Thursday, November 24, 2016

गंधस्मृति

-----------------------------------------------------------------
अप्रैल महीने की तेज धुप और रह-रहकर छू जाती ठण्डी बयार झरना में आलस भर रही थी| शाम के साढ़े चार बज रहे होंगे| बालकनी में बैठी वह तय कर चुकी थी कि अब सीधे उठकर कमरे में जायेगी और सो जायेगी| अभी वह कमरे में पहुँची ही थी कि बगल की मेज पर रखे नियुक्ति पत्र ने उसे याद दिलाया कि दो दिनों के बाद उसे अपने नये दफ्तर जाना है| छह महीनों की लम्बी अवधि के बाद वह फिर घर की दहलीज से बाहर कदम रखेगी; इसलिए वह अच्छे से तैयार होकर दफ्तर जाना चाहती थी| पर पिछले छह महीनों में उसने घर पर रहते हुए गाउन और बाहर जीन्स टीशर्ट ही पहना था| छह महीने पहले अचानक उसकी तबियत बिगड़ने लगी और डॉक्टर ने कैंसर होने का शक जताते हुए कई प्रकार के जाँच की सलाह दी थी| कैंसर का नाम सुनते ही उसने नौकरी छोड़ घर में रहने का फैसला लिया था| पर कई प्रकार के रक्त परीक्षण, अल्ट्रासाउंड, एमआरआई और सिटी स्कैन के बाद यह तय हुआ कि उसे कैंसर नहीं बल्कि अंडाशय का सुजन है जिसे दवा खाकर ठीक किया जा सकता है| तीन महीनों में वह ठीक भी हो गयी| अगले कुछ महीनों मे नौकरी की तलाश भी पूरी हो गयी|  

झरना ने सोने का कार्यक्रम स्थगित कर दफ्तर पहनकर जाने के लिए कपड़े का चयन करना उचित समझा और अगले ही पल साड़ियों से भरा सूटकेस खोलकर बैठ गयी | सूटकेस मे सबसे ऊपर बायीं ओर लाल रंग की शिफॉन की साड़ी थी और उसके नीचे बैंगनी रंग की रेशमी साड़ी| उसके नीचे नीले रंग की रेशमी साड़ी और उसके ठीक नीचे  मलमल के कपड़े में लपेटकर रखी हुई मेहरूनी रंग की बनारसी साड़ी थी जिसे पहनकर उसने अम्लान के साथ सात फेरे लिए थे| दायीं ओर भी लगभग रेशमी साड़ियां ही रखीं थी| झरना समझ गयी थी कि उसे अब दूसरे सूटकेस और आलमारी में झाँकना होगा| पर कुछ सोचते हुए झरना ने सूटकेस से बनारसी साड़ी निकाली थी और उस साड़ी को पास खींचकर सूंघा था| अब भी रजनीगंधा की महक बची थी उस साड़ी में| रजनीगंधा उसका और अम्लान का सबसे पसंदीदा फूल था| अम्लान हर मौके पर और कई बार तो बिना किसी मौके के ही झरना को रजनीगंधा के फूलों का गुलदस्ता देकर अपने प्रेम का इजहार करता था| इसलिए उसने शादी के दिन रजनीगंधा की खुशबु वाला इत्र छिड़का था| यह शादी नहीं, क्रांति थी; परिवार और समाज से लड़कर जातिवाद को धता बताती हुई क्रांति| रजनीगंधा की खुशबू झरना को कई साल पीछे ले गयी|

झरना की जिंदगी में कोई बहुत बड़ा सपना नहीं था| वह छोटी-छोटी खुशियों में जिंदगी ढूँढ लेती थी| अम्लान के साथ सात फेरे लेते हुए उसे लगा था कि जिंदगी अब उसकी मुठ्ठी में कैद हो जायेगी और रजनीगंधा सी महक उठेगी| आत्मनिर्भर थी, इसलिए अम्लान से प्रेम और इज्जत के सिवाय झरना किसी और चीज की उम्मीद भी नहीं रखती थी| पर प्रेम? प्रेम तो परवाह की चाह रखता ही है| सुहागरात के दिन कमरे में झरना के प्रवेश करते ही अम्लान ने अपनी ओर से सफाई दी "जानता हूँ, तुमने उम्मीद की होगी कि सेज रजनीगंधा के फूलों से सजी होगी| पर वो पाँच हजार माँग रहे थे और मुझे लगा हमने अभी तो जिंदगी शुरू की ...अभी न जाने कितनी ज़िम्मेदारियाँ आयेंगी..."

