Tuesday, February 17, 2015

दादी

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जैसे पिरोकार फूल माली बनाता है माला
दादी ने पिरोकार हमें बनाया था परिवार
चिपकता है जैसे डाक टिकट लिफाफे से
जुड़ा था वैसे ही लोगों से दादी का सम्बन्ध


जब हुई तैयार माला और जुड़ गए धागे के दोनो सिरे
दादी ने छोड़ी माला और खुद चली गयी देव-देवियों के पास
कि कितना भी मँहगा लगा हो डाक टिकट, वहाँ चिठ्ठी नहीं पहुँचती
और ज़रूरी भी था देवताओं तक पहुँचाना संदेश
दादी हम सब की प्रार्थना थी , सो खुद ही चली गयी


उस दिन से एक तारा चमकता है अधिक औरों से
बढ़ी है मिठास आँगन मे लगे चापाकल के पानी मे
सुरभित है द्वार पे लगी माधवी लता पहले से भी ज़्यादा
और भी हैं ऐसी कई बातें, जहाँ दादी दिखती हैं ज़िंदा



---सुलोचना वर्मा------------

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