Saturday, August 19, 2017

कोलेस्ट्रॉल

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हमारे रक्त में है वह मौजूद बन कई जन्मों का पाप 
पाप, जो मिला हमें जन्म लेते ही विरासत में पूर्वजों से 
और बाद में हमारे अपने कर्मफल स्वरूप 
पाप, जो नहीं घुल पाया रक्त में सदियों बाद भी 
अन्य तमाम पापों की तरह 
पाप, जिसने हृदय की कुण्डली में लिखा सर्वनाश  
और कुण्डली मार बैठ गया नाग की तरह धमनियों में 

न चलो, तो भी दुखता रहता है पाँव, पुराने प्रेम की तरह 
जो पैदल चलो, तो फूलने लगती है साँस 
कितने सहस्र वर्ष चलने पर धुलेगा यह पाप ?
बह गए एक-एक कर हमारे तमाम पूर्वज गंगा में 
पर नहीं धुल सका, रहा यह ऐसा पाप  
तो संसार का सार यही हुआ न 
कि बह जाती हैं तमाम इच्छाएँ आशा के साथ 
कि बह जाते हैं प्राणी और रह जाता है पाप !!!

बढ़ता - घटता रहता है रक्तचाप कोसी के जलस्तर की तरह 
खून गाढ़ा होता रहता है, डॉक्टर हो जाते हैं लाचार सरकार की तरह 
तो मान लिया जाय कि ऐसे ही आती रहेगी मृत्यु की भीषण बाढ़ 
और हम पहुँच जाएँगे अपने अंतिम पते पर मिटटी में 
जब भी करना चाहा महसूस सीने में दफ्न साँसों को, पाया स्पर्श शून्य का  
इस स्थिर प्रगाढ़ शून्याकार निःशब्द घेरे में हो बंद जिंदगी है बीतनी 
रह-रहकर ले रहे हैं हम जो लम्बी साँस, उसकी लम्बाई है कितनी ?

जिंदगी निःशब्द शब्दबिंदुओं का अंतराल मात्र है !!!

Sunday, August 13, 2017

थायराइड

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घर के नमक में आयोडीन को आए हुए कोई तेईस साल 
और शरीर से उसकी मात्रा घटे ग्यारह साल हो गए 
फिर जाती रही जमींदारी अपनी ही देह की जमीन की 
कि मांसपेशियाँ छोड़कर चली गयीं अपना पुराना पता 
और लटकती रही साल्वाडोर डाली के तैलचित्र की तरह 
पर तैलचित्र की तरह उन्हें तन की दीवार पर बाँधे रखना हुआ मुश्किल 
कोई समझाए मांसपेशियों को कि इतनी आज़ादी ठीक नहीं 
तो विद्रोही स्वर में गाती हुई अकर्मण्यता कर देती है चढ़ाई आँखों पर 
पारित ही करना पड़ता है तब निंद्रा का शांति प्रस्ताव 
निंद्रा भंग होते ही पड़ती है नजर जब मेज के दर्पण पर 
करती है चित्कार आँखें, कहती हैं चिल्लाकर "अनैतिक है यह"
मन बनकर रह जाता है जैसे जलियांवाला बाग
कि तभी पड़ती है नजर बुद्ध की हँसती हुई प्रतिमा पर 
जिनके शरीर का साम्राज्य है विशाल, थायराइड के मरीज की तरह 
केश ठीक वैसे ही घुँघराले हैं जैसे हो जाते हैं इस व्याधि में 
आँखें तन्द्रामय हैं या ध्यान में लीन, लगती अपनी जैसी ही हैं 
तफात बस इतना है कि मुस्कुरा पा रहे हैं बुद्ध !!

खैरियत बस इतनी है कि स्नायुतंत्र के घर अब भी जलायमान है विद्युत् 
विवेक भटक रहा है मस्तिष्क के गलियारों में और मांसपेशियाँ मुक्तांचल में  !!!