Friday, April 3, 2015

मंजूगाथा

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ब्लू लाइन बस के नीचे आकर मंजू के पति की मौत हो गयी और दो बरस की ममता को साथ लिए मंजू नैहर

आ गयी| नैहर में अभी सात महीने ही बीते थे कि भाभियों ने उसे तंग करना शुरू कर दिया| मंजू की माँ को
यह समझते देर न लगी कि मंजू का वहाँ ज्यादा दिन रहना संभव नहीं हो पायेगा| वह मंजू के लिए नए वर की तलाश में लग गयी|
 
"अम्मा भी न हद करती हैं, कौन ब्याहेगा इस बेवा और एक लड़की की माँ को....लड़का होता तो और बात
थी; पर लड़की कोई नहीं गछेगा" उसकी भाभियाँ अक्सर आपस में बातें करते हुए कहती|
 
कई रिश्ते आते और चले जाते| फिर एकदिन पड़ोस के गाँव से एक रिश्ता आया| बीस साल की मंजू के लिए
लड़के की उम्र थोड़ी ज्यादा थी| यही कोई ३० साल का रहा होगा| पर उम्र की किसे परवाह थी!!! किशोर
सिंह ने न सिर्फ मंजू के रिश्ते के लिए हामी भरी बल्कि उसकी बेटी को अपनाने के लिए भी तैयार हो गया|
फिर क्या था, चट मँगनी और पट ब्याह|

शादी के बाद जब मंजू अपने नए ससुराल जा रही थी तो उसकी माँ ने ममता को अपने पास रख लिया|
"तू कुछ दिन वहाँ रह ले, वहाँ के कायदे क़ानून समझ ले, फिर इसे ले जाना| वैसे भी ममता ज्यादा समय अब मेरे पास ही रहती है " अम्मा ने मंजू को समझाते हुए कहा|
 
दिल पर पत्थर रखकर मंजू ने नए ससुराल का रुख किया था| यहाँ सभी कुछ ठीक-ठाक ही था| शादी के
बाद सातवें महीने जब मंजू नैहर लौटी, तो उसने अपनी माँ को बताया कि वह फिर से माँ बननेवाली है और
जंचगी तक नैहर ही रहेगी|
 
नौवाँ महीना बीतते ही मंजू ने एक लड़के को जन्म दिया| उसकी माँ को लगा कि अब सभी कुछ ठीक हो
जाएगा और मंजू की जिंदगी भी जीवन की पटरी पर दौड़ पड़ेगी| तीन महीने बाद जब मंजू ससुराल पहुंची, तो
बेटे के साथ बेटी को भी ले गयी|
 
जहाँ नन्ही सी ममता खुश थी कि वह अब अपनी माँ के साथ रहेगी; उसके यहाँ आने से परिवार के अन्य
सदस्यों की भवें तनी रहती थी| आखिरकार एक दिन किशोर ने खुद ही मंजू से कह दिया कि उसे और उसके
परिवारवालों को ममता का वहाँ रहना पसंद नहीं| उसने मंजू से ममता को वापस अपने नैहर भेजने को कहा
जिसके जवाब में मंजू ने कुछ नहीं कहा| वह अगले ही दिन अपने दोनों बच्चों को लेकर नैहर आ गयी|  जब
सप्ताह बीत गया, तो एक दिन किशोर आ धमका|  
 
"क्या हुआ, यहीं पड़े रहने का इरादा है क्या तुम्हारा"किशोर चिल्लाया|
 
"मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ; पर मेरे साथ मेरे दोनों बच्चे चलेंगे" मंजू की आवाज में ठहराव था|
 
"नहीं, मैं किसी गैर के बच्चे को नहीं अपना सकता; उसे यहीं रहना होगा"किशोर ने झल्लाते हुए कहा|
 
"फिर मैं अपने दोनों बच्चों को अकेले ही पाल-पोसकर बड़ा कर लूँगी| मैं अपनी बच्ची को अकेले नहीं छोड़
सकती" कहती हुई मंजू रुआँसा हो गयी थी|
 
"मैं भी देखता हूँ कि कब तक तुम्हारा यह तेवर कायम रह पाता है" कहता हुआ किशोर उलटे पाँव लौट गया|
वह लगभग आश्वस्त था कि मंजू बहुत देर सवेर उसके पास लौट आएगी|
 
