-----------------------------------------
ढूँढती हूँ गंधराज का वह झुरमुट
जिसके पीछे छिप जाते थे हम बच्चे
खेलते हुए लुका छिपी का खेल
महकती हैं जब स्मृतियाँ बन गंधराज
तो देखती हूँ स्मृति नाम की बालिका है छुपी
उसी झुरमुट के पीछे, लिए काया पुष्प रूपी
स्मृतियाँ करती हैं आघात उस ढेकी की तरह
जिस पर कूटा जाता था धान
और जो नहीं था कम किसी भी खेल से
हम अति सक्रिय बच्चों के लिए
ठीक वहाँ, धान के उस कटोरे में इस क्षण
चिपका हुआ होगा बचपन का सुनहलापन
ढूँढती हूँ खजूर के गुड़ के बताशे
शनिवार के हरिलूट में
ऐसा शनिवार अब नहीं आता
कि लूट चुका है बचपन का गुल्लक
स्मृतियों की जीभ में उतर आता है पानी
इन दिनों रह रहकर याद आती है नानी
ढूँढती हूँ टुपुक टप टुप का वह संगीत
जिसे सुना जाता था बारिशों का पानी
कटहल के पेड़ से टपककर टीन की छत पर
तरस रहें हैं मेरी स्मृति के कान एक अरसे से
सुनने को वृष्टि की वही लयबद्ध रूपक ताल
कमबख्त शोर बहुत करता है स्मृतियों का ननिहाल
डाल दिया है हथकड़ी समयपुरुष ने
भूत के वृत्त में घेर, स्मृतियों के हाथों में
बता सकता है क्या विधि का कोई ज्ञाता निज अभ्यास से
कैसे हो सकती है संभव मुक्ति स्मृतियों के कारावास से ?
ढूँढती हूँ गंधराज का वह झुरमुट
जिसके पीछे छिप जाते थे हम बच्चे
खेलते हुए लुका छिपी का खेल
महकती हैं जब स्मृतियाँ बन गंधराज
तो देखती हूँ स्मृति नाम की बालिका है छुपी
उसी झुरमुट के पीछे, लिए काया पुष्प रूपी
स्मृतियाँ करती हैं आघात उस ढेकी की तरह
जिस पर कूटा जाता था धान
और जो नहीं था कम किसी भी खेल से
हम अति सक्रिय बच्चों के लिए
ठीक वहाँ, धान के उस कटोरे में इस क्षण
चिपका हुआ होगा बचपन का सुनहलापन
ढूँढती हूँ खजूर के गुड़ के बताशे
शनिवार के हरिलूट में
ऐसा शनिवार अब नहीं आता
कि लूट चुका है बचपन का गुल्लक
स्मृतियों की जीभ में उतर आता है पानी
इन दिनों रह रहकर याद आती है नानी
ढूँढती हूँ टुपुक टप टुप का वह संगीत
जिसे सुना जाता था बारिशों का पानी
कटहल के पेड़ से टपककर टीन की छत पर
तरस रहें हैं मेरी स्मृति के कान एक अरसे से
सुनने को वृष्टि की वही लयबद्ध रूपक ताल
कमबख्त शोर बहुत करता है स्मृतियों का ननिहाल
डाल दिया है हथकड़ी समयपुरुष ने
भूत के वृत्त में घेर, स्मृतियों के हाथों में
बता सकता है क्या विधि का कोई ज्ञाता निज अभ्यास से
कैसे हो सकती है संभव मुक्ति स्मृतियों के कारावास से ?
No comments:
Post a Comment