Thursday, August 29, 2013

रिश्ता

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जो ख़त्म हो गया, वो प्रेम नही, दरकार था
क्या तौलना रिश्तों को दुनिया के तराजू में
यादें मीठी हों तो, मान लेना उपहार था
और अगर हों खट्टी, जान लेना उपकार था

हक़ीकत है ज़िंदगी की, प्रेम का अपना वज़ूद नही होता
बिना ज़रूरतों के प्यार, कँही भी मौज़ूद नही होता
क्यूँ लगाना दिमाग़ रिश्तों की ऐसी बाज़ारी में
रिश्ता वह मूलधन है, जिस पर कोई सूद नही होता

-----सुलोचना वर्मा-----


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