"मैंने तो कोई शिकायत नहीं की तुमसे" कहते हुए झरना ने बीच में ही अम्लान को टोका था| पर यह बात उसे अंदर तक चुभ गयी थी| यह दिन ख़ास था जो फिर कभी नहीं आनेवाला था | अपने घर-परिवार और सामाजिक रस्मों का निर्वाह करते हुए शादी के ज्यादातर खर्चे झरना ने ही उठाये थे| अम्लान से इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती थी? वैवाहिक जीवन के पहले ही दिन रजनीगंधा उसके जीवन से गायब था| झरना व्यावहारिक थी, सो उसने खुद को समझा लिया था| 

हाथों से मेंहदी का रंग छूटने से पहले ही अम्लान ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया था| घर की सभी आर्थिक ज़िम्मेदारी झरना के काँधे पर डाल दी गयी थी| अभिमानी होने के कारण झरना ने कभी इस बात का प्रतिकार भी नहीं किया| फिर अम्लान ने छोटी-छोटी बातों पर झरना पर हाथ उठाने में भी देर नहीं की| झरना खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही थी पर वह हर हाल में चीजों को बेहतर करना चाहती थी| परिवारवालों से लेकर रिश्तेदारों तक और दोस्तों से लेकर परिचितों तक सभी ने झरना को अम्लान से शादी न करने की हिदायत दी थी| झरना ने किसी की बात का परवाह न करते हुए सिर्फ अपने प्रेम के भरोसे खुद को अम्लान को सौंप दिया था| अब उसे खुद को सही साबित करना था हर हाल में| झरना नहीं चाहती थी कि लोगों का प्रेम से विश्वास उठ जाए| 

लड़ते-झगड़ते कई साल बीत गए| दोस्तों और परिवारवालों ने अम्लान को कई बार समझाने की नाकामयाब कोशिशें भी की| इसी बीच झरना ने टिया को जन्म दिया| कहाँ तो झरना सोच रही थी बेटी के जन्म से अम्लान ज़िम्मेदार हो उठेगा, पर हुआ ठीक इसके विपरीत| टिया के जन्म से लेकर उसकी पढाई की ज़िम्मेदारी भी अब झरना के हिस्से आ गयी| अम्लान के व्यवहार में कोई परिवर्तन न हुआ| फिर हालात इतने खराब हुए कि झरना ने अम्लान से दूरियाँ बना लीं| वह तलाक लेकर अलग हो जाना चाहती थी, पर अम्लान बच्ची को वजह बनाकर उसी घर में रह गया| झरना अब मशीन बनकर रह गयी थी; शायद पैसा कमाने की मशीन|

झरना अभी अतीत की ही सैर कर रही थी कि अचानक टिया आ धमकी और आते ही उस साड़ी पर हाथ फेरते हुए कहा "अरे! कितनी सुन्दर साड़ी है! आप यह साड़ी क्यूँ नहीं पहनती?"

"पहना था न अपनी शादी में" कहते हुए झरना ने सहज होने का अभिनय किया और झटपट से वह साड़ी वापस मलमल में लपेटकर सूटकेस में रख सूटकेस बंद कर दिया| फिर वह टिया के साथ बैठकर उसके होमवर्क करवाने लगी| 




2

झरना अँधेरे कमरे में आँखें खोल सारी रात जागती रही और न जाने क्या-क्या सोचती रही| टिया ने अपने मां-बाप को बचपन से लड़ते -झगड़ते देखा है। उसके जीवन पर इसकी कैसी भयंकर छाया आकर पड़ी होगी? अगर जाँच में डॉक्टर के अनुमान के मुताबिक कैंसर की ही पुष्टि हुई होती तो? अम्लान अंतिम समय में उसका क्या हश्र करता? टिया की जरूरतों को कौन पूरा करता? आज भी तो वह घर में ही रहकर टिया की देखभाल करना चाहती है पर भाग्य को अपनी ही रुद्र लीला दिखाने से फुर्सत हो, तब न?

