Saturday, February 6, 2016

पुनर्नवा

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मैंने लगा रखा था "न" अक्षर का एक अदृश्य- सा ताला 
"हाँ" कहती संभावनाओं से लैस ज़िन्दगी के दरवाजे पर 
कि "न" अक्षर था निषिद्ध ज्योतिषीय गणना के अनुसार 
"र" और "ट" अक्षरों की मानिंद मेरे जीवन की कुंडली में 

अक्सर देखा गया है कि प्रकृति रचती है नित्य नए षड्यंत्र 
और नहीं रख पाता है ध्यान कोई किसी गणना या नियम का 
कि आदम और हौवा ने अंततः खा ही लिया था वर्जित फल
कर गया प्रवेश जीवन में "न" अक्षर "न", "न" कहता हुआ 

जहाँ "र" और "ट" अक्षरों को रट गई थी भूल जाने के लिए 
लाज़िम था "न" अक्षर का निःशब्द चले आना मेरी लापरवाही से 
अब जितना रटती हूँ भूल जाने के लिए अवांछित अक्षर "न" को 
मुझे दिखते हैं संसार के समस्त नाम "न" अक्षर से शुरू होते हुए 

मैंने उस नक्षत्र को "नैसर्गिका" कहा, जब मेरी वर्णमाला में आया "न" अक्षर 
और "नागपुष्पी" के फूल सा उजास लिए  बसंत का वह सुन्दर दिन खिला
उग रहा है "न" अक्षर इन दिनों इस दुखते देह की गीली जमीन पर कुछ ऐसे 
ठीक जैसे उग आता है हर साल वर्षा ऋतू में दिव्य औषधीय पादप पुनर्नवा 

---सुलोचना वर्मा-------