Tuesday, June 30, 2015

उचित है

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उचित है बचे रहना थोड़ी संवेदना का
असंख्य सीपियों की मांसल छाती में
कि बरकरार रहे हरापन समंदर का


उचित है लहराते रहना काले बालों का
तमाम लड़कियों के सुन्दर चेहरों पर
कि दुनिया ले सुध आकाश में जमे मेघ की


उचित है विदा लेना मनुष्य का अपने भ्रम से 
प्रेम की रात ढलने से भी पहले ही जीवन में
कि चला जाता है विद्युत् आँधी के पूर्वाभास में


उचित है उठा लेना काँधे भर ज़िम्मेदारी
जीवन में बने खूबसूरत रिश्तों का
कि बना रहे फर्क प्रेम और सुविधा में


स्वार्थ के दौर का का गुजर जाना उचित है|

-------सुलोचना वर्मा------------

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