झरना अभी तक सोच में पड़ी थी कि भोर की लाली में सूर्य की प्रथम किरण झरना के चेहरे पर पड़ी| यह शनिवार का दिन था| टिया को स्कूल नहीं जाना| नाश्ता बनाने की कोई जल्दबाजी नहीं| सोमवार को नए दफ्तर का पहला दिन है और उसने अभी तक यह तय नहीं किया कि वह क्या पहनकर जायेगी| कुछ ऐसी ही मनोदशा लिए वह बिस्तर से उठकर पश्चिम दिशा की ओर वाले कमरे में गयी और आलमारी का दरवाजा खोला| आलमारी में सभी कपडे तह करके बड़े करीने से रखे हुए थे| हैंगर में स्लेटी रंग की साड़ी टंगी थी, जिस पर हरे रंग के बूटे और नारंगी रंग के फूल कढ़े हुए थे| इस साड़ी में उसे देख सुलभ ने कहा था "मुझसे शादी कर लो"| इस साड़ी में केल्विन क्लेन के सीकेइनटूयू परफ्यूम की खुशबु अब तक जिंदा थी|  झरना हैंगर से साड़ी उतारकर उस पर हाथ फेरने लगी और उन सुकून भरे पलों को याद करने लगी जो उसने सुलभ के साथ बिताए थे| 

एकबार किसी पत्रिका को पढ़ते हुए झरना का ध्यान खींचा एक आलेख ने| स्त्री के प्रति समाज के मनोविज्ञान की पड़ताल करता हुआ आलेख झरना को भीतर तक छू गया| उसने आलेख ने नीचे नाम पढ़ा -"सुलभ शांडिल्य"| अब वह सुलभ के लिखे आलेख ढूँढकर पढने लगी| सुलभ के जादुई शब्दों का जादू झरना के सर चढ़ कर बोल रहा था| फिर एक दिन झरना ने आलेख के नीचे लिखे फोन नंबर पर फोन लगाया और सुलभ को उसके आलेख के लिए बधाई दी| सुलभ से बात करते हुए झरना को वह भी अपनी ही तरह बेहद व्यवहारिक लगा| फिर फोन करने का सिलसिला शुरू हुआ| अब उन दोनों की बातें आलेख के इतर निजी जिंदगी के विषय में होने लगी| सुलभ ने अपने छूटे हुए प्रेम के बारे में उसे बताया और झरना ने अपने टूटकर बिखरे हुए प्रेम की कहानी सुलभ को सुनायी| सुलभ समय देकर धैर्य के साथ घंटों झरना की बातें सुनता| झरना, जो इतने सालों से मौन व्रत लिए हिम के समान कठोर बन चुकी थी, सुलभ से बातें करते हुए झर-झर बह जाती थी और अपने मन का बोझ उतार कर हल्का महसूस करती थी| सुलभ नाम जैसा ही सुलभ था| बातों ही बातों में प्रेम हो गया| फिर मुलाकातों का सिलसिला भी शुरू हो गया था| पहली मुलाकत में ही सुलभ ने झरना से कहा था "तुमसे कोई पुराना रिश्ता सा लगता है...शायद प्रारब्ध...वरना हम ऐसे नहीं मिलते..यह महज संयोग नहीं हो सकता कि मेरी छूटी हुई प्रेमिका भी यही परफ्यूम लगाती थी| मुझे तुमसे उसकी गंध आ रही है"  उसके पास जाते ही झरना का सारा दर्द हवा हो  जाता|  झरना अपनी तकलीफों से आज़िज आकर कभी उसके पास जाती, तो सुलभ उसे सुनते हुए कभी अपने रुमाल से उसके माथे के पसीने को पोंछता, तो कभी उसे अपने हाथों से पानी पिलाता|  फिर दोनों टूटकर प्रेम करते| बात करते हुए झरना सब्जी काटती और सुलभ खाना बनाता था| एकबार जब झरना सब्जी काट रही थी, उस दौरान सुलभ ने तीन बार दोहराया था "नया चाकू है तेज धार वाला, ध्यान से काटना"| झरना को माँ की याद आ गयी थी| मायके के बाद कभी किसी ने इतनी परवाह नहीं की थी| सुलभ तो उम्र में भी उससे कई साल छोटा था, फिर भी उसके साथ रहते हुए झरना किशोरी बन जाती थी| खाने का पहला निवाला सुलभ हर बार झरना को अपने हाथों से खिलाता था|  झरना खुद को नीलवसना और उसे नीलकंठ पुकारती थी| झरना ने एकदिन सुलभ से पूछा भी था "तुम्हें इस गंध से प्रेम है इसलिए मेरी परवाह करते हो या मुझे प्रेम करते हुए इस गंध से अपने खोये हुए प्रेम को जगाने की कोशिश करते हो?" 

