Monday, July 28, 2014

ईद मुबारक

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दुनिया भर की तमाम कहानियों में
एक सुन्दर सी कहानी है शायमा अल-मसरी भी 
और किसी लघुकथा की तरह है उसका बचपन
जो अचानक से खो गया है
इजराइल और फिलिस्तीन के युद्ध के पन्नों में
जबकि सबसे बड़ा मुद्दा होना था
उसके बचपन का छीन लिया जाना
उसका बचपन दब गया है
अंतरराष्ट्रीय राजनैतिक खबरों के मलबे के नीचे 


जहाँ उसे ब्याहना था अपनी गुड़िया को
बिलाल के गुड्डे के साथ
हो गया रुखसत बिलाल इस जहान से अम्मी के साथ
और शायमा पड़ी है खून से लथपथ अस्पताल के किसी कोने में
लिए अपने पास दुल्हन सी सजी गुड़िया


नहीं समझ पा रही कि कुछ भी कर ले अब
नहीं लौटेगी अम्मी कभी
कि अब वह रहेंगी यादों के आसमान में
बनकर सबसे ज्यादा चमकनेवाला सितारा
जिसे चाहकर भी नहीं मिटा पाएगी
यहूदियों और फिलिस्तिनो की आपसी रंजिश
जो बनी रहेगी सुर्खियाँ अखबारों की एक लम्बे अरसे तक


उधर फरमान सुनाया है इजरायल की आएलेत शकेद ने
कि ख़त्म कर देना है फिलिस्तीन की सभी माँओं को
कि नहीं जन्मे छोटे सांप फिर कभी फिलिस्तीन में
जहाँ मुहर्रम सा बनकर आया है अबके बरस ये ईद
अब्बा के गले लग शायमा ईदी में अम्मी को मांगती है
आज दुनिया भर की अखबारों ने "ईद मुबारक" लिखा है
मैंने अपनी दुआ में शायमा के लिए न'ईम पढ़ा
ईद जिनकी मुबारक है, होती रहे !!!!


------सुलोचना वर्मा-------

 

Thursday, July 17, 2014

घड़ी

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सुबह के लगभग दस बज रहे थे और चारुकेशी बहुत परेशान थी  | उसे अपनी घड़ी नहीं मिल रही थी | बहुत ढूँढा ; पर कहीं नहीं मिली |


बहुत प्यारी थी चारुकेशी को अपनी इकलौती घड़ी | चार बहनों में सबसे छोटी और दसवीं की परीक्षा द्वीतीय श्रेणी में उत्तीर्ण करने वाली अपने घर की पहली लड़की | वह घड़ी उसके लिए दसवीं पास होने पर मिली मैडल जैसी थी | होती भी क्यूँ ना; अब ऐसा मैडल उसे फिर थोड़े ही न मिलना था | उसे दिल की बिमारी थी और उसका पढ़ना लिखना बंद हो चुका था | शहर के बड़े डॉक्टर ने जवाब दे दिया था और अब घर के लोग भी मान चुके थे की वह अगले दस- बारह साल किसी तरह जी पायेगी |

"हे भगवान ! जिसने भी मेरी घड़ी चुराई है, उसका हश्र मेरे जैसा करना | उसे भी दिल की बिमारी हो जाए........... और उसके मुँह से भी खुन आये .......और ............................." कहते हुए चारुकेशी का दर्द उसके चेहरे पर छा गया |

आठ साल की नन्ही माधुरी चारुकेशी के मुँह से ऐसे शब्द सुन सहम गयी | उसका डर लाजिमी था | उसने सुना था की घड़ी में बैटरी होता है और बैटरी के नाम पर उसने टॉर्च में लगनेवाली बैटरी को ही देखा था | उसे जानना था की घड़ी में लगी हुई बैटरी कैसी होती है | यही सोचकर उसने बीती रात उस घड़ी को उठाया था | उसे खोलने में कामयाब भी हो गयी थी ; बैटरी भी देख लिया ; पर कोशिशों के वाबजूद बंद ना कर पायी |  खुली घड़ी को उसने चारुकेशी के कमरे में ही छुपा रखा था |

"जो कोई भी मेरी घड़ी ढूँढ देगा, उसे मिठाई खिलाऊँगी" परेशान हो चारुकेशी ऐलान करती है  |

"यह ठीक रहेगा...मैं घड़ी ढूँढने के नाम पर खुली हुई घड़ी वापस कर सकूँगी......अभिशाप भी नहीं लगेगा फिर तो ......और मिठाई भी....." मन ही मन माधुरी बुदबुदाती है |

