Tuesday, January 24, 2017

अथ ऑटोमेशन कथा


खबर यह है कि सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस ने पिछले एक साल में लगभग 8 से 9 हजार कर्मचारियों को कार्यमुक्त किया है। ये कर्मचारी ऑटोमेशन के चलते कार्यमुक्त किए गए हैं। ऑटोमेशन के चलते जॉब कम हो रही हैं जिससे लोगों को निकाला जा रहा है।

खबर यह भी है कि ट्रम्प महोदय ने यदि अपना चुनावी वादा निभाया तो अमेरिका में अब भारत से जाने वाले सॉफ्टवेयर इंजिनियरों में काफी कमी आयगी। कुल मिलाकर यहाँ बेरोजगारी और बढ़ेगी।

आज सुबह ही पढ़ने को मिला कि हाई स्कूल ड्रॉपआउट धर्मपाल गुलाटी (जी हाँ, एमडीएच मसालों वाले) एफएमसीजी सेक्टर के हाईएस्ट पेड सीईओ हैं।

स्कूल के दिनों में हमने शास्त्रीय संगीत सीखा कि जीवन में लय बना रहे। कॉलेज के दिनों में हमनें वनस्पति विज्ञान पढ़ा कि हरियाली बची रहे जीवन में। फिर क्या, एक दिन संगीत के किसी अनुष्ठान में दूसरा पुरस्कार मिला जिसे स्पॉन्सर किया था किसी कंप्यूटर इंस्टिट्यूट ने। कंप्यूटर के प्रेम में ऐसी पड़ी कि आगे की सभी पढ़ाई अलग-अलग संस्थानों से आईटी में ही किया। पिछले कुछ वर्षों में हमने भी ऑटोमेशन के कई सारे प्रोजेक्ट डिलीवर किए। अब लग रहा है कि हमने तो कुल्हाड़ी पर ही पाँव रख दिया।

माँ बेहद लज़ीज खाना बनाती हैं। उन्होंने बहुत कोशिश की कि मैं भी उनकी तरह पाककला में दक्ष हो जाऊँ, पर मैं उन दिनों मुँह में मुलेठी दबाये जीवन में लय और लय में मिठास ढूँढ रही थी। मसालों से ही नहीं किचन से भी दूर रही। अब जब जिंदगी मसालेदार खबरों से हमारा सामना करवा रही है, तो स्वाद तीखा ही लगेगा न!!!


कुछ दिन पहले जब मैंने ऑटोमेशन का ज़िक्र करते हुए लिखा था कि किस प्रकार ऑटोमेशन के चलते इनफ़ोसिस के 8 से 9 हजार लोग कार्यमुक्त हो गए और किस प्रकार हमने खुद कुल्हाड़ी पर पाँव रख दिया, तो कुछ लोगों ने आईटी फिल्ड से होने के नाते हमारे प्रति संवेदना व्यक्त की और कुछ चिंतित हुए। कुछ लोग शायद यह सोचकर मुस्कुराये भी कि यह शायद आईटी से ही जुड़ा मसला हो और हमें हमारे कर्म के अनुसार फल मिला हो। यह ऑटोमेशन सिर्फ आईटी के लिए ही चिंताजनक है, ऐसी बात नहीं है। अगले साल, 2018 में, गूगल और टेस्ला दोनों कम्पनियाँ ड्राईवर-लेस (चालक विहीन) कार सड़कों पर उतार रही है। इन कारों पर 2009 से काम चल रहा है और कई बार सफल परीक्षण भी हो चूका है। यक़ीनन कोई भी बदलाव वक़्त की माँग करता है, पर शायद किसी ड्राईवर के लिए यह अच्छी खबर नहीं है।