"क्या तुमने मुझे बताया था कि जब मिलने आओगी तो ठीक यही परफ्यूम लगाकर आओगी?" सुलभ के इस उत्तर ने झरना को निरुत्तर कर दिया था| वह फिर से जिंदगी जीने लगी थी| पर वक्त ने ऐसा सितम किया कि सुलभ हमेशा के लिए खूबसूरत याद बनकर रह गया| उस रोज सुलभ ने एक बड़े से आलू पर पहले चाकू से सुलभ लिखा, फिर उसके नीचे चाबी का चिन्ह बनाया और फिर उसके पास झरना लिखा| "सुलभ की झरना" ऐसा लिखकर उसने झरना को देते हुए कहा था "अ गिफ्ट फॉर समवन यू लव"| झरना को उसकी यह हरकत बचकानी भी लगी थी और प्यारी भी| सो उसने उस आलू को अपने बैग में रख लिया था| 

घर लौटकर झरना घर के कामों में व्यस्त हो गयी थी| टिया की आदत थी कि जब भी झरना बाहर से घर आती, वह उसकी बैग में चॉकलेट या चिप्स नुमा चीजें ढूँढती| अपने इस प्रयास में कभी -कभार वह सफल भी हो जाती थी; इसलिए उसकी कोशिश जारी रहती थी| इसबार उसे आलू मिला और उसे आश्चर्य हुआ| फिर वह आलू पर उभरे नामों को हिज्जे लगाकर पढने लगी| चाबी के चिन्ह का मतलब नही समझ पायी थी; इसलिए आलू लेकर सीधे अम्लान के पास पहुँच गयी थी| उसके बाद अम्लान ने सुलभ के घर जाकर ऐसा तमाशा खड़ा किया था कि उसे वह मुहल्ला ही छोड़ना पड़ा था| उसे उस मुहल्ले में कोई घर देने को तैयार न था, बमुश्किल पास के मोहल्ले में एक घर किराए पर मिल सका था| झरना को भी कई दिनों तक प्रताड़ित करता रहा था अम्लान और बारबार यही पूछता "तुम उसे बहुत प्यार करती हो?" झरना कुछ भी नहीं कहती; बस आखों से झरना बहा देती|

