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अपने ख्वाबों की बदलती ज्यामिति पर
जिसे बन जाना था पाइथोगोरस सा
और गढ़ने थे जिसे नित्य नए प्रमेय
मैंने देखा है खुली आँखों से उस शख्स को
बदलते हुए अनगढ़े ख्वाबों को रंगों में,
फिर उन रंगों को बदलते कैनवास पर
बिखरी हुई आड़ी-तिरछी लकीरों में,
बदलते देखा है उन लकीरों को फिर
अलग-अलग ज्यामितीय आकारों में,
देखा फिर ज्यामितीय आकारों को
बदलते हुए एक मुकम्मल आकृति में
देखा है इन आकृतियों को कई बार बनते घोड़ा
कभी रंगीन तो कभी श्वेत-श्याम रंगों में
और इस प्रकार फ़िदा हुसेन की तूली से गुजरकर
अनगढ़े ख्वाबों को घोड़ा बन दौड़ते कैनवास पर
कई बार मैंने देखा है खुली आँखों से
यदि लगता है आपको कि मर गए हैं आपके ख्वाब
यदि लगता है आपको कि ख्वाब अब बचे ही नहीं
यदि लगता हो आपको कि ख्वाब जैसा कुछ था ही नहीं कभी
तो जागकर शून्यता के ध्यान से देखिये फिदा हुसेन के घोड़े को
जो देखता है मुड़-मुड़ कर पीछे अलग-अलग रंगों में
आगे बढ़ते हुए क्या देखा है आपने कभी मुड़कर अपने छूटे हुए ख्वाबों को ?
आप देखेंगे कि हमारे अपने ही ख्वाबों का चित्रांतर है फिदा हुसेन का घोड़ा
जिसे स्पर्श कर पाने के लिए दरकार है अंतर्दृष्टि की
जिसके शरीर से एक ज्यामितीय आकार निकालकर रख लेना चाहता है मन
फिदा हुसेन के घोड़े की नाल में दिखता है मस्तुल हमारे ख्वाबों की नौका का
फिदा हुसेन का घोड़ा जो दिखता है कैनवास पर पीछे मुड़कर देखता
बना है ज्यामितीय आकारों से और हर आकार का है अपना एक कैनवास
मंचन हो सकता है उस हर एक कैनवास पर हमारी ख्वाबों के पसंद के किसी नाटक का
जिसे देखकर पता चलता है कि होता है कितना जरूरी ख्वाबों को आकार देना !
हम जब भी देखते हैं कोई ख्वाब, हमें देखना चाहिए फिदा हुसेन के घोड़े को
जो देखता है मुड़-मुड़ कर पीछे बारबार, आगे दौड़ते हुए भी पूरे सामर्थ्य के साथ
कि मन को चाहिए होती है अथाह हॉर्स पावर शक्ति आगे बढ़ते रहने के लिए
और आकार देने के लिए पीछे मुड़ कर देखते हुए अपने छूटे हुए अनगढ़े ख़्वाबों को
अपने ख्वाबों की बदलती ज्यामिति पर
जिसे बन जाना था पाइथोगोरस सा
और गढ़ने थे जिसे नित्य नए प्रमेय
मैंने देखा है खुली आँखों से उस शख्स को
बदलते हुए अनगढ़े ख्वाबों को रंगों में,
फिर उन रंगों को बदलते कैनवास पर
बिखरी हुई आड़ी-तिरछी लकीरों में,
बदलते देखा है उन लकीरों को फिर
अलग-अलग ज्यामितीय आकारों में,
देखा फिर ज्यामितीय आकारों को
बदलते हुए एक मुकम्मल आकृति में
देखा है इन आकृतियों को कई बार बनते घोड़ा
कभी रंगीन तो कभी श्वेत-श्याम रंगों में
और इस प्रकार फ़िदा हुसेन की तूली से गुजरकर
अनगढ़े ख्वाबों को घोड़ा बन दौड़ते कैनवास पर
कई बार मैंने देखा है खुली आँखों से
यदि लगता है आपको कि मर गए हैं आपके ख्वाब
यदि लगता है आपको कि ख्वाब अब बचे ही नहीं
यदि लगता हो आपको कि ख्वाब जैसा कुछ था ही नहीं कभी
तो जागकर शून्यता के ध्यान से देखिये फिदा हुसेन के घोड़े को
जो देखता है मुड़-मुड़ कर पीछे अलग-अलग रंगों में
आगे बढ़ते हुए क्या देखा है आपने कभी मुड़कर अपने छूटे हुए ख्वाबों को ?
आप देखेंगे कि हमारे अपने ही ख्वाबों का चित्रांतर है फिदा हुसेन का घोड़ा
जिसे स्पर्श कर पाने के लिए दरकार है अंतर्दृष्टि की
जिसके शरीर से एक ज्यामितीय आकार निकालकर रख लेना चाहता है मन
फिदा हुसेन के घोड़े की नाल में दिखता है मस्तुल हमारे ख्वाबों की नौका का
फिदा हुसेन का घोड़ा जो दिखता है कैनवास पर पीछे मुड़कर देखता
बना है ज्यामितीय आकारों से और हर आकार का है अपना एक कैनवास
मंचन हो सकता है उस हर एक कैनवास पर हमारी ख्वाबों के पसंद के किसी नाटक का
जिसे देखकर पता चलता है कि होता है कितना जरूरी ख्वाबों को आकार देना !
हम जब भी देखते हैं कोई ख्वाब, हमें देखना चाहिए फिदा हुसेन के घोड़े को
जो देखता है मुड़-मुड़ कर पीछे बारबार, आगे दौड़ते हुए भी पूरे सामर्थ्य के साथ
कि मन को चाहिए होती है अथाह हॉर्स पावर शक्ति आगे बढ़ते रहने के लिए
और आकार देने के लिए पीछे मुड़ कर देखते हुए अपने छूटे हुए अनगढ़े ख़्वाबों को