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दिसम्बर की इकत्तीस तारीख है और साल का आखिरी दिन
छाया है बाहर घना कुहासा और ढूँढ रही हूँ मैं अंतर्जाल पर
इस हाड़ कंपाती ठण्ड में सर्दी से बचने के घरेलू उपाय जिस वक्त
बंद हैं घर की तमाम खिड़कियाँ और दरवाजे, पर्दे उठे हुए हैं
देख रही है बकुल के पेड़ पर बैठी गोरैया पत्तों पर ठहरी ओस की बूंदों को
और स्पर्श कर रहा है उसे सुबह के सफ़ेद कुहासे का नैसर्गिक हिम चुम्बन
नहीं ठहरना चाहता है कुहासे का यह सौन्दर्यबोध सर्दी से सूजी मेरी आँखों में
मुरीद है कुहासे की सुन्दरता का काठसोला का पीला और नीलकाँटा का बैंजनी फूल
कमल और सिंघाड़े के पत्तों के साथ गेहूँ की बालियों का शीर्ष और हरी दूब की नोंक
पढ़ी है मैंने कहानी कुहासे की सफेद कफन में लिपटे उन तमाम लोगों के शव पर
जो मारे गए रेल और सड़क दुर्घटनाओं में लिए अपने अन्दर उम्मीदों का उजाला
मैंने देखा है रंग कुहासे का शल्य शाला में मुझे निश्चेत करती चिकित्सक के पोशाक में
मेरी नासारंध्रों ने महसूस किया है गंध कुहासे का नेबुलाइजर से फेफड़ों तक जाती दवा में
सुना है कुहासे का संगीत मैंने होते हुए उत्सारित साइबेरियन पक्षियों के कंठ से कई बार
चखा है स्वाद कुहासे का देर तक हिमीकृत हुई कुल्फी पर, महसूस किया पहले छू कर
छब्बीस दिनों बाद, थोड़ी देर के लिए ही सही, मैं भी आ जाऊँगी कुहासे के इस चादर तले
मैं, जो बंद हूँ घर की चहारदीवारी में इन दिनों और हो गयी हूँ बेहद कमजोर
गाऊँगी मुक्तकंठ से "जन-गण-मन अधिनायक जय हे" सबके साथ मिलकर
कुछ बच्चे दौड़ रहे होंगे लेकर हाथों में केसरिया, सफ़ेद और हरे रंग के गुब्बारे
और कुछ दौड़ रहे होंगे उन कपोतों के पीछे जो चुग रहे होंगे जमीन पर गिरी लड्डू की बूंदों को
इसी दौड़ भाग में छूट जायेंगे कुछ गुब्बारे बच्चों के हाथों से और उड़ने लगेंगे आकाश की ओर
होकर मायूस बच्चे उलट देंगे अपना निचला होंठ और बेबस हो देखेंगे ऊपर
उनकी मासूम मायूसी पर होकर उदास मैं लपककर पकड़ लूँगी कोई एक गुब्बारा
फिर क्या पता, मैं भी उड़ जाऊं गुब्बारे के संग ही उसकी सूत पकड़े !!
