Wednesday, January 13, 2016

हम रह जाते हैं

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अंततः हम रह जाते हैं, कहीं नहीं जाते 
रह जाते हैं हमारे अपनों की स्मृतियों में
जन्म और मरण पंजीकरण के दस्तावेजों में 
अतीत की कहानियों के ज़िक्र में ही नहीं 
भविष्य की अनुपस्थिति में भी सक्रिय होकर 
अंततः हम रह जाते हैं, कहीं नहीं जाते 

रह जाती हैं धरी हमारी इच्छाएं और अनिच्छायें
छूट जाती हैं तमाम अच्छी और बुरी आदतें 
भटकते रहते हैं हमारे जीवित और मृत स्वप्न यहाँ 
फिर किसी जरुरी कागज़ पर किए हस्ताक्षर में 
अंततः हम रह जाते हैं, कहीं नहीं जाते 

दर्ज रह जाते हैं हम उस घिसे हुए हवाई चप्पल में 
जो पलंग के नीचे ही रहती है व्यवस्थित हमारे बाद भी 
दुनिया हमें ढूँढ लेती है अक्सर मेज पर रखे ऐनक में 
दीवार पर टंगी किसी खूबसूरत पल की तस्वीर में 
अंततः हम रह जाते हैं, कहीं नहीं जाते 

गीता के श्लोकों में पढ़ते आत्मा अ -पदार्थ है
दोहराते हैं फिर एकबार उर्जा संरक्षण का नियम 
हमारी गैर-मौजूदगी में अपना ढांढस बढाते अपने 
इसप्रकार हमारी भौतिक काया के परे भी प्रमेयों में 
अंततः हम रह जाते हैं, कहीं नहीं जाते 

----सुलोचना वर्मा-------

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