Thursday, August 29, 2013

रिश्ता

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जो ख़त्म हो गया, वो प्रेम नही, दरकार था
क्या तौलना रिश्तों को दुनिया के तराजू में
यादें मीठी हों तो, मान लेना उपहार था
और अगर हों खट्टी, जान लेना उपकार था

हक़ीकत है ज़िंदगी की, प्रेम का अपना वज़ूद नही होता
बिना ज़रूरतों के प्यार, कँही भी मौज़ूद नही होता
क्यूँ लगाना दिमाग़ रिश्तों की ऐसी बाज़ारी में
रिश्ता वह मूलधन है, जिस पर कोई सूद नही होता

-----सुलोचना वर्मा-----


Wednesday, August 28, 2013

जन्माष्टमी

28.8.2013
ऐ चरवाहे ......
तू निर्गुन क्यों गाता  है
क्या आशावरी नही आती तुम्हे
ये प्रश्न उभर आता है
ये कौरवों का देश है
यहाँ हैं धृतराष्ट्र अनेक
बढ़ गया  दुःशासन का दुःसाहस
सिला रह गया उसका विवेक
अर्जुन को मिला था ज्ञान गीता का
सो दे रहा वो उपदेश
कर्म करते रहने का
बिसर गया निर्देश
राग कंबोजी फिर से गाओ
ना रहे कोई विषमता
मर्दों में पौरुषता भर दो
और स्त्रियों में ममता
शंख, सुदर्शन फिर उठा लो
हो जाओ रथ पर सवार
अवतरित हो नये रूप में
करो मानवता का उद्धार
एक नही कई नंद हैं
सब कर रहे इंतजार


-----सुलोचना वर्मा-----

Saturday, August 24, 2013

ज़िंदगी

23.8.2013
ऐ धरती
समेट लेने दे मुझे मेरी चादर
मेरा आसमान पिघल रहा है
मेरी तकलीफ़ों का सूरज
मेरा चाँद निगल रहा है
आरजू के पहाड़ बढ़ते ही जा रहे हैं
इस पथरीली ज़मीन पर
मेरा पाँव फिसल रहा है
सितारों की बारिश हुए
अरसा बीत गया है
आसमान में अब सिर्फ़
काला बादल निकल रहा है
हौसले की उँची उड़ान
उड़ चुकी हूँ अविरल
उम्र के इस मोड़ पर
मेरा पंख विकल रहा है


-----© सुलोचना वर्मा-------
 

हालात

23.8.2013

इल्म-ए- नज़ुम नही है हमे लेकिन
हालात कहते  हैं, सितारे गर्दिश में हैं

(c) सुलोचना वर्मा