हो सकता है कि पहुँच जाऊं कुहासे के ऊपर जहाँ दमक रही होती है सूरज की स्वर्ण आभा
हो सकता है कुहासे का हिमस्पर्श पढ़ दे मुझ पर अपना वशीकरण मन्त्र और मैं हो जाऊं वशीभूत
पड़ जाऊं कुहासे के हिमेल प्रेम में और भूल जाऊं मुक्ति का गीत कि प्रेम भी नेबुलाइजर होता है
हो सकता है तब आए गोरैया उड़कर बकुल के पेड़ से और गाकर मुझे याद दिलाये धरती का गीत
हो सकता है पहुँच जाए मुझ तक कई सारे कपोत सुन बच्चों का आग्रह, समेट ले मुझे अपने पंखों में
और लाकर वापस धर दे मुझे कुहासे के उसी चादर तले जैसे कि जो कुछ भी घटा एक सपना भर हो
हो सकता है कि तब मेरे प्रार्थना में जुड़े हुए हाथ करें पंछी बन जाने की कामना कुहासे के ऊपर जाने को
हो सकता है, कुहासा ही है और घने कुहासे में कुछ भी हो सकता है, फिर प्रेम हो या दुर्घटना, बात एक ही है |
दिसम्बर की इकत्तीस तारीख है और साल का आखिरी दिन
छाया है बाहर घना कुहासा और ढूँढ रही हूँ मैं अंतर्जाल पर
इस हाड़ कंपाती ठण्ड में सर्दी से बचने के घरेलू उपाय जिस वक्त
बंद हैं घर की तमाम खिड़कियाँ और दरवाजे, पर्दे उठे हुए हैं
देख रही है बकुल के पेड़ पर बैठी गोरैया पत्तों पर ठहरी ओस की बूंदों को
और स्पर्श कर रहा है उसे सुबह के सफ़ेद कुहासे का नैसर्गिक हिम चुम्बन
नहीं ठहरना चाहता है कुहासे का यह सौन्दर्यबोध सर्दी से सूजी मेरी आँखों में
मुरीद है कुहासे की सुन्दरता का काठसोला का पीला और नीलकाँटा का बैंजनी फूल
कमल और सिंघाड़े के पत्तों के साथ गेहूँ की बालियों का शीर्ष और हरी दूब की नोंक
पढ़ी है मैंने कहानी कुहासे की सफेद कफन में लिपटे उन तमाम लोगों के शव पर
जो मारे गए रेल और सड़क दुर्घटनाओं में लिए अपने अन्दर उम्मीदों का उजाला
मैंने देखा है रंग कुहासे का शल्य शाला में मुझे निश्चेत करती चिकित्सक के पोशाक में
मेरी नासारंध्रों ने महसूस किया है गंध कुहासे का नेबुलाइजर से फेफड़ों तक जाती दवा में
सुना है कुहासे का संगीत मैंने होते हुए उत्सारित साइबेरियन पक्षियों के कंठ से कई बार
चखा है स्वाद कुहासे का देर तक हिमीकृत हुई कुल्फी पर, महसूस किया पहले छू कर
छब्बीस दिनों बाद, थोड़ी देर के लिए ही सही, मैं भी आ जाऊँगी कुहासे के इस चादर तले
मैं, जो बंद हूँ घर की चहारदीवारी में इन दिनों और हो गयी हूँ बेहद कमजोर
गाऊँगी मुक्तकंठ से "जन-गण-मन अधिनायक जय हे" सबके साथ मिलकर
कुछ बच्चे दौड़ रहे होंगे लेकर हाथों में केसरिया, सफ़ेद और हरे रंग के गुब्बारे
और कुछ दौड़ रहे होंगे उन कपोतों के पीछे जो चुग रहे होंगे जमीन पर गिरी लड्डू की बूंदों को
इसी दौड़ भाग में छूट जायेंगे कुछ गुब्बारे बच्चों के हाथों से और उड़ने लगेंगे आकाश की ओर
होकर मायूस बच्चे उलट देंगे अपना निचला होंठ और बेबस हो देखेंगे ऊपर
उनकी मासूम मायूसी पर होकर उदास मैं लपककर पकड़ लूँगी कोई एक गुब्बारा
फिर क्या पता, मैं भी उड़ जाऊं गुब्बारे के संग ही उसकी सूत पकड़े !!
हो सकता है कि पहुँच जाऊं कुहासे के ऊपर जहाँ दमक रही होती है सूरज की स्वर्ण आभा
हो सकता है कुहासे का हिमस्पर्श पढ़ दे मुझ पर अपना वशीकरण मन्त्र और मैं हो जाऊं वशीभूत
पड़ जाऊं कुहासे के हिमेल प्रेम में और भूल जाऊं मुक्ति का गीत कि प्रेम भी नेबुलाइजर होता है
हो सकता है तब आए गोरैया उड़कर बकुल के पेड़ से और गाकर मुझे याद दिलाये धरती का गीत
हो सकता है पहुँच जाए मुझ तक कई सारे कपोत सुन बच्चों का आग्रह, समेट ले मुझे अपने पंखों में
और लाकर वापस धर दे मुझे कुहासे के उसी चादर तले जैसे कि जो कुछ भी घटा एक सपना भर हो
हो सकता है कि तब मेरे प्रार्थना में जुड़े हुए हाथ करें पंछी बन जाने की कामना कुहासे के ऊपर जाने को
हो सकता है, कुहासा ही है और घने कुहासे में कुछ भी हो सकता है, फिर प्रेम हो या दुर्घटना, बात एक ही है |