और दर्ज होकर रह जाए उसका बुरा होना इतिहास में
फिर मान ले मानदण्ड लोग अपने बचाव की खातिर उसे


क्या ज़िक्र हुआ किसी किताब में उन करोड़ों लोगों का
जो चढ़े ऊँटों पर एक नहीं, कई बार
और जिन पर नहीं किया हमला किसी कुत्ते ने 


काश हम सीख पाते कि हादसों से इतर हैं घटती
सुंदर घटनाएं भी जीवन में
कि बीता हुआ वक़्त गुज़र नहीं पाता
ठहर जाता है हमारी स्मृतियों में


---सुलोचना वर्मा-----

Friday, November 28, 2014

चिठ्ठियाँ

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नहीं लिखेगी किसी सांकेतिक भाषा में चिठ्ठी 
मेरी कविता की खूबसूरत नायिका
कि उसे पसंद है स्पष्टवादी बने रहना


नहीं लिखेगी चिठ्ठी में कि सबकुछ है ठीक
जहाँ जीवन ने पकड़ लिया हो खटिया अवसाद का 
और जीवन में बचा हो जीवन बहुत थोड़ा


नहीं लिखेगी कि मना पाएगी ज़श्न जिंदगी का अकेले
कि वह खूबसूरत है क्लियोपैट्रा सी
और दुनिया है पागल उसके प्रेम में


नहीं लिखेगी कि उसे मालूम है वो सारी बातें
जो उसने कभी कहा ही नहीं
और फिर भी करती है प्रेम


नहीं लिखेगी कि नहीं रहती वो अब अपने आप में
कि छोड़ आयी थी खुद को 
पिछली मुलाक़ात के अंतिम स्टेशन पर


नहीं लिखेगी कि जी लेती है तीन रत्ती भर
बीते पलों को हर रोज़ कई बार
कि वह पल था हीरे सा जीवन के शुक्र पर्वत पर


अब वह नहीं लिखेगी!!!

-----सुलोचना वर्मा--------

Wednesday, November 26, 2014

मसाई मारा

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होने वाली है सभ्यता शिकार स्वयं अपनी
खूबसूरत मसाई मारा के बीहड़ जंगलों में
इसी साल दो हज़ार चौदह के अंत तक
और हुआ है जारी फरमान मसाइयों को
उनकी ऐतिहासिक मातृभूमि छोड़ने का
कि चाहिए शिकारगाह शाही परिवार को 
जो करता है वास विश्व के आधुनिक शहर में
जिसे हम जानते है दुबई के नाम से
और सभ्यता के नए पायदान पर
खरीद लिया है दुबई के शाही परिवार ने
ज़मीन का एक टुकड़ा तंज़ानिया में
जहाँ वो करेंगे परिभाषित सभ्यता को
नए शिरे से अपनी सहूलियत के मुताबिक

दिखाकर सभ्यता को अपनी पीठ

पीड़ा से होगा पीला मसाई में उगता सूरज अब 
जिसे देखने जाते थे दुनिया के हर कोने से लोग
रहेगा भयभीत चिड़ियों के कलरव से भरा जंगल
और गूंजेगी आवाज़ दहशत की चारों ओर


जहाँ झेलना होगा दर्द विस्थापन का
मसाई लोगों को अपनी ही माटी से
दुखी हो रहा है सभ्यता का इतिहास
कि उसे करनी होगी पुनरावृति दर्द की


----सुलोचना वर्मा-------

Tuesday, November 25, 2014

सुबह

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उजियाली उतर आई भोर की सीढ़ियाँ
थामकर सूरज का हाथ ,
गा रही है कोयल उनके स्वागत में गीत ,
नहीं करने देता महसूस झर झर बहता झरना
कमी किसी प्रकार के वाद्ययंत्र की ,
बिन घुँघरू बांधे मोर कर रहा है रियाज
अपने चिरपरिचित सूफियाने अंदाज में
और पर्वत ??
कर रहा है अवलोकन
केवल एक अच्छा श्रोता बन 
किसी के रूप का ; तो किसी के हूनर का
निखर रही हैं डाल पर कोपलें
पाकर सुरभित बयार का स्नेहिल स्पर्श,
और पखार रहा है मेघ धरणी का चरण


बेहद खूबसूरत होता है जागना कभी कभार
तन्द्रा का टूटना जिसे कहते हैं


-----सुलोचना वर्मा --------

 

Tuesday, November 18, 2014

अच्छे के लिए

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इक वो रहा जैसे है मौजूद हवा फिजाओं में
इक रही वो जैसे कि बहती है नदी कलकल सी
और पसंद रहा दोनों को करना बातें सब्र तलक  


जो बहती रही बनकर नदी
मोड़ लेना चाहती थी रुख अपना
कि बनी रहे हमसफ़र हवा की
और मुश्किल था जीना बिन हवा के


जो इक रहा हवा सा
न था मयस्सर उसे डूबना पानी में
कि अभी बची थी नदियाँ और भी कई


नदी ने समंदर में कूदकर जान दे दी
उधर गूंज रहा है हवा का गीत फिजाओं में
जो भी होता है ; होता है अच्छे के लिए


-------सुलोचना वर्मा

Monday, November 10, 2014

एक गैर जरुरी कविता

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ज़रूरी नहीं होता कुछ घटनाओं का विशेष होना
जबकि घटते रहना उनका होता है बेहद ज़रूरी
जैसे कि लेते रहना श्वास होता है बेहद ज़रूरी
किसी विशेष दिन जिसमें ज़रूरत से हो अधिक 
कार्बन मोनो-ऑक्साइड की मात्रा हवा में


जैसे होना नाव पर सवार होता है बेहद ज़रूरी
किसी एक विशेष दिन जहाँ पानी में हो उफान
और दिनों से अधिक, और आप पेशे से हों मछुआरे


कहने को तो ज़रूरी यूँ कुछ भी नहीं होता
फिर भी होती हैं कुछ बातें बेहद ही ज़रूरी 
जो समझा जाती हैं आपको मुख़्तसर सी बात  
कि ज़रूरी है हौसला जिंदा रहने के लिए 
और बनाये रखने ले लिए जीवन को
एक मुकम्मल कविता जिंदगी तलक


-------सुलोचना वर्मा