थोड़ी देर बाद माधुरी घड़ी ढूंढ़कर चारूकेशी को देती है और चारुकेशी अपने ऐलान के मुताबिक़ खुश होकर माधुरी को मिठाई खिलाती है | साथ  ही माधुरी को देती है दुआएं |

माधुरी मिठाई खा रही है... पर पहली बार मिठाई का स्वाद इतना कड़वा लग रहा है |

-----सुलोचना वर्मा------

असली मुद्दा रह गया

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दो घंटे मेट्रो में खड़े -खड़े सफर करने और फिर एक घंटे गाड़ी चलाने के बाद समर बेहद थक गया था| घर पहुँचा, तो रात का खाना बनाने की ऊर्जा नहीं बची थी और भूखे पेट नींद भी नहीं आ रही थी | आँखें बंद करते ही उसे मेट्रो में सफर करते लोगों का चेहरा याद आ रहा था| वह उस रोज़ मेट्रो से सफर करते हुए न जाने कितनी कहानियाँ एक साथ जी गया । 

उसे उस लड़की का चेहरा याद आया जो अपनी सहेली को सिगमंड फ्रायड के बारे में बता रही थी। सहेली को  फ्रायड के बारे में सुनने में मजा नहीं आ रहा था, वह बारबार फ्रायड के बीच में भिन्डी की सब्जी का ज़िक्र ला रही थी। वह सोचने लगा कि उन दोनों के मुद्दे कितने अलग थे फिर भी वो सहेलियाँ थीं| 

दरवाजे के पास शायद वो कानून पढ़नेवाली दो छात्राएँ थीं जो 'हलफ़नामा" और "इकरारनामा" के बदले प्रयुक्त हो सकने वाला हिंदी शब्द ढूँढ रही थी। उनसे किसी ने ढूंढ़कर लाने को कहा था। साथ यह भी कि  प्रमाण पत्र के कई मायने हो सकते हैं। वह सोच रहा था कि ऐसी जरुरत कैसे आ गयी!! जिसने उन लड़कियों से ऐसा कहा होगा, उसका मुद्दा क्या रहा होगा!!  

उसके ठीक पास बैठी एक माँ अपने बच्चे को फीडिंग बोतल से दूध पिला रही थी और बच्चा अभी नींद के आगोश में आने ही वाला था कि उनका स्टेशन आ गया। माँ ने बोतल बच्चे के मुँह से हटाकर बैकपैक में रख लिया। बच्चा रोने लगा। माँ ने  एक काँधे पर बैकपैक और दुसरे पर बच्चे को उठाया और उतर गयी। वह सोचने लगा कि बच्चे की भूख किस्तों में मिटी होगी। रिश्ते और ज़िम्मेदारियों के बीच बँट माँ ने किस्तों में खुद  को जीया होगा। क्या बच्चे की भूख से ज्यादा जरूरी मुद्दा था सही स्टेशन पर उतरना!!  

सामने के सीट पर बैठी एक माँ अपने 4 साल के लड़के को मेट्रो में दौड़कर दूसरोँ की सीट पर जाने से रोका था। बच्चे के नहीं मानने पर उसने कहा था अगर वह ऐसा करेगा तो उसे कोई बोरियों में बंद कर ले जाएगा और हाथ काट देगा। समर याद कर मुस्कुराया था कि ठीक ऐसा ही बचपन में उसके भी माता-पिता डराने के लिए  कहते थे।  वह सोचने लगा बैलगाड़ी से बुलेट ट्रेन के जमाने में आ गए, पर बच्चों को डराने का तरीका नहीं बदला ! माँ का असली मुद्दा शायद अपने डर को बच्चे तक स्थानांतरित करना था ?

बिस्तर पर लेटा वह अभी करवटें ही बदल रहा था कि उसे आँगन में किसी के गिरने की आवाज़ सुनाई दी | वह सरपट आँगन की तरफ दौड़ पड़ा और वहां जाकर उसने देखा कि उसके पड़ोस में रहने वाले शम्भूनाथ पंडित जी का बड़ा बेटा, तथागत ,औंधे मुँह गिरा पड़ा है | समर उसे उठाने के लिए हाथ बढ़ाता है और जैसे ही तथागत उठता है, समर की नज़र पड़ती है आँगन में बिखरे पड़े कुछ बेशकीमती सामानों पर | समर गुस्से से लाल होकर तथागत के गाल पर दो तमाचे जड़ देता है और उसे अपने घर के एक कमरे में बंद कर शम्भुनाथ पंडित और उनकी स्त्री को बुला लाता है | 

"देखिये पंडित जी, माना कि तथागत बेरोजगार है और गरीबी से जूझ रहा है, पर इसका मतलब यह तो कतई नहीं कि वह चोरी करे" समर की ऊँची आवाज़ पर मुहल्ले के कुछ और लोग उसके घर आते हैं |

