Sunday, April 24, 2016

भ्रम ज़रूरी है

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वह जो भी करती बड़ी शिद्दत के साथ करती| जैसे कि जब कॉलेज के दिनों में उसने कई सालों तक केमिस्ट्री पढ़ा, तो ऐसे पढ़ा कि जैसे बाकी बची जिंदगी का ऑक्सीजन उसे इसी ज्ञान के जरिये मिलना है| उसे आज भी याद है कि क्लोरीन का एटॉमिक नंबर १७ है जबकि किसी न्युरोलॉजिकल बीमारी की वज़ह से वह चीज़ें भूलने लगी है| उसे क्लोरीन की एलीमिनेटिंग प्रॉपर्टीज भी बखूबी याद है| फिर भी हर शाम स्विमिंग के लिए जाने से पहले ७५ एसपीऍफ़ वाले सनस्क्रीन क्रीम लगाते हुए खुद को आईने में देखकर मुस्कुराती है और अंततः आँखें मूँदकर कान पकड़ते हुए अपने केमिस्ट्री टीचर से मन ही मन कहती है "हम जानते हैं कि स्विमिंग पूल का क्लोरिन सनस्क्रीन में मौजूद टाइटेनियम डाइऑक्साइड को उखाड़ फेंकेगा और उसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे| पर मन की शांति के लिए भ्रम ज़रूरी है, बाकी आपके पढाये हुए पर साइंस जितना ही भरोसा करते हैं|" और फिर अगले ही कुछ पलों में, छपाक ........

जब उसे प्रेम हुआ, तो उसने वह भी पुरे शिद्दत और इमानदारी से निभाने की कोशिश की| प्रेम को विवाह में परिवर्तित भी किया| पर यह जिंदगी का अपना प्रयोग था  जिसका कॉलेज के केमिस्ट्री के प्रयोगशाला में किए हुए प्रयोगों की तरह कोई तयशुदा परिणाम नहीं होता| प्रेम टूटा, और साथ ही वह भी ऐसे टूटकर बिखरी जैसे क्लैंप में टेस्टट्यूब लगाते हुए असावधानी से गिरकर टूटे हुए टेस्टट्यूब  के काँच के टुकड़े| वक़्त के साथ उसने खुद को संभालना सीखा| उसने ऑर्गनिक केमिस्ट्री से तौबा कर ली कि प्रेम उसे कार्बन और हाइड्रोजन का बांड लगने लगा था और वह जिंदगी को इनोर्गनिक केमिस्ट्री की तरह तयशुदा सामजिक मापदंडों पर चलाने की तरकीबें सीखने लगीं| अब वह चीजों की संरचना और व्यवहार को करीब से जानने की कोशिश करने लगी| फिर एकदिन ऑक्सीजन सदृश्य प्रेम चुपके से एकबार फिर उसकी साँसों में घुल गया| वह एकबार फिर से जिंदा हो उठी|   

दूध का जला छाछ को भी फूँक-फूँक कर पीता है; फिर वह तो जिंदगी की आग से तपकर बाहर निकली थी| अब वह प्रेमी के हर व्यवहार को प्रेम के लिटमस पेपर पर रखकर देखती| ज्यादातर समय लिटमस पेपर का रंग नीला हो जाता| कमबख्त व्यवहार होता ही इतना सख्त था!!!

उसे प्रेयस से मिले हुए इसबार सत्रह दिन हो गए| इस बीच उसने प्रेयस को तीन बार मिलने का आग्रह किया; पर प्रेयस के पास हर बार नहीं मिलने के तर्कपूर्ण कारण थे| 

तकलीफ में आईने से बड़ा साथी और कौन होता!!! सो वह आईने में देखकर कहने लगी "समझ लो कि यह प्रेम भी न एसपीऍफ़ वाले सनस्क्रीन क्रीम की ही तरह है| मालूम है वक़्त के पानी में नेह का टाइटेनियम डाइऑक्साइड उखड़ जाएगा और फिर अवसाद शरीर के समस्त रसायनों को उलट -पुलट कर रख देगा , पर जिंदा रहने के लिए यह भ्रम भी ज़रूरी है, बाकी इसबार दुःख सहने के लिए हम पहले से तैयार हैं|" और फिर अगले ही पल फोन उठाकर- "कब मिलोगे!!!"