7 जनवरी 2017 को फ़ोर्ब्स में प्रकाशित खबर के मुताबिक अभी चीन में एक रोबॉट ने 300 अक्षरों का एक आलेख एक सेकण्ड में लिख डाला। इस आलेख के आँकड़े पत्रकारों के द्वारा उसी विषय पर लिखे आलेख के आँकड़ों से ज्यादा सटीक थे। रोबॉट पत्रकारिता सिर्फ पत्रकारों की आशंकित बेरोजगारी से जुड़ा मुद्दा भर नहीं है। कंप्यूटर हो या रोबॉट, लॉजिक से चलते हैं। जैसा लॉजिक भरा जाएगा, वैसा काम करेगा।


मुझे लगता है एकदिन धरती पर रोबॉट राज होगा और हम इंसान उनकी गुलामी करेंगे।

Monday, January 16, 2017

इतिहास

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नहीं है क्षीरसागर धरती पर कहीं भी 
फिर भी सदियों से सुनाया जा रहा है हमें 
समुद्र मंथन का वर्णन विस्तार से 

नहीं हुई थी कोई पेन्डोरा
यूनान में ही कभी 
फिर भी उसके बक्से से जुडी हैं 
न जाने कितनी कहानियाँ 

नहीं था सोने के सींगों वाला हिरण 
फिर भी लोग करते रहते हैं ज़िक्र 
रोम के हरक्युलिस का आए दिन 

चार दिन का शिशु साँप तो दूर 
नहीं मार सकता मच्छर भी 
फिर भी अस्पताल से लेकर अंतरिक्ष यान तक 
सबके नाम में मौजूद है ग्रीस का अपोलो  

क्या होता है सुनी-सुनायी इन कहानियों से 
रातों में आँखें मूँदते ही मेरे सपनों में लेती हैं हिलोरें 
हिंद महासागर की उद्दाम लहरें अक्सर 
तैरता हुआ आता है जिसमें पीतल का सुनहला बक्सा 
पेन्डोरा का नहीं, मेरी माँ का है वह पानदान 
बंद हैं जिसमें पान, सुपारी और कत्थे के रंगों में रंगे हुए दिन 

छूटता हुआ आता है हिरणों का दल सुंदरवन से 
सुन्दर स्मृतियों की तरह 
देखती हूँ नींद में मुस्कुराया है पहली बार 
मेरी गोद में सोए हुए चार दिन के शिशु ने
जिसका नामकरण नहीं किया मैंने किसी मिथकीय पात्र पर 
कि वह रच सके अपना खुद का इतिहास 
मिथकों का भी भला कोई इतिहास होता है!

Sunday, January 15, 2017

प्रिय

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प्रिय, क्या तुम गा सकते हो कोई गीत मेरे लिए आज?
अभिधान से झड़े शब्दों को लेकर लिखा गया सम्मोहन गीत नहीं
तुम्हारी वाम अस्थियों की मज्जा में उपजता हुआ एक स्नेहिल गीत 
किसी शीतार्त संध्या माथे पर बोसा जड़ते होठों की उष्णता का गीत 
अच्छा यह तो बताओ, क्या तुम्हें गाना आता है प्रिय?

किसी रोज़ लक्षद्वीप घुमाने ले चलोगे प्रिय?
सुना है कि यह बना ज्वालामुखीय विस्फोट से निकले लावा से
उस शाम मैं देखूँगी तुम्हारे अन्तस के उद्गार से निकलता लावा फैलता मेरी आँखों में
और घोल आऊँगी अपनी आँखों का लवण अरब सागर के नीले जल में 
क्या तुम्हें तैरना आता है प्रिय?

जानते हो प्रिय, तुम्हारा होना है किसी प्रारब्ध सा मेरे लिए 
तुम्हारे नहीं होने की आशंका से मैं लौट जाना चाहती हूँ सिंधु घाटी सभ्यता में 
और पूछना चाहती हूँ मोहन जोदड़ो की कांस्य मूर्ति से तुम्हारा पता 
ठहर के देखना चाहती हूँ तुम्हारे मिल जाने पर उसी की मुद्रा में, फिर खो जाना चाहती हूँ उसी की तरह 
तुम्हें दिशाओं का बोध तो होगा न प्रिय?