"थोड़ा साहस कर लेते सुलभ! अब कोई भी मेरे आस्तित्व के पेड़ से अमरबेल सा लिपटकर तुम्हारी तरह प्यार नहीं करता| आईने में शक्ल देखती तो हूँ हर रोज, पर जान ही नहीं पाती कि मैं ठीक भी हूँ या नहीं| अब मुझसे मेरे दुःख कोई नहीं सुनता| अथाह धैर्य था तुम्हारे पास| काश! थोड़ा साहस भी होता| घर के सामने बिजली की तार पर अब कोई नीलकंठ नजर नहीं आता| मेरे अभिमानी अधरों को अब कोई प्रेम की परिभाषा नहीं बताता| अब मेरी आँखों में काजल देख किसी की बाहों की मछलियाँ नहीं तड़पती| तुम से अलग क्या हुई, लगता है जैसे अपने वजूद से ही जुदा हो गयी| बस गाहे -बगाहे कानों में गूँजता रहता है तुम्हारा अंतिम वाक्य "याद रखना कि हम परिस्थितिवश अलग हो गए| प्रेम हमसे अलग नहीं हुआ| इस प्रेम को मैं भी सहेज कर रख लूँगा और तुम भी सहेज कर रखना| यह प्रेम एक-दुसरे में हमें जिंदा रखेगा| मुझे भुलाना हो तो बारबार खुद को याद दिलाना कि मुझमे साहस की कितनी कमी थी कि जिस वक़्त मुझे तुम्हारा साथ देना चाहिए, मैं पूरी दुनिया से अपनी शक्ल छुपा रहा हूँ| मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूँगा और हमेशा प्यार करता रहूँगा"| हाँ, जब भी अम्लान मन को कष्ट पहुंचाता है या श्रीकांत की बेपरवाही मुझे बेचैन करती है, मुझे याद आता है तुम्हारा टूटकर प्रेम करना और मैं टूटकर बिखरने लगती हूँ| ऐसे ही पलों में इस  साड़ी पर हाथ फेरकर कहती हूँ कि देखो मैंने सहेज कर रख लिया है प्रेम| साड़ी को सूँघकर उसके गंध से तुम्हारी स्मृतियों तक का सफर करती हूँ| काश तुम देख पाते कि खोया हुआ प्रेम जोड़ता नहीं, अन्दर ही अंदर तोड़ता है|" मन ही मन बुदबुदाते हुए झरना की आँखों से खारे जल का झरना फूट पड़ा था| 

बीते दिनों की स्मृतियाँ झरना को इस कदर बेचैन कर गयीं कि वह एकदम से उस कमरे से बाहर निकलकर मेहमानों के कमरे में आ गयी और कमरे में रखे कुर्सी पर उल्टा बैठ कुर्सी से लिपट गयी|



आज उसकी पीठ को कुर्सी का सहारा नहीं चाहिए, उसे बस किसी के सीने में सर छुपाने का मन है| कुर्सी पर नीले रंग का तौलिया लटक रहा था|  वह अपने चेहरे को उस तौलिये पर आहिस्ता-आहिस्ता रगड़ रही थी कि अचानक उसके जेहन में  श्रीकांत उभर आया| उसे अचानक याद आया कि वह कैसे श्रीकांत के बाल भरे सीने पर अपना चेहरा ऐसे ही रगड़ा करती थी| यक-ब-यक उसे मेहरूनी और सुनहरे रंग की वह सलवार कमीज़ याद आयी जिसे पहन वह आखिरी बार श्रीकांत से मिलने गयी थी| दफ्तर में पहले दिन पहनने के लिए शायद यही ठीक रहेगा| झरना अपने कमरे में गयी और लाल रंग के ट्राली बैग को खींचकर मेहमानों वाले कमरे में ले आयी| बैग में सबसे उपर रखी थी वह सलवार कमीज़| झरना ने उसे बैग से निकाला| उसमे से क्रिस्चियन डिओर की खुशबू आ रही थी| जब वह पहली बार श्रीकांत से मिलने गयी थी, तो श्रीकांत ने गाड़ी में बैठते ही पूछा था "यह तुम्हारी खुशबू है या कार परफ्यूम की? मैं मदहोश हुआ जा रहा हूँ"| उसके बाद झरना जब भी श्रीकांत से मिलने गयी हर बार क्रिस्चियन डिओर का परफ्यूम ही लगाया| 

