Monday, September 18, 2017

तसलीमा नसरीन की कविता

बांग्ला से अनुवाद : सुलोचना

१. प्रेम
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॥ प्रेम ॥ यदि मुझे काजल लगाना पड़े तुम्हारे लिए, बालों और चेहरे पर लगाना पड़े रंग , तन पर छिड़कनी पड़े सुगंध, सबसे सुंदर साड़ी यदि पहननी पड़े, सिर्फ़ तुम देखोगे इसलिए माला चूड़ी पहनकर सजना पड़े, यदि पेट के निचले हिस्से के मेद, यदि गले या आँखों के किनारे की झुर्रियों को क़ायदे से छुपाना पड़े, तो तुम्हारे साथ है और कुछ, प्रेम नहीं है मेरा। प्रेम है अगर तो जो कुछ है बेतरतीब मेरा या कुछ कमी, या कुछ भूल ही, रहे असुंदर, सामने खड़ी हो जाऊँगी, तुम प्यार करोगे। किसने कहा कि प्रेम ख़ूब सहज है, चाहने मात्र से हो जाता है! इतने जो पुरुष देखती हूँ चारों ओर, कहाँ, प्रेमी तो नहीं देख पाती!!
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२. व्यस्तता
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मैंने तुम्हारा विश्वास किया था, जो कुछ भी था मेरा सब दिया था,
जो कुछ भी अर्जन-उपार्जन !
अब देखो ना भिखारी की तरह कैसे बैठी रहती हूँ!
कोई पीछे मुड़कर नहीं देखता।
तुम्हारे पास देखने का समय क्यों होगा! कितने तरह के काम हैं तुम्हारे पास!
आजकल तो व्यस्तता भी बढ़ गई है बहुत।
उस दिन मैंने देखा वह प्यार  
न जाने किसे देने में बहुत व्यस्त थे तुम,
जो तुम्हें मैंने दिया था।

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३. आँख 
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सिर्फ़ चुंबन चुंबन चुंबन
इतना चूमना क्यों चाहते हो?
क्या प्रेम में पड़ते ही चूमना होता है!
बिना चुंबन के प्रेम नहीं होता?
शरीर स्पर्श किये बिना प्रेम नहीं होता?

सामने बैठो,
चुपचाप बैठते हैं चलो,
बिना कुछ भी कहे चलो,
बेआवाज़ चलो,
सिर्फ़ आँखों की ओर देखकर चलो,
देखो प्रेम होता है कि नहीं!
आँखें जितना बोल सकती हैं, मुँह क्या उसका तनिक भी बोल सकता है!
आँखें जितना प्रेम समझती हैं, उतना क्या शरीर का अन्य कोई भी अंग समझता है!


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१. প্রেম
---তসলিমা নাসরিন
যদি আমাকে কাজল পড়তে হয় তোমার জন্য ,
চুলে মুখে রং মাখতে হয়,
সবচেয়ে ভালো শাড়িটা যদি পড়তে হয়,
গায়ে সুগন্ধী ছিটোতে হয়,
যদি তলপেটের মেদ,
শুধু তুমি দেখবে বলে মালাটা চুড়িটা পড়ে সাজতে হয়,
তবে তোমার সঙ্গে অন্য কিছু, প্রেম নয় আমার।
যদি গলার বা চোখের কিনারের ভাঁজ কায়দা করে লুকোতে হয়, প্রেম হলে আমার যা কিছু এলোমেলো, যা কিছু খুঁত,যা কিছুই ভুলভাল অসুন্দর থাক, সামনে দাঁড়াবো, তুমি ভালবাসবে।


কে বলেছে প্রেম খুব সহজ, চাইলেই হয়!
এত যে পুরুষ চারিদিকে, কই, প্রেমিক তো দেখি না!

