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तुम्हारे साथ स्वर्ग नहीं जाऊँगी प्रिय
मुझे पुकारती है नीलगिरी की पहाड़ियाँ
दिन रात आमंत्रित करती है बंगाल की खाड़ी
पुकारता है महाबलीपुरम का मायावी बाज़ार
नंदमबाक्क्म के आम के बागान में दावत उड़ाते पंछी
पुकारता है संयोग, पुकारता है अभियोग
कि लौटने की समस्त तिथियाँ मिट गई हैं पञ्चांग से
पुकारता है प्रेम, पुकारता है ऋण
पुकारता है असमंजस, पुकारता है रुका हुआ समय
जहाँ पुकार रही हैं मुझे असंख्य कविताएँ
मैं हो विमुख उनसे चल पडूँ तुम्हारे साथ!
नहीं कर सकती ऐसा अधर्म, ऐसा पाप!
प्रिय,
तुम निकल पड़ो किसी यात्रा पर
लिखो अपने पसंद की कविताएँ होकर दुविधामुक्त
देखना मैं मिलूंगी तुम्हें उन कविताओं में अक्षरशः
मैं नष्ट स्त्री हूँ, मुझे स्वर्ग की नहीं तनिक भी चाह !