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जब दिखेंगे आम के मंजर अगले बरस
फागुन बौरा उठेगा
और मैं हो जाउंगी सरसों की तरह
थोड़ी और पीली दर्द से
जब झूमेगा मौसम कोयल की कूक से
एक हुक मेरे अन्दर भी उठेगी
एक दिन वैशाख लगा जाएगा पेड़ पर टिकोला
और हो उठेगा खट्टा मेरे स्वाद का मन
जेठ भारी हो जाएगा मन के मौसम में
ज्यूँ लद जायेगी टहनी पके फलों से
जब दिखेगा बिकता लंगड़ा सावन के बाज़ार में
मन गुज़रे मीठे पलों की बैशाखी ढूँढ लेगा
मुझे तुम पसंद रहे आम की तरह
हमारा साथ भी आम के मौसम जितना रहा
जी रही हूँ मैं अब तुम्हारी आम्रपाली सी यादें !!!
-----सुलोचना वर्मा---------
जब दिखेंगे आम के मंजर अगले बरस
फागुन बौरा उठेगा
और मैं हो जाउंगी सरसों की तरह
थोड़ी और पीली दर्द से
जब झूमेगा मौसम कोयल की कूक से
एक हुक मेरे अन्दर भी उठेगी
एक दिन वैशाख लगा जाएगा पेड़ पर टिकोला
और हो उठेगा खट्टा मेरे स्वाद का मन
जेठ भारी हो जाएगा मन के मौसम में
ज्यूँ लद जायेगी टहनी पके फलों से
जब दिखेगा बिकता लंगड़ा सावन के बाज़ार में
मन गुज़रे मीठे पलों की बैशाखी ढूँढ लेगा
मुझे तुम पसंद रहे आम की तरह
हमारा साथ भी आम के मौसम जितना रहा
जी रही हूँ मैं अब तुम्हारी आम्रपाली सी यादें !!!
-----सुलोचना वर्मा---------