২. ব্যস্ততা তোমাকে বিশ্বাস করেছিলাম, যা কিছু নিজের ছিল দিয়েছিলাম, যা কিছুই অর্জন-উপার্জন ! এখন দেখ না ভিখিরির মতো কেমন বসে থাকি ! কেউ ফিরে তাকায় না। তোমার কেন সময় হবে তাকাবার ! কত রকম কাজ তোমার ! আজকাল তো ব্যস্ততাও বেড়েছে খুব। সেদিন দেখলাম সেই ভালবাসাগুলো কাকে যেন দিতে খুব ব্যস্ত তুমি, যেগুলো তোমাকে আমি দিয়েছিলাম। ৩. চোখ খালি চুমু চুমু চুমু এত চুমু খেতে চাও কেন? প্রেমে পড়লেই বুঝি চুমু খেতে হয়! চুমু না খেয়ে প্রেম হয় না? শরীর স্পর্শ না করে প্রেম হয় না? মুখোমুখি বসো, চুপচাপ বসে থাকি চলো, কোনও কথা না বলে চলো, কোনও শব্দ না করে চলো, শুধু চোখের দিকে তাকিয়ে চলো, দেখ প্রেম হয় কি না! চোখ যত কথা বলতে পারে, মুখ বুঝি তার সামান্যও পারে! চোখ যত প্রেম জানে, তত বুঝি শরীরের অন্য কোনও অঙ্গ জানে!

Thursday, September 14, 2017

गुड़िया

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जन्मदिन के उपहार में तीन गुड़ियाँ मिलीं थी उसे 
जबकि दो पहले से ही रही उसके पास 
पाँच गुड़ियों का होना नहीं था कम किसी भी स्वप्न से 

पहली गुड़िया की बनाई ऊँची चोटी 
और  चूमते हुए उसे कहा "तुम मेरी छुटकी हो"
बार्बी नाम लेकर ही आई थी दूसरी 
जिसके सुंदर जूतों को निहारती थी देर तक 
तीसरी के पास गुलाबी फ्रॉक थी ठीक वैसी 
पहना था जैसा उसने अपने जन्मदिन पर और 
पूछकर माँ से रखा था उसका नाम "नयनतारा"
माँ उसे भी इसी नाम से बुलाती थी अक्सर 
नौ बरस की परी का रहा छोटा सा प्यारा संसार 

ठीक जब वह खेल रही थी अपने नए -पुराने गुड़ियों से 
और देख रही थी अगले जन्मदिन का प्यारा सपना 
घटित होती रही उसके जीवन में कुरूप एक घटना 
मामा कहती थी, मारा जिसने बचपन को किस्तों में 
नासमझ थी, फिर कौन करता है संदेह ऐसे रिश्तों में 
यह भी एक खेल है - बताता रहा उसे पूछे जाने पर 
और यह भी बताया कि गुड़िया वह थी इस खेल में 

जन्मदिन के उपहार में तीन गुड़ियाँ मिलीं थी उसे 
जबकि दो पहले से ही रही उसके पास 

अब वह कोई मामूली गुड़िया तो थी नहीं, हाड़-मांस की गुड़िया थी 
जब दिया जन्म उसने एक गुड़िया को, उसे नहीं पता था हुआ था जो 
रख दिल पर पत्थर कहा था माँ ने - पथरी थी, निकाल दिया डॉक्टर ने 
कह रहे थे लोग होकर हैरान हर तरफ - गुड़िया को गुड़िया हुई है  

जन्मदिन के उपहार में तीन गुड़ियाँ मिलीं थी उसे 
जबकि दो पहले से ही रही उसके पास 

बंद कर दी सभी गुड़ियाँ माँ ने अलमारी में एक रोज़ यह कहकर 
कि बंद हो जाना चाहिए अब गुड़ियों का खेल हमेशा के लिए 
कि दस बरस की लड़की बन चुकी थी खिलौना इस खेल आड़ की में 
सुबकती हुई लड़की कुछ भी नहीं समझ पायी 

जन्मदिन के उपहार में तीन गुड़ियाँ मिलीं थी उसे 
जबकि दो पहले से ही रही उसके पास ..........

Friday, September 1, 2017

कष्टार्तव

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जकड लेता है जन्म-विषाद अजगर की तरह 
मचाता है हाहाकार भीषण दर्द श्रोणि क्षेत्र में 
किंचित यहीं से शुरू होती है भग्नयात्रा स्त्रियों की 

जिह्वा से कंठ के मार्ग उतरता काढ़ा आर्द्रक का 
देता है आजन्म स्वाद बचे रहने का मृत्यु-उत्सव में 
मन करता है चित्कार - रक्त-स्तम्भक नागकेसर 

कहता है मस्तिष्क बचे रहने की तीव्र इच्छा पर धरकर हाथ 
करना पड़ता है खुद को ध्वंश कई-कई बार गढ़ने के लिए 
फिर क्षुद्र देह्कोष और जीवन के मूल में निहित है रक्तपात