Sunday, February 8, 2015

माँ

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पूरे जग की आधी आबादी में है एक वह भी
करती हूँ जिसके नाम का उच्चारण हर रोज
ऐसा नहीं कि मेरे जीवन में नहीं है कोई और 
पर एक उसके होने से बना रहता है भरोसा
कि होती रहेगी हल हर समस्या जीवन की


लब से निकलती हर दुआ पुकारती है उसे ही
जबकि ऐसा नहीं कि निकलता हो दिव्य प्रकाश
उसके माथे के पीछे से वृत्त सा आकार लिए
पर जब कभी होती हूँ अँधेरे में मैं उसके साथ
जरुरत ही महसूस नहीं होती कभी रौशनी की


----सुलोचना वर्मा---------

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