देख लेना प्रिय, एकदिन तुम करोगे मुझे प्रतिष्ठित ह्रदय में लिए अपार श्रद्धा  
कि जान जाओगे माया से घिरे इस संसार में मैं बनी रही तुम्हारी छाया 
करना स्नान स्नेह के जल में, ओढ़ लेना प्रेम, ध्यान को करना अर्पित नयन कमल
कर देना विसर्जित निज को उस रोज प्रेम के पावन सिन्धु में, अनुष्ठान पूरा कर लेना  
प्रेम और पूजा की विधि अलग तो नहीं होती न प्रिय?

प्रिय, क्या तुम जानते हो मुझे सबसे अधिक तुम हो प्रिय?



Wednesday, January 11, 2017

अनुत्तरित

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खूब बारिश हुई थी उस साल और गाँव की इकलौती सड़क पर घुटने तक पानी जमा था| बारिश रुक चुकी थी| वह 2 किताबें और एक कॉपी, जिसपर फाउंटेन पेन खोंसा हुआ था, सीने से चिपकाए माथा नीचे किए ट्यूशन पढ़ने जा रही थी| अभी आधे रास्ते ही पहुँची थी कि जावेद चचा की दूकान पर बैठे चाय का लुत्फ़ उठाते पवन मिश्र ने टोका "काहे जा रही हो इतने पानी में? लड़की जात हो, आगे शादी-ब्याह ही तो करोगी| बरसाती घाव हो गया तो पाँव में निशान छोड़ जाएगा| एक महीना घर बैठ जाने से परीक्षा में फेल नहीं हो जाओगी| पास तो हो ही जाओगी|"

मधुरा ने कुछ भी नहीं कहा और सर हिलाकर आगे बढ़ गयी| उसके साथ उसके पड़ोस का लड़का कृष्ण मुरारी भी था| उससे किसी ने कुछ भी नहीं कहा| क्लास रूम में उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था| कुछ शब्द उसका पीछा कर रहे थे| यह वही शब्द थे जो रास्ते में उससे कहे गए थे| क्या वह सिर्फ इसलिए पास होने का अरमान रखे कि वह एक लड़की है? वह अव्वल क्यूँ न आए?

ट्यूशन के बाद वह सीधे घर लौट आयी थी; पर कुछ था जो उसे अच्छा नहीं लग रहा था| लेकिन क्या? पवन मिश्र का टोकना? तीन घंटों तक घुटने तक भींगे कपड़ों में क्लास रूम में बैठना? लड़की होना?  
देर तक खिड़की पर चिंतन की मुद्रा में बैठे रहने के बाद शाम में मन ठीक करने के लिए मधुरा  ने हारमोनियम निकाला| वह राग भूपाली की बंदिश गा रही थी-

"सा ध प ग रे सा.....................
लाज बचाओ कृष्ण मुरारी, तुम बिन और न दूजो कोई
बीच भँवर में आन फंसी अब नैया मोरी डगमग डोले
पार लगाओ शरण तिहारी ......"

पास के कमरे से चचेरा भाई चिल्लाता हुआ आया "कोई ढंग का गाना नहीं गा सकती !! शाम के साढ़े सात बजे "लाज बचाओ, लाज बचाओ" चिल्लाओगी तो आस-पड़ोस वाले क्या समझेंगे ...और लाज बचाना ही है तो घर में जवान भाईयों के रहते कृष्ण मुरारी को क्यूँ बुला रही हो??"

