Sunday, June 4, 2017

देवी

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जब जागी थी देवी योगनिद्रा से 
कर नदी में स्नान, पाँव में लगाया था आलता 
कर रहे थे श्रृंगार मुक्त केशों का नदी के जलबिंदु 
बतास में घुली थी एक नूतन गंध 
आँखों में डाल अंजन, माथे पर लगाकर कुमकुम
चढने लगी थीं सीढियां मंदिर की 

कुल पाँच सीढ़ी चढ़ उतर आई थीं उलटे पाँव 
लिए मंद मुस्कान अधरों पर 
लिखा था प्रवेश द्वार पर मंदिर के 
"रजस्वला स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है"

जिसे तुम खड्ग कहते हो 
वह प्रश्न चिन्ह है देवी का 
कि है वह कौन जो रहती है 
मंदिर के अंतरमहल में 
फिर भी रह जाती है अपरिचित ही 
करते हो किसे तुम समर्पित फिर 
यह क्षुद्र देह्कोष और रक्तबिंदु 
देवी क्या केवल पाषाण की एक मूरत भर है ??