---------------
मन की इच्छा थी बैंगनी
बहारों के फूलों सी फालसई
और मन का आकाश था आसमानी
दहक उठा मन पलाश सा नारंगी होकर
वसंत के मौसम में लेकर अपनी अनगिनत आशायें
फिर पड़ गई रंगत पीली मन के त्वचा की
दर्द के पतझड़ में
हुआ रंग नीला मन के विषाक्त रक्त का
और लाल मन की आँखे
जीवन के सावन में
मन का जख्म हरा ही रहा
कमबख्त जिसे कहते रहे मन
इन्द्रधनुष निकला
------सुलोचना वर्मा ...........
मन की इच्छा थी बैंगनी
बहारों के फूलों सी फालसई
और मन का आकाश था आसमानी
दहक उठा मन पलाश सा नारंगी होकर
वसंत के मौसम में लेकर अपनी अनगिनत आशायें
फिर पड़ गई रंगत पीली मन के त्वचा की
दर्द के पतझड़ में
हुआ रंग नीला मन के विषाक्त रक्त का
और लाल मन की आँखे
जीवन के सावन में
मन का जख्म हरा ही रहा
कमबख्त जिसे कहते रहे मन
इन्द्रधनुष निकला
------सुलोचना वर्मा ...........
No comments:
Post a Comment