Tuesday, January 19, 2016

नीली कमीज /रोहित वेमुला के लिए

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उसकी नीली कमीज लटक रही होगी  
दीवार पर लगी कील से 
जबकि वह जा चूका है इस दुनिया से परे 
पर कमीज होगी जो अब भी लटक रही होगी  
दीवार पर लगी कील से 

उसके जाने से हो गया होगा थोड़ा और नीला 
उसके नीले रंग का बक्सा 
कि उसमें भरी हैं उसकी यादें 
उसके मेज पर रखी होंगी विज्ञान की किताबें 
और चप्पल पर उसके निशान ढूँढती रेंगती होंगी चीटियाँ 
शर्म से सूख रही होगी उस कलम की स्याही 
जिससे लिखी गई मृत्युसंदेश की अंतिम चिठ्ठी  
किसी संभावित महत्वपूर्ण आलेख की जगह 

हो सकता है रख दी जाय मेज पर रखी सभी वस्तुएँ 
कांच के बक्से में बंद कर किसी संग्राहलय में 
या दान कर दी जाय किसी दलित को उसी की बस्ती में 
ऐसे में अब भी लटक रही होगी उसकी नीली कमीज
हवा से हिलकर उसके जीवंत होने का आभास देते हुए 
बिलख रही होगी उसकी माँ कि सिलती रही कपड़े ताउम्र 
पर नहीं सिल पाई बेटे की तकदीर की फटी चादर 

एक लम्बे अंतराल के बाद, कील से लटकती नीली कमीज में 
लगा ही जायेंगी मकड़ियाँ भी बुनकर छोटे-बड़े वैसे ही जाले 
जैसे कि बुना गया था मकड़जाल राजनीति के नाम पर जातिवाद का 
जहाँ मर जाएँगी मकड़ियाँ अपने ही जाल में फंसकर एक दिन 
जातिवाद उलझ कर ही रह जाएगा राजनीति के जाल में 

नीली कमीज लटक रही होगी इस इन्तजार में कि कोई वंचित आए 
कील से उसे उतारे, पहने और ठोक दे कील जातिवाद के ताबूत में 
करे साबित कि हमें अब भी है विश्वास इस देश के संविधान पर 
कि इंसानियत बचाए रखने के लिए जरूरी है जातिवाद की हत्या !!

-------सुलोचना वर्मा------------

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