Thursday, December 30, 2021

दुर्बलता (मीठे की)

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 केवल चाहने भर से 

नाप सकती हूँ देश की चौहद्दी 

लाँघ सकती हूँ समन्दर, पहाड़ और नदी

पड़ ही जाए अगर ज़रुरत  

कर सकती हूँ जूता सिलाई से चण्डी पाठ तक 

जनम सकती हूँ कोई महापुरुष खाकर परमान्न 

लिख सकती हूँ व्यर्थ प्रेम की सबसे सुन्दर कविता

उगा सकती हूँ नीला फूल दुर्गम दरिया के ठीक मध्य  

केवल चाहने भर से 

कर सकती हूँ और भी बहुत कुछ 

पर वर्षों से चाह-चाहकर भी 

नहीं मिटा पाती तुम्हारी चाहत !

उपचार करे मेरी इस अवस्था का  

वह कविराज नहीं पृथ्वी पर 

न ऐसी औषधि की है उपलब्धता   

और ईश्वर ?

जो स्वयं खा रहा है छप्पन भोग

भला कैसे करेगा दूर मेरी यह दुर्बलता !