नैहर रहते अभी तीन महीने ही गुजरे थे कि हालातों ने उससे अपने पैरों पर खड़े होने की फ़रमाइश करनी
शुरू कर दी| कभी बेटी को पेट भर खाना नहीं मिलता तो कभी बेटे के दूध में पानी मिलाने की नौबत आ
जाती| उसकी अपनी भूख और प्यास तो कब की ख़त्म हो चुकी थी| ऐसे में एक दिन वह अपने पड़ोस की
शीला के साथ काम की तलाश में शहर की ओर गयी और शान्ति अपार्टमेंट्स के गौतम घोष के घर में
कामवाली की नौकरी तय करके घर लौटी|
 
वक़्त के कंधे से कन्धा मिलाते हुए पता ही न चला कि कब बारह साल गुजर गए| उसकी बेटी ममता तड़के
सुबह उठकर घर के काम-काज में माँ की मदद करने के बाद सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए जाती थी|
स्कूल से लौटकर फिर माँ की मदद करने में जुट जाती| गाँव  के तीज-त्योहारों में ममता ही वहाँ की औरतों
को मेंहदी लगाती और जो भी पैसे मिलते, माँ को लाकर सब दे देती| उसका भाई, मनोज, सुबह देर से
उठता, तैयार होकर नाश्ता करके इंग्लिश मीडियम स्कूल जाता| स्कूल से लौटते ही गाँव के कुछ अन्य
शरारती बच्चों के साथ मिलकर किसी शैतानी में जुट जाता| मंजू अक्सर उसे लेकर परेशान रहती थी| ममता
की ममता थी कि उसे अपने भाई पर बड़ा लाड़-दुलार आता; उसकी शैतानियों पर भी|
 
मंजू जब ज्यादा परेशान होती तो अक्सर मिसेज घोष को कहती "पता नहीं क्या लिखा है मालिक ने मेरी
किस्मत में!!! इतनी मुसीबतों में भी छोड़े को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ा रही हूँ और इक वो है कि पढ़ाई में मन ही
नहीं लगाता है| इतने पैसे ममता पर खर्च कर दूँ तो हर बार अव्वल आये"  
 
"तो ममता पर ही क्यूँ नहीं खर्च करती हो पैसे? गधे को घोड़े बनाने के चक्कर में उस बेचारी के साथ अन्याय
क्यूँ कर रही हो?"
 
"उसने पराये घर जाना है और फिर गधा ही सही, बुढापे में बेटा ही काम आएगा"
 
"कितने भाई हैं तुम्हारे?"
 
"तीन"
 
"फिर तुम्हारी माँ तुम्हारे साथ क्यूँ रहती है?"
 
कबूतर जैसे बिल्ली से बचने के लिए आँखे मूँद लेता है, मंजू बिना जवाब दिए सर झुकाए वहाँ से चल देती|
 
एक दोपहर जब मिसेज घोष टीवी में उन्नाव के किसी साधू के सपने को आधार मान भारतीय पुरातत्व संस्थान द्वारा सोने की खुदाई का समाचार देख रही थी, अचानक से कॉल बेल बजा| दरवाजा खोलते ही मिसेज घोष के सामने मंजू और ममता खड़े थे|
 
"इस समय?"
 
"हाँ, आपसे जरुरी बात करना था"
 
"हाँ, बोलो"
 
"मेरी तबियत बहुत खराब है; आप मेरा हिसाब कर दो"
  
"मतलब? क्या हुआ तुम्हें?"
 
"जी, मुंह आया है मेरा| कुछ खाया नहीं जा रहा"
 
"ये भी कोई बिमारी है भला?" कहते हुए मिसेज घोष हँसी नहीं रोक पायी|
 
"मुझे चक्कर आता है" मंजू चाहकर भी मिसेज घोष को नहीं समझा पा रही थी|
 
"डॉक्टर को दिखाओ, ठीक हो जाएगा"
 
"जी, दवाई तो ले ही रही हूँ| बस आप मेरा हिसाब कर दो"
 
"नहीं करती जा!! छुट्टी ले, आराम कर ले"
 
मंजू और ममता निराश होकर लौट गए| लौट क्या गए, फिर नहीं आये| मिसेज घोष ने कुछ दिन इंतज़ार करने के बाद दूसरी कामवाली को रख लिया|
 
लगभग एक महीने के बाद मिसेज घोष फोन पर अचानक ममता की आवाज़ सुनकर हैरत में पड़ गयी|
ममता रो रही थी|

"क्या हुआ तुम्हें?"

"आंटी, मम्मी हॉस्पिटल में है, तबियत बहुत खराब है| लगता है नहीं बचेगी" कहते हुए ममता सुबक रही थी|

"अरे, ऐसा नहीं कहते| मेरी बात कराओ मंजू से" मिसेज घोष परेशान हो उठी|

"नमस्ते दीदी" मंजू की आवाज़ लड़खड़ा रही थी|

"क्या हो गया तुम्हें?"