"क्यूँ आए तुम मेरी जिंदगी में श्रीकांत!! मैं तो तुम्हारे जीवन की सूखी धरती पर बारिश की  बूँदे बन बरस रही थी और तुम मेरी जिंदगी में ठीक ऐसे ही आए थे जैसे आती है गुनगुनी धुप बारिश के बाद| मैंने तुम्हारा हाथ उस वक़्त थामा, जब तुम टूटकर बिखर रहे थे| मैं कुछ समय पहले ही सुलभ के चले जाने के अवसाद से बाहर आ पायी थी| अवसाद क्या होता है, अच्छी तरह समझती हूँ और यही वजह थी कि तुम्हें अवसाद से बचा लेना चाहती थी| मैंने तो तुमसे हमारे मिलने के कुछ ही दिनों बाद बता दिया था कि मैं एक टूटा हुआ खिलौना हूँ| फिर भी तुमने मेरे साथ ऐसा किया!!! अपनी जरुरत भर मुझे प्रेम के भ्रम रखा और अब ऐसे अंतर्ध्यान हो गए हो, जैसे कि वह सब एक सपना था| इतना ही कह दिया होता कि अब प्रेम नहीं रहा और तुम आगे बढ़ चुके हो| काश तुम देख पाते कि मैंने तो तुम्हारे घर से लौटने के बाद इस सलवार कमीज को बिना धोये ही सहेज कर रख लिया| इस खुशबु में कैद हो तुम| तुम्हारे हिस्से का दुःख भी मेरा था| पर तुमने अपने दुःख में अकेले रहने का निर्णय लिया| जब भी पूछती हूँ, कहते हो "मैं हूँ तुम्हारे पास ही, बस अपनी तकलीफों से घिरा हूँ" पर मैं महसूस ही नहीं कर पाती| जब मुझे तुम्हारी जरुरत होती है, तुम नहीं होते हो| तुम्हारे शब्दों का तुम्हारे व्यवहार में परिलक्षित न होना मुझे अनगिनत आशंकाओं से भर देता है|  तुम्हारे होने का भ्रम तुम्हारे नही होने के आभास से कहीं ज्यादा प्रबल है|" मन ही मन कहती हुई झरना ने सलवार कमीज को भारी मन से वापस उसी बैग में रख दिया था| 

बैग कमरे में वापस रख झरना सोसाइटी के बाहर खुले मैदान में चली गयी| जब भी उसका मन भारी होता, वह साँसों में ताज़ी हवा भरने के लिए यहाँ आकर खड़ी हो जाती थी| मैदान के चारों ओर महोगनी के पेड़ लगे थे| उन दिनों उस मैदान को एक सुंदर पार्क में तब्दील करने की कोशिश की जा रही थी| पेड़ों के नीचे भूरे रंग की अलग-अलग तख्तियों पर सफेद रंग से महान लोगों के विचार लिखे गए थे| पेड़ों पर फूल लगने शुरू हो चुके थे| झरना सोच रही थी कि कैसी विडम्बना थी कि उसके घर के कोने- कोने में प्रेम तरह-तरह की सुगंधों में क़ैद था पर उसके जीवन में दूर-दूर तक प्रेम का लेशमात्र न था| कुछ ही देर में फूलों की मादक गंध-शक्ति ने झरना को चहुंओर से घेर लिया था| यह एक स्मृति विहीन गंध थी| इस गंध में सिर्फ खुशबू और मादकता थी, किसी प्रकार का कोई दुःख या अवसाद का चिन्ह नहीं जड़ा था| टहलते हुए वह एक पेड़ के नीचे जा खड़ी हुई और पास की तख्ती पर लिखे हुए विचार पढ़ने लगी| उस पर लिखा था -

फूलों की खुशबू से उबर जाना हार का एक मनोरम रूप है। (बेवरली निकोल्स)

"और प्रेम की खुशबू ? उसके लिए भी तो ठीक यही बात सही होती होगी न? पर कौन कमबख्त उबर पाया है प्रेम की खुशबू से!!! फूलों की खुशबू से उबर भी जाए कोई, पर प्यार की खुशबू......." झरना मन ही मन बुदबुदाती हुई अगले पेड़ के नीचे लगी तख्ती पर लिखे हुए विचार पढ़ने लगी| उस पर लिखा था -

अपने दिल में एक हरा पेड़ रखें और शायद किसी दिन एक गाती हुई चिड़ियाँ आ जाए| (चीनी कहावत)