" एक तो तुमने इसे मारा, इसकी बेरोज़गारी का मज़ाक बनाया और अब लोगों को इकठ्ठा कर तमाशा बना डाला.....किस मिटटी के बने हो" शम्भूनाथ पंडित की पत्नी सावित्री का इतना कहना था कि पंडित जी भी सुर में सुर मिलाकर कहने लगे "भला इस तरह दी जाती है किसी को उसकी गरीबी की सज़ा ... और तुम मुहल्लेवाले, क्यों आ जाते हो बेरोज़गारी का तमाशा देखने  " 

पंडित जी की बात सुनकर लोग अपने अपने घरों में लौटने लगे | लौटते हुए लोग आपस में बात कर रहे थे, समर को भला बुरा कह रहे थे और उनकी बातचीत का मुद्दा था तथागत की बेरोज़गारी, उसकी गरीबी और उसकी दयनीय स्थिति !!!! तथागत के माता-पिता भी उसे संग लेकर अपने घर चले गए |

समर बुत बना घर के आँगन में खड़ा रह गया | उसने न्याय करने के लिए तथागत के माता -पिता को बुलाया था ; परन्तु उन लोगों ने चोरी के मुद्दे को बदल कर उन मुद्दों को उछाला जिस पर उन्हें समाज से सहानुभूति मिल सकती थी और मिली भी | असली मुद्दा रह गया !

Saturday, July 12, 2014

कवि की कविता

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कवि को लिखना है काजल, उमस भरे एक दिन को 
कविता समेट लेती है बादल अपनी आँखों में  
दमक उठता है प्रेम का सूरज आसमान पर
कवि बारिश की चाह करता है


कवि दर्ज करता है चुम्बन प्रेयसी की गर्दन पर
और खोल देता है क्लचर बालों से
कविता महसूस करती है फिसलते हुए बालों को काँधे पर
फिर चखती है कवि की जुबान का स्वाद देर तक


कवि छेड़ देता है साज निर्वसना की देह का
कविता गुनगुनाने लगती है अवरोह से आरोह तक
किल्लोल भरती हैं प्रेयसी के पैरों की उंगलियाँ
रिसने लगता है प्रेम रसायन बन देह से  
कवि साधता है सांप्रयोगिक तंत्र प्रेयसी पर 
कविता झूमने लगती है चरमोत्कर्ष की सीमा पर
प्रेयसी के पंख फहराने लगते हैं
मंत्रमुग्ध कर जाता है कवि को
कविता का अनवरत लयबद्ध स्पंदन
कवि लिखता है पूर्णविराम
प्रेयसी की पीठ के बाएँ हिस्से में


कवि अब कविता नहीं लिखता
लिखता है प्रेम !


----सुलोचना वर्मा-------

Tuesday, July 8, 2014

विदाई

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दिवाली के बाद
जब आयी सहालग की बारी
हो गई डोली विदा घर से
और चले गए बाराती


खड़ा रहा पिता
दुआरे पर बहुत देर
मन सा भारी कुछ लिए


देखती रही माँ एकटक
गुलाबी कुलिया चुकिया
जो भरा था अब भी
खाली-खाली से घर में


----सुलोचना वर्मा----

Thursday, July 3, 2014

कुआं

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मुझे परेशान करते हैं रंग 
जब वे करते हैं भेदभाव जीवन में
जैसे कि मेरी नानी की सफ़ेद साड़ी
और उनके घर का लाल कुआं
जबकि नहीं फर्क पड़ना था
कुएं के बाहरी रंग का पानी पर
और तनिक संवर सकती थी
मेरी नानी की जिंदगी साड़ी के लाल होने से


मैं अक्सर झाँक आती थी कुएं में
जिसमे उग आये थे घने शैवाल भीतर की दीवार पर
और ढूँढने लगती थी थोड़ा सा हरापन नानी के जीवन में
जिसे रंग दिया गया था काला अच्छी तरह से
पत्थर के थाली -कटोरे से लेकर, पानी के गिलास तक में


नाम की ही तरह जो देह था कनक सा
दमक उठता था सूरज की रौशनी में
ज्यूँ चमक जाता था पानी कुएं का
धूप की सुनहरी किरणों में नहाकर


रस्सी से लटका रखा है एक हुक आज भी मैंने
जिन्हें उठाना है मेरी बाल्टी भर सवालों के जवाब
अतीत के कुएं से
कि नहीं बुझी है नानी के स्नेह की मेरी प्यास अब तक
उधर ढूँढ लिया गया है कुएं का विकल्प नल में
कि पानी का कोई विकल्प नहीं होता
और नानी अब रहती है यादों के अंधकूप में !


----सुलोचना वर्मा------