Friday, May 17, 2013

Aurat



क्या वह दिवस भी आएगा
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लड़की, नारी, स्त्री
इन तमाम नामों से जानी जाती है
बेटी, पत्नी, माँ जैसी कई उपाधियाँ  हासिल कर
अनेक रूपो मे नज़र आती है
 
कभी घर की रौशनी कहलाती है
तो कभी छुपाती है आँखों के नीचे का काला स्याह
फिर बन जाती है - निर्भया, दामिनी, वीरा ..............
और किसी की पाशविकता का प्रमाण पाकर भरती है आह
 
लगा लेती है हौसले के सुनहरे पंख
जब बनती है परियों की शहजादी
कुतर देता समाज इनके परों को चुनकर
पहली उड़ान में ही खो देती आज़ादी
 
बदल डाला नाम , कुल और घर,
पर इस पराये धन की, किसी को कहाँ परवाह 
रह गयी होकर बिना पते की चिठ्ठी भर 
ऐसे समाज से आज भी, कर रही है निर्वाह
 
लड़की का पिता अपना सबसे मूल्यवान धन दान कर
सबके समक्ष कर जोड़े खड़ा है
उधर लड़के की माँ को, लड़के की माँ होने का
झूठा नाज़ भी बड़ा है
 
झूठा इसलिए कि उसकी संतान के लिंग निधारण मे
उसका कोई योगदान नही है
फिर क्यूँ लड़की के पिता का रत्न धारण करके भी
कोई स्वाभिमान नही है?
 
पिता का आँगन छोड़कर, नया संसार बसाया है
माँ के आँचल की छाँव कहाँ, "माँ जैसी" ने भी रुलाया है
रुलाने का कारण? आज उसके बेटे ने
किसी दूसरी औरत को स्नेह से बुलाया है
 
आज वो इक माँ है, उस पीड़ा की गवाह है
जो उसकी माँ ने कभी, झूठी मुस्कान से दबाया था
उर में लिए असीम पीड़ा है वह सोच रही
बेटी के पैदा होने पर, कब किसने गीत गाया था
 
पति के चले जाने के बाद, मिटा दी लोगो ने माथे की लाली
वह लाली, जो उसके मुख का गौरव था
बनाकर उसे कारण, कहा कुलटा और मनहूस
ज्यूँ पति ही उसके जीवन का एकमात्र सौरभ था
 
क्या वह दिवस भी आएगा, जब कुछ प्रान्तों की तरह
सारे विश्व से विलुप्त हो जाएगी ये "प्रजाति"
फिर राजा यज्ञ करवाएँगे, पुत्री रत्न पाने हेतु
राजकुमारियाँ सोने के पलनो मे पलेंगी
 
कोई सवाल नहीं करेगा , द्रौपदी के पाँच पति होने पर
नारी को तब कोई भी "वस्तु" नही कहेगा
उसके चरित्र पर नही होगी कोई टिप्पणी
नारी की इच्छा को भी समाज "तथास्तु" ही कहेगा
 
सुलोचना वर्मा
 

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