"और क्या पता कि उस पेड़ पर भी एक दिन ऐसे ही मादक गंध वाले फूल खिले" झरना ने महोगनी के फूलों की ओर देखते हुआ कहा था|

कुछ समय इस पार्क में बिताने के बाद झरना अब हल्का महसूस कर रही थी| वह वापस घर की ओर चल पड़ी| चौथी मंजिल पर जाने के लिए झरना अमूमन लिफ्ट का ही प्रयोग करती थी, पर उस दिन उसने सीढियाँ चढ़ते हुए कई बार मन ही मन दोहराया था "नहीं, मैं हार नहीं मानूँगी| मुझे प्रेम की खुशबू से नहीं उबरना| मैंने आज अपना गंध पा लिया है| जब कभी बीते दिनों की गंध स्मृति मुझे अवसाद की ओर ले जायेगी, मैं इस गंध में खुद को ढूँढ लिया करूँगी| प्रेम के इस पेड़ को हरा रखूँगी अपने लिए हर हाल में कि एक दिन मेरे मन का पाखी फिर से गा पाए कोई गीत|"

घर पहुँचते ही उसने आलमारी की तह से निकाली थी खाकी रंग की पतलून और सफेद रंग की कमीज जिसे पहन सोमवार को वह नए दफ्तर गयी थी| उस शाम पास के मॉल से वाल फ्लावर्स का महोगनी टीकवुड परफ्यूम भी खरीद लायी थी जिसे पहले हल्का सा अपने कपड़ों पर लगाया था और फिर आलमारी में रखे कपड़ों पर बेतरतीबी से छिड़का था| कुछ ही समय में झरना एकबार फिर से घर और नौकरी में व्यस्त हो गयी थी| उसके बाद जब कभी रजनीगंधा की महक उसके नासारंध्रों तक पहुँची, जब भी उसने लाल ट्राली बैग खोला या जब कभी कहीं किसी को कैल्विन क्लेन की खुशबू से सना पाया, उसने याद किया केवल प्रेम, जो उसमें अब भी हरा था| उसका आत्मविश्वास उसे अवसाद में जाने से रोक पाने में सफल हो रहा था|

वह जून महीने की एक धधकती हुई दोपहर थी जब झरना के फोन स्क्रीन पर एक जाना-पहचाना नाम उभर आया था| श्रीकांत ने पहले उसका हाल -समाचार पूछा था और फिर इधर -उधर की बातें करते हुए उसके नए दफ्तर का पता पूछ लिया था| उस शाम जब झरना दफ्तर से निकल पार्किंग एरिया में लगी अपनी कार के पास आयी, तो वहाँ श्रीकांत खड़ा था| श्रीकांत के हाथों में था रजनीगंधा का गुलदस्ता और उस गुलदस्ते पर लगा था एक कार्ड जिसे श्रीकांत ने ही बनाया था| उस पर लिखा था "जिन दिनों जिंदगी में तकलीफों की बारिश हो रही थी, तुम उग आई थी रजनीगंधा की इन फूलों की तरह जो बारिश के मौसम में उगती हैं और उमस को खुशबू में बदल देती है| कुछ दिनों से सुबह सैर करने जा रहा हूँ और फूलवाले के पास से गुजरते हुए यह खुशबू मुझे तुम्हारी याद दिलाती है| मैं तुम्हें इस खुशबू में याद करता हूँ| जानता हूँ अजीब ही है कि फूल हमें खुशबू देते हैं और मैं खुशबू को फूल दे रहा हूँ|" -खुशबू का श्रीकांत    

झरना उस समय कुछ नहीं कह पायी थी; बस श्रीकांत से लिपटकर देर तक रोती रही थी| 

अगले दिन जब झरना श्रीकांत से मिलने के लिए तैयार हो रही थी, उसने क्रिस्चियन डिओर का परफ्यूम हाथ में उठाया और कुछ सोचकर वापस रख दिया | महोगनी टीकवुड परफ्यूम खुद पर छिड़कते हुए वह मन ही मन कह रही थी "मैं अपनी गंध पहचान गयी हूँ;  इस खुशबू को बिखरने न दूँगी"|