Wednesday, September 24, 2014

एक आम सी कविता

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जब दिखेंगे आम के मंजर अगले बरस
फागुन बौरा उठेगा
और मैं हो जाउंगी सरसों की तरह
थोड़ी और पीली दर्द से


जब झूमेगा मौसम कोयल की कूक से
एक हुक मेरे अन्दर भी उठेगी


एक दिन वैशाख लगा जाएगा पेड़ पर टिकोला
और हो उठेगा खट्टा मेरे स्वाद का मन  

 
जेठ भारी हो जाएगा मन के मौसम में
ज्यूँ लद जायेगी टहनी पके फलों से


जब दिखेगा बिकता लंगड़ा सावन के बाज़ार में
मन गुज़रे मीठे पलों की बैशाखी ढूँढ लेगा


मुझे तुम पसंद रहे आम की तरह
हमारा साथ भी आम के मौसम जितना रहा


जी रही हूँ मैं अब तुम्हारी आम्रपाली सी यादें !!!

-----सुलोचना वर्मा---------

Saturday, September 13, 2014

इन्द्रधनुष

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मन की इच्छा थी बैंगनी
बहारों के फूलों सी फालसई
और मन का आकाश था आसमानी


दहक उठा मन पलाश सा नारंगी होकर
वसंत के मौसम में लेकर अपनी अनगिनत आशायें


फिर पड़ गई रंगत पीली मन के त्वचा की
दर्द के पतझड़ में


हुआ रंग नीला मन के विषाक्त रक्त का
और लाल मन की आँखे


जीवन के सावन में
मन का जख्म हरा ही रहा 


कमबख्त जिसे कहते रहे मन
इन्द्रधनुष निकला


------सुलोचना वर्मा ...........