Sunday, July 5, 2015

यात्रा

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जब कभी जाना रहा मुझे बंगलुरु
हवाई जहाज से की यात्रा मैंने
कि मेरे पास रही समय की कमी

 
चुना मैंने रेल मार्ग हमेशा ही 
मैं जब कभी भी गयी बेगुसराय
कि मेरी आमद भी रही सीमित

 
मैं चुनूँगी जल मार्ग उस रोज
जाना हुआ जब बोरा बोरा द्वीप
कि फैला सकूँ पैर कुछ ज्यादा

 
जहाँ घट रहा है पृथ्वी का आयतन 
और सिमट रही है हमारी धरती
बढ़ रही है दूरियाँ बस इंसानों के बीच

 
बताओ न, अक्कड़ बक्कड़नुमा यात्राओं के
इन बं बे बो वाले जाने-माने पड़ावों से भी पड़े
कौन सा है मार्ग जो तुम्हारे हृदय तक पहुँचे!

 
----सुलोचना वर्मा------------

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