1.9.2013
उस घर की दीवारों पर
उभर आईं दरारें
ज्यूँ वक़्त ले आता है
चेहरे पर झुर्रियाँ
आँगन से झाँक रही हैं
माधविलता की बेलें
ज्यूँ लकीर खींच देती है
माथे पर मजबूरियाँ
खिड़कियों पर सज गये हैं
मकड़ियों के जाले
ज्यूँ टूटा रिश्ता लाता है
संग अपने दूरियाँ
छत से टपक रही है
बारीशों की बूँदें
ज्यूँ विधवा घंटो रोती है
देखके अपनी चूड़ियाँ
सुलोचना वर्मा
उस घर की दीवारों पर
उभर आईं दरारें
ज्यूँ वक़्त ले आता है
चेहरे पर झुर्रियाँ
आँगन से झाँक रही हैं
माधविलता की बेलें
ज्यूँ लकीर खींच देती है
माथे पर मजबूरियाँ
खिड़कियों पर सज गये हैं
मकड़ियों के जाले
ज्यूँ टूटा रिश्ता लाता है
संग अपने दूरियाँ
छत से टपक रही है
बारीशों की बूँदें
ज्यूँ विधवा घंटो रोती है
देखके अपनी चूड़ियाँ
सुलोचना वर्मा
सुन्दर गीत।
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