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आज उसे अभिमान हुआ है
अमलतास की आड़ से वो मुझको देख रहा है
वो कल भी आया था मुझसे मिलने
घर की खिड़की बंद पड़ी थी, सो वो रूठ गया है
आज उसे अभिमान हुआ है
अमावश्या की रात जब, वो नदारत रहता है
छुपके मेरे पास आकर, मुझसे कहता है
तुम मेरे बचपन की साथी, पूर्णिमा यूँ ही इतराती
तंग गलिओं से वो, फिर वापस जाता है
पर आज उसे अभिमान हुआ है
छुपके मेरे पास आकर, मुझसे कहता है
तुम मेरे बचपन की साथी, पूर्णिमा यूँ ही इतराती
तंग गलिओं से वो, फिर वापस जाता है
पर आज उसे अभिमान हुआ है
संग मेरे जगकर, बाँट लेता था वह तन्हाई का ग़म
जब दुनिया रहती स्वप्नमय, और शबनम की आँखे नम
उसकी रौशनी में नहाकर, रात भी हो उठती अनुपम
अँधेरा होकर भी नहीं होता, मिट जाता हर सघन तम
पर आज उसे अभिमान हुआ है
जब दुनिया रहती स्वप्नमय, और शबनम की आँखे नम
उसकी रौशनी में नहाकर, रात भी हो उठती अनुपम
अँधेरा होकर भी नहीं होता, मिट जाता हर सघन तम
पर आज उसे अभिमान हुआ है
घर के चौखट पर खड़ी हूँ, उससे मिलने को अड़ी हूँ
नही बताया फिर भी उसने, कब वो आ रहा है
मुझे यकीं है वो आएगा, बिहू मेरे संग गाएगा
यूँ भी प्रेमियों का मिलना, कब आसान हुआ है
बस आज उसे अभिमान हुआ है
नही बताया फिर भी उसने, कब वो आ रहा है
मुझे यकीं है वो आएगा, बिहू मेरे संग गाएगा
यूँ भी प्रेमियों का मिलना, कब आसान हुआ है
बस आज उसे अभिमान हुआ है
सुलोचना वर्मा