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घर के नमक में आयोडीन को आए हुए कोई तेईस साल
और शरीर से उसकी मात्रा घटे ग्यारह साल हो गए
फिर जाती रही जमींदारी अपनी ही देह की जमीन की
कि मांसपेशियाँ छोड़कर चली गयीं अपना पुराना पता
और लटकती रही साल्वाडोर डाली के तैलचित्र की तरह
पर तैलचित्र की तरह उन्हें तन की दीवार पर बाँधे रखना हुआ मुश्किल
कोई समझाए मांसपेशियों को कि इतनी आज़ादी ठीक नहीं
तो विद्रोही स्वर में गाती हुई अकर्मण्यता कर देती है चढ़ाई आँखों पर
पारित ही करना पड़ता है तब निंद्रा का शांति प्रस्ताव
निंद्रा भंग होते ही पड़ती है नजर जब मेज के दर्पण पर
करती है चित्कार आँखें, कहती हैं चिल्लाकर "अनैतिक है यह"
मन बनकर रह जाता है जैसे जलियांवाला बाग
कि तभी पड़ती है नजर बुद्ध की हँसती हुई प्रतिमा पर
जिनके शरीर का साम्राज्य है विशाल, थायराइड के मरीज की तरह
केश ठीक वैसे ही घुँघराले हैं जैसे हो जाते हैं इस व्याधि में
आँखें तन्द्रामय हैं या ध्यान में लीन, लगती अपनी जैसी ही हैं
तफात बस इतना है कि मुस्कुरा पा रहे हैं बुद्ध !!
खैरियत बस इतनी है कि स्नायुतंत्र के घर अब भी जलायमान है विद्युत्
विवेक भटक रहा है मस्तिष्क के गलियारों में और मांसपेशियाँ मुक्तांचल में !!!
घर के नमक में आयोडीन को आए हुए कोई तेईस साल
और शरीर से उसकी मात्रा घटे ग्यारह साल हो गए
फिर जाती रही जमींदारी अपनी ही देह की जमीन की
कि मांसपेशियाँ छोड़कर चली गयीं अपना पुराना पता
और लटकती रही साल्वाडोर डाली के तैलचित्र की तरह
पर तैलचित्र की तरह उन्हें तन की दीवार पर बाँधे रखना हुआ मुश्किल
कोई समझाए मांसपेशियों को कि इतनी आज़ादी ठीक नहीं
तो विद्रोही स्वर में गाती हुई अकर्मण्यता कर देती है चढ़ाई आँखों पर
पारित ही करना पड़ता है तब निंद्रा का शांति प्रस्ताव
निंद्रा भंग होते ही पड़ती है नजर जब मेज के दर्पण पर
करती है चित्कार आँखें, कहती हैं चिल्लाकर "अनैतिक है यह"
मन बनकर रह जाता है जैसे जलियांवाला बाग
कि तभी पड़ती है नजर बुद्ध की हँसती हुई प्रतिमा पर
जिनके शरीर का साम्राज्य है विशाल, थायराइड के मरीज की तरह
केश ठीक वैसे ही घुँघराले हैं जैसे हो जाते हैं इस व्याधि में
आँखें तन्द्रामय हैं या ध्यान में लीन, लगती अपनी जैसी ही हैं
तफात बस इतना है कि मुस्कुरा पा रहे हैं बुद्ध !!
खैरियत बस इतनी है कि स्नायुतंत्र के घर अब भी जलायमान है विद्युत्
विवेक भटक रहा है मस्तिष्क के गलियारों में और मांसपेशियाँ मुक्तांचल में !!!
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