"अरे! यह बंदिश है और यह पड़ोस का कृष्ण मुरारी नहीं है| इसमें भगवान् श्रीकृष्ण को पुकारा गया है| इस बंदिश को मैंने तो नहीं लिखा, गुरु जी ने सिखाया है" मधुरा ने झल्लाते हुए कहा और गाना बंद कर हारमोनियम को यथास्थान रख आयी| 

मधुरा के पड़ोस में एक कृष्णभक्त मारवाड़ी परिवार रहता था| उस घर के चारों बच्चों के नाम क्रमशः श्यामलता, श्यामबिहारी, कृष्ण मुरारी और कृष्णकांता थे| श्यामलता लगातार तीन सालों तक फेल हुई और अब वह भी मधुरा  की कक्षा में ही थी| कभी-कभार स्कूल तो चली जाती थी, पर वह ट्यूशन पढ़ने नहीं जाती थी| गाँव की अन्य लड़कियों की तरह उसे बस पास ही होना था; पर उसके लिए यह भी नाक से पानी पीने जैसा ही था| कृष्ण मुरारी मधुरा के साथ ही ट्यूशन पढ़ने जाता था| ऐसा नहीं था कि किसी ने दोनों को साथ जाने के लिए कभी कहा हो, पर कृष्ण मुरारी ने हमेशा मधुरा  के साथ चलना अपना कर्तव्य समझा| ऐसा भी नहीं था कि दोनों साथ ही घर से निकलते थे, कभी मधुरा को घर से निकलने में देर हो जाती, तो वह गली के मोड़ पर उसका इन्तजार करता| बिना कुछ कहे साथ चलता रहता|

बाहर झींगुरों का शोर था| आधा गाँव सो चूका था और बाकी के आधे गाँव वाले सोने की तैयारी कर रहे थे| कोई बर्तन मांज रही थी तो कोई रोटियाँ सेंक रही थी| कोई लाठी लिए "जागते रहो" पुकार रहा था तो कोई आँखें बंद किए राम-नाम  की माला फेर रहा था| मधुरा मच्छरदानी टांग रही थी कि माँ ने सलाद काटने के लिए बुला लिया| 

अगले दो घंटों के बाद घर-बाहर हर ओर सन्नाटा पसरा था सिवाय उस गाँव के जो मधुरा  के मानस में बसा हुआ था| इस गाँव में न तो सूरज अस्त होता था; न ही चाँद खिलता था| बाइस्कोप की तरह बस रील दर रील दृश्य उभरते थे| इस गाँव को नींद नहीं आती थी| यह एक बेचैन गाँव था जो हरदम जगा रहता था| यह गाँव क्या चाहता था मधुरा  से? या मधुरा  इस गाँव से कुछ चाहती थी? बाइस्कोप की एक रील में उसने श्यामलता का चेहरा देखा| उसकी शक्ल दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले धारावाहिक "उड़ान" की नायिका से हू-ब-हू मिल रही थी| पर आईपीएस अधिकारी बनने के लिए बहुत पढ़ना पड़ता है| श्यामलता क्यूँ सिर्फ पास होना चाहती थी? क्या उसे कभी अव्वल आने का ख्याल आया होगा? क्या उसे फैसला सुना दिया गया था कि अंततः उसे भी चौका-बासन ही संभालना है? 

रात का चाँद नरम पड़ रहा था और खिड़की से आती उसकी ज्योत्स्ना मधुरा  को किसी चादर की तरह ढँक रही थी| एक प्रकार की क्लान्ति अब भी जाग रही थी उसके अन्दर| बाइस्कोप की अगली रील में मीराबाई बनी हेमा मालिनी की तस्वीर है| उसके हाथ में कोई वाद्ययंत्र है| मधुरा सोचने लगी कि क्या मीराबाई ने कभी राग भूपाली की उस बंदिश को गाया होगा?  क्या किसी ने उसके इस बंदिश गाने पर पाबंदी लगाई होगी? प्रेम क्या सिर्फ मुर्तियों से की जाने वाली चीज है? क्या पड़ोस के किसी लड़के से प्रेम करना अक्षम्य अपराध है?

