Saturday, May 19, 2018

सरोज मृत्यु

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वह दिन का दूसरा प्रहर था जब हुआ शुरू मृत्यु आयोजन
गंगा पार की सुतनुका हवाओं ने गाया विरह का गीत
और पड़ी मलीन छाया ज्येष्ठ महीने के तपते मुख पर
तो भ्रमण पर निकल गए समस्त शब्द निःशब्द रूप लेकर

मृत्यु के जल की स्मृतियों में हुआ सरोज का आस्तित्व परिपूर्ण
तो आया लेकर अंधकार का दूत गंगा का जल निमंत्रण
सरोज की जिह्वा पर उतर आया स्वाद मछलियों का
डूबता चला गया फिर सरोज का मृणाल मृत्यु के जल में

भाग्य गुण से मिलता है ऐसा महाप्रस्थान
जब मृत्यु भी हो उठती है अत्यंत शिल्प सचेतन
जीवन ताल के पंक में बिखरा पड़ा है पवित्र बीज
फिर खिलेगा कहीं कोई सरोज किसी सृष्टि मुखर दिन में  !!