Wednesday, June 29, 2016

रास्ता

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बनाया जा रहा है रास्ता
पहाड़ों को काटकर कहीं
तो कहीं रिश्तों को काटकर
वहाँ कड़ी है धुप, छाँव नहीं

---सुलोचना वर्मा--------

Thursday, June 23, 2016

चलते रहना था आहिस्ता

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मुझे चलते रहना था आहिस्ता बस इतना  
कि तुम रहते हमेशा मुझसे दो कदम आगे 
और रह-रहकर पाकर खुद को अकेला 
ताकते रहते मुझे मुड़-मुड़कर पीछे 

मुझे चलते रहना था आहिस्ता बस इतना  
कि मुझे मिल पाता मौका समझने का 
तुम्हारी कही हुई बातों को समय देकर 
कि समय रहते संभल जाती समय पर 

मुझे चलते रहना था आहिस्ता बस इतना  
कि हमारे बीच बनी रहती दूरी ठीक उतनी 
रखता है गड़ेरिया भेड़ों के झुण्ड से जितना 
और करते रहते अनुशरण एक-दूसरे का 

जैसे रेगिस्तान में  दृष्टिभ्रम है मृगमरीचिका 
कुछ पाने की चाह में भूल की पुनरावृति 
बचाना था खुद को बनने से तुम्हारा हमसाया 
मुझे चलते रहना था आहिस्ता बस इतना  

----सुलोचना वर्मा------------

Thursday, June 16, 2016

अच्छे दिन

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इस देश के आकाश में लगा है ऐसा चंद्रग्रहण 
कि ग्रास हुई जाती हैं हमारी तमाम आकांक्षायें 
ऐसे में हमारे राजनेता बन बैठे हैं राजज्योतिष 
और दे रहे हैं हमें तसल्ली अच्छे दिनों की ऐसे 
कि जैसे ग्रह बदलते हों दिशा उनकी ही इच्छा से 

उनके दामन पर लगी हैं छींटे मंगल ग्रह के रंगत जैसी  
जबकि वह दिखना चाहते हैं बृहस्पति ग्रह जैसा सुन्दर 
उनकी जुबान पर भले ही दिखता हो प्रभाव कर्क राशि का 
वो बताते हैं खुद को सहनशील तुला राशि के समान 
और लग जाता है देश की कुण्डली में कालसर्प योग 

हाय! कैसे हो निवारण देश की कुण्डली में लगे इस दोष का 
कि जानते हैं हमारे राजनेता, हाँ वही जो बन बैठे हैं राजज्योतिष 
कि देश की अधिकतर जनता आज भी करती है विश्वास 
अपने कर्मों से कहीं अधिक भाग्य और भाग्यविधाता पर 
और वो बेच रहें हैं भ्रम का ताबीज़ भरकर तसल्लियों का मोम 

राजनेता, हाँ वही, जो बन बैठे हैं राजज्योतिष 
अब देश के भाग्यविधाता बन जाना चाहते हैं 
हमारे कर्मों के मुँह पर मचाता है शोर चेचक का दाग 
और हम हैं कि टीवी के सामने एकाग्रता से बैठकर 
फेयर एंड लवली का विज्ञापन देख रहे होते हैं!

विज्ञापन के बीज मन्त्र से आहुति ले रहे हैं देश के भाग्यविधाता 
और जनता है संतुष्ट कि अब जल्द ही आयेंगे अच्छे दिन !!!

--सुलोचना वर्मा----

Wednesday, June 15, 2016

बचे रहने का अभिनय

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हम जिंदा रहते हैं फिर भी 
उस पहाड़ की तरह जो दरकता है हर रोज़ 
या काट दिया जाता है रास्ता बनाने के लिए 
और फिर भी खड़ा रहता है सर उठाये 
बचे रहने का अभिनय करते हुए 

हम जिंदा रहते हैं फिर भी 
रसोईघर के कोने में पड़े उस रंगीन पोंछे की तरह 
जो घिस-घिसकर फट चुका है कई जगहों से 
और फिर भी हो रहा है इस्तेमाल हर रोज़ कई बार 
बचे रहने का अभिनय करते हुए 

हम जिंदा रहते हैं फिर भी 
मिट्टी के चूल्हे में जलते कोयले की तरह 
जो जल-जलकर बन जाता है अंगार 
और फिर भी धधकता रहता है 
बचे रहने का अभिनय करते हुए 

हमारी अभिनय क्षमता तय करती है हमारा जिंदा दिखना 
और हमारा जिंदा दिखना ही है विश्व की सबसे रोमांचक कहानी 

---सुलोचना वर्मा -----

Friday, June 3, 2016

गंगाजल

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उतर आये हैं इलाहाबाद और दिल्ली की सड़कों पर नौजवान 
 मांगते हुए रोजगार का अधिकार
और वो हैं कि गंगाजल की होम डिलिवरी की बात कर रहे हैं 

बैठे हैं हरिद्वार के किसी कोने में पर्यावरण प्रेमी और समाज सेवी 
 गंगा बचाओ आन्दोलन पर 
और वो हैं कि गंगाजल की होम डिलिवरी की बात कर रहे हैं 

हे नौजवानों, हे पर्यावरण प्रेमियों, हे समाज सेवियों !
यह वक़्त है चौकन्ना रहने का 
दरअसल वो तुम्हारे घर तक पहुंचकर तुम्हारे मनसूबों पर पानी फेर देना चाह रहे हैं  

---सुलोचना वर्मा---------

Wednesday, June 1, 2016

उन दिनों(प्रेम)

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                          1.
उसने कहा "मैं हूँ और मेरा वक़्त है"
और ऐसा कहकर माँग लिया मेरा साथ  
वह एक बेहद थका हुआ समय था 
जिसमे चल पड़े थे हम तेज क़दमों से 
उन दिनों हमारा वक़्त हमसे माँग रहा था केवल प्रेम  

                         2.
वक़्त जो माँग रहा था प्रेम, बदल गया 
अब सिर्फ था वह और थी उसकी जरूरतें 
उन जरूरतों की सूचि में कहीं भी नहीं थी मैं 
लाज़िम था मेरी जरूरतों को नहीं दिया उसने अपना वक़्त  
ऐसे में अब सिर्फ बेशर्म वक़्त ही था जो रह गया मेरे पास  

                        3.
मुस्कुरा देती हूँ मैं अक्सर यह सोचकर कि मालूम था उसे 
कि बंद पड़ी थीं तमाम घड़ियाँ मेरे घर की, एक अरसे से
और मैं नहीं चल रही थी समय के साथ मिलाकर ताल 
वह जानता था बख़ूबी कि वक़्त नहीं लगता है वक़्त बदल जाने में 
और यह भी कि जरूरतें बदल जाती हैं वक़्त के ही साथ 

                       4.
आज भी बंद पड़ी हैं तमाम घड़ियाँ मेरे घर की 
कि उसमें दर्ज है वह समय जब हम पहली बार मिले थे 
घड़ी में तीन बजाते काँटों की शक्ल बनाती है आकार उसकी ऊँची नाक की
जो थोड़ा और तन जाती है मेरी हर शिकायत के बाद 
गिर रही हूँ मैं प्रेम की गहरी खाई में इन दिनों, मुझे घेरे खड़ा है वक़्त का ऊँचा पहाड़ !!!!

आई ऍम फॉलिंग इन लव - प्रेम में गिर जाना जिसे कहते हैं!!!

---सुलोचना वर्मा -------