"जागते रहो" की कर्कश आवाज एकदम से मधुरा की कानों में पड़ती है और वह अपने मानस में बसे उस गाँव से बाहर निकल आती है| लाठी की ठक-ठक की आवाज देर तक सुनायी देती है| उसकी जेहन में कृष्ण मुरारी आता है| वह भी चौकीदार की लाठी की तरह ही है| कुछ कहता नहीं है, पर उसकी पदचाप उसके मौन पर भारी पड़ते हुए उसके होने का आभास कराती है| क्लास में भी कम ही बोलता है| क्या कृष्ण मुरारी भी एकदिन चौकीदार बनेगा? गाँव का चौकीदार बनेगा या देश का? क्या चौकीदार को भी राम-नाम की माला की जरुरत पड़ती होगी? क्या सरहद पर जवान मच्छरदानी में सोते होंगे? क्या कृष्ण मुरारी ने मच्छरदानी टांगना सीखा होगा? 

मधुरा करवट बदलती है और नींद के आगोश में चली जाती है| अब वह सपनों की दुनिया में है| वह सपना देखती है कि वह रोटियाँ बेल रही है और वह गोल न होकर किसी देश के नक़्शे सा दिखता है| वह रोटी सेंकने के लिए तवे पर चढ़ाकर सलाद काटने लगती है और रोटी जल जाती है| वह बर्तन मांजने के लिए आँगन में चापाकल के नीचे आती है और जोरों की बारिश शुरू हो जाती है| वह पूरी तरह से भींग जाती है| वह ठण्ड से कांपने लगती है| इसी क्रम में उसकी नींद खुल जाती है| वह सोचने लगती है क्या होगा अगर सच में ब्याह के बाद वह गोल रोटियाँ न बेल पाए तो? क्या वह किसी ऐसे राज्य या देश में जाकर नहीं रह सकती जहाँ लोग भात खाते हों? क्या पवन मिश्र के घर की स्त्रियाँ बारिश में भींगकर बर्तन मांजती होंगी? क्या पवन मिश्र उनसे बारिश के पानी में भींगने से मना करते होंगे? क्या उनके शरीर पर बरसाती घाव का निशान होगा?

सुबह की अजान तय करती है मधुरा के रियाज का वक़्त| हारमोनियम लेकर बैठ तो गयी, पर गाये क्या? उसे राग भैरवी का रियाज करके गुरूजी के पास जाना है और बंदिश है -

"मधुर बन्सी नाद सुनत 
ब्रिज सुन्दरी भई पुलकित 
चित आवत श्याम मुरत"

यह महज संयोग ही था कि जिस संगीत विद्यालय में मधुरा शास्त्रीय संगीत सीखने जाती थी, उसी विद्यालय में कृष्ण मुरारी का बड़ा भाई श्यामबिहारी बाँसुरी बजाना सीख रहा था| एक दिन पहले चचेरे भाई ने जो सुनाया, उसके बाद यह बंदिश गाना बिलकुल भी हितकारी नहीं था| हारमोनियम की 'सा' कुंजी पर ऊँगली धरे मधुरा सोच रही थी कि गुरूजी ने देवी सरस्वती को सुर की देवी तो बताया पर पिछले दो सालों में किसी भी राग की किसी भी बंदिश में "शारदा" या "सरस्वती" जैसा शब्द क्यूँ नहीं मिला? ज्यादातर बंदिशों में कृष्ण की लीला और कुछ में शिव की महिमा का ही गान क्यूँ है? क्या किसी रोज वह खुद अपनी बंदिशें लिख पाएगी? क्या वह पहली बंदिश में देवी सरस्वती का ज़िक्र करेगी? क्या किसी बंदिश में वह अपने प्रेमी का नाम लिख पाएगी? क्या वह उस बंदिश को अपने पिता या भाई के समक्ष गा सकेगी? क्या कभी ऐसा भी हो सकता है कि उसके गाने पर ही बंदिशें लगा दीं जाएँ?