"अल्सर बता रहे हैं डॉक्टर"

"ओह!"

"मुझे पैसों की ज़रूरत है"

"हाँ, ममता को भेजो आज ही"

"नहीं, आज नहीं;रविवार को मैं खुद आऊँगी| आप पैसे और किसी के हाथ में नहीं देना; खासकर मेरे बेटे
को"

"ठीक है, जैसा तुम कहो" फोन रखकर मिसेज घोष अवसाद भरी चिंता में डूब गयी| थोड़ी देर बाद खुद को
सम्भालते हुए उठी और हड़बड़ी में नम्बर डायल करने लगी|

"शुनछो गौतोम, मोंजू आर बांचबे ना (सुनो गौतम, मंजू अब नहीं बचेगी)" मिसेज घोष ने पति को फोन लगाया|

"बांचबे ना? माने?(नहीं बचेगी? मतलब?)"

"ओर अल्सर होयेछे, ओ हॉस्पिटल ए(उसे अल्सर हुआ है, वह अस्पताल में है)"

"ओह"

फिर एक लम्बे मौन के बाद दोनों फोन रख देते हैं| पति-पत्नी, दोनों  ही बड़े संवेदनशील हैं|

यूँ तो रविवार का इंतज़ार हर बार लम्बा होता है; पर इस बार कुछ ज्यादा ही लम्बा था|

"तेरे आने का धोखा सा रहा है.........दिया सा रात भर जलता रहा है"शाम के वक़्त मिसेज घोष बेगम अबीदा परवीन के गाने सुन रही थी| कॉल बेल की घंटी के बजते ही दरवाजे की ओर भागी| सोचा शायद मंजू आयी होगी| दरवाजा खोला तो देखा मनीषा थी, उनकी नयी कामवाली|

"सुबह क्यूँ नहीं आयी?"

"क्या बताऊँ मैम, हमारे गाँव की एक लड़की आज अचानक से ख़त्म हो गयी| मैं वहाँ चली गयी थी|"

"हाँ, सारे गाँव का ज़िम्मा तुमने ही तो ले रखा है" मिसेज घोष ने व्यंग करते हुए कहा|

"मैम, यूँ तो कुछ ख़ास मिलना नहीं होता था हमारा, पर उसकी बेटी का रोना देख नहीं रहा गया| बहुत बुरा
हुआ उसके साथ...." मनीषा बोलती ही चली जा रही थी|

"बेटी?"मिसेज घोष को अचानक याद आता है कि मनीषा का ससुराल ही मंजू का मायका है|

"हाँ, आप तो जानते हो उसे| आपके यहाँ काम करने वो भी तो अपनी माँ के साथ आती थी"

"कौन? ममता?"

"हाँ"कहकर मनीषा बर्तन माँजने में व्यस्त हो गयी|

मिसेज घोष झट से फ़ोन लेकर मंजू का नंबर डायल करना चाहती है| अभी-अभी जो सुना, उस पर भरोसा
नहीं हो पा रहा है| मंजू का नम्बर बंद हो चूका है|

मिसेज घोष आँखों को बंद किये रॉकिंग चेयर पर झूलती रही|

भला हुआ मेरी मटकी फूटी रे.......... मैं तो पनिया भरन से छूटी रे ................ अबीदा तो जैसे मंजू के लिए ही गा रही थी|

एक महीने बाद, वह भी रविवार का दिन था| ममता अपनी नानी के साथ आयी| उसकी माँ ने मरने से पहले
उसे मिसेज घोष से पैसे लेने को कहा था| आज ममता ने अपनी माँ की चुन्नी से अपना सर ढँका हुआ था|
मिसेज घोष ने सवालों के ढेर लगा दिए| ममता चुप रही| उसकी नानी बता रही थी कि मंजू का दूसरा पति
आकर मनोज को अपने साथ ले गया| कहकर गया था कि मंजू का अंतिम संस्कार करने के सप्ताह बाद उसे
लेकर वापस आ जाएगा| एक महीना गुजर गया, अब भी लोगों को उसके आने का इंतज़ार है|
मिसेज घोष ने ममता के हाथों में रूपये पकड़ाते हुए कहा कि किसी भी मुसीबत में वह उनके पास आ
सकती है| यह सोचकर कि अब ममता का ख्याल रखनेवाला कोई नहीं है और सर्दियाँ दस्तक दे चुकी हैं,
ममता को नया कम्बल भी दिया|

कई महीने गुजर गए| मनोज अपनी नयी दुनिया में व्यस्त हो गया| उधर ममता ढूँढ रही है लोगों की आँखों में अपने लिए थोड़ी सी ममता.....