Sunday, July 12, 2015

विज्ञान

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आख़िर ढूँढ ही लिया विज्ञान ने तुम्हारे मकबरे को
जहाँ सोये पड़े हो हजारों सालों से तुम चिरनिंद्रा में


सबसे आसान रहा जान लेना तुम्हारा नाम तुतनखामन
कि वह खुदा था सोने की ताबूत में और संकेतों में भी
फिर खोला एक-एक कर पट्टियों को तुम्हारी ममी से
जब वो कर रहे थे ऐसा क्या तुम्हे दर्द हुआ था तुतनखामन?


कंप्यूटर टोमोग्राफी ने बताया तुम्हारा भोजन था पौष्टिक
कि तुम्हारी हड्डियों में अब भी मौज़ूद थे खनिज पदार्थ
और फोरेंसिक विश्लेषण ने तुम्हारी उम्र बताई उन्नीस
क्या तुम्हारे पास खाने की आहार योजना थी तुतनखामन?


सुन्दर बनावट तुम्हारे नाखूनों की कर रही थी इशारा
शाही परिवार से तुम्हारे करीबी ताल्लुकात की ओर  
फिर बिखरा था मकबरे में कीमती चीजों का जखीरा
क्या तुम जानते थे कि राजाओं को भी मरना होता है तुतनखामन?


विज्ञान का कमाल ही है कि हम जान पाए तुम्हारे बारे में
पर विज्ञान अपनी प्रोद्योगिकी से नहीं कर पाया अविष्कार
किसी ऐसे यंत्र का जो माप सके दुःख अल्पायु में मरने का
या माप सके संतोष एक किशोरवय राजा के दफ्न होने का
अपने ही दो मृत जन्मे नन्हें राजकुमारों के बिलकुल पास
क्या तुम्हारा प्रसिद्ध श्राप विज्ञान के लिए था तुतनखामन?

 ------सुलोचना वर्मा---------

Sunday, July 5, 2015

यात्रा

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जब कभी जाना रहा मुझे बंगलुरु
हवाई जहाज से की यात्रा मैंने
कि मेरे पास रही समय की कमी

 
चुना मैंने रेल मार्ग हमेशा ही 
मैं जब कभी भी गयी बेगुसराय
कि मेरी आमद भी रही सीमित

 
मैं चुनूँगी जल मार्ग उस रोज
जाना हुआ जब बोरा बोरा द्वीप
कि फैला सकूँ पैर कुछ ज्यादा

 
जहाँ घट रहा है पृथ्वी का आयतन 
और सिमट रही है हमारी धरती
बढ़ रही है दूरियाँ बस इंसानों के बीच

 
बताओ न, अक्कड़ बक्कड़नुमा यात्राओं के
इन बं बे बो वाले जाने-माने पड़ावों से भी पड़े
कौन सा है मार्ग जो तुम्हारे हृदय तक पहुँचे!

 
----सुलोचना वर्मा------------