मधुरा ने आरोह, अवरोह और तान का रियाज किया और हारमोनियम रख आयी| चाची ने धुले हुए कपड़ों को पसारने में मदद करने के लिए मधुरा को छत पर बुलाया| अभी मधुरा ने दो-तीन कपड़े ही पसारे होंगे, चाची ने कहा "तुम्हारी माँ किसी से बता रही थी कि तुम आगे डॉक्टर बनने की पढाई करने वाली हो?"

"इतना आसान कहाँ है चाची| बहुत पढ़ना होता है; फिर कम्पटीशन और फिर ..."

मधुरा अपनी बात समाप्त भी नहीं कर पायी थी कि चाची ने कहा "हाँ , कोई जरूरत नहीं है ये सब करने की| पराया धन हो, दूसरों के घर ही जाना है तो फिर बाप का पैसा क्यूँ बर्बाद करना| लड़की अपने बाप के लिए नहीं सोचेगी तो कौन सोचेगा| तुम तो बस बीए कर लो और शादी कर लो| वैसे भी ज्यादा पढ़ाई करने से आँखों के नीचे काले दाग हो जाते हैं|"

मधुरा चुपचाप कपड़े पसार रही थी और सोच रही थी कि लड़की होना ज्यादा बड़ी समस्या है या शरीर पर दाग वाली लड़की होना? पाँव में बरसाती घाव का निशान ज्यादा परेशान करता है इस समाज को या आँखों के नीचे का काला दाग? तो क्या टीवी पर वह झूठ कहती है कि "दाग अच्छे हैं"?

मधुरा ने अपनी सवालिया तितलियों को वक़्त के गाँव भेज दिया है| सुना है समय डाकिया जवाब दे जाता है| क्या मधुरा के पास इतना वक़्त होगा? क्या समय की चिठ्ठियाँ सही पते पर पहुँचेंगी?

Thursday, January 5, 2017

तुम देखना

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जो करना प्रेम मुझसे सच में, तो मत कहना
कि तुम्हें चलना है समंदर किनारे मेरे साथ 
किसी रोज़ आना , पकड़ लेना मेरा हाथ कसकर 
और ले चलना फिर मुझे समंदर किनारे चुपचाप 
तुम देखना, उस रोज़ मैं नदी बन उतरूँगी तुम्हारे अंदर 
तुम्हें अपना समंदर बना लूँगी

जो करना प्रेम मुझसे सच में, तो मत कहना मुझसे कभी 
कि तुम्हें देखना है तारों भरा आकाश मेरे साथ किसी रात 
जो दिखे किसी रात आकाश में टिमटिमाते तारे और दिन से ज्यादा 
ले आना मुझे खुले आसमान के नीचे बिना कुछ बताये 
तुम देखना, मैं बसा लूँगी तुम्हें अपनी आँखों के आसमान में
तुम्हें नयनतारा कहकर पुकारूँगी

जो करना प्रेम मुझसे सच में, तो नहीं बनाना बहाने मुझसे नहीं मिलने के 
कि झूठ नहीं रह पाता है झूठ अधिक दिनों तक प्रेम के उजाले में
बता देना वह कारण चाहे वह सुनने में कितना ही बुरा लगे 
मैं करूँगी कोशिश कि समझ सकूँ तुम्हें तुम्हारी जगह से 
तुम देखना, अदृश्य हो जाऊँगी, नजर नहीं आऊँगी, तुम ओढ़ लेना 
मैं दिशा बन जाऊँगी

जो करना प्रेम मुझसे सच में, तो मत कहना कुछ; सिर्फ जताना 
मत बुनना झूठे सुन्दर शब्दों का मकरंदी मायाजाल 
कि माया की काया नहीं ठहर पाती है वक़्त के जलजले में 
तुम ईमानदार रहना रिश्ते में, बस प्रेम ही करना 
तुम देखना मैं रहूंगी हमेशा तुम्हारे ही आसपास 
मैं तुम्हारी छाया बन जाउंगी