Wednesday, June 1, 2016

उन दिनों(प्रेम)

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                          1.
उसने कहा "मैं हूँ और मेरा वक़्त है"
और ऐसा कहकर माँग लिया मेरा साथ  
वह एक बेहद थका हुआ समय था 
जिसमे चल पड़े थे हम तेज क़दमों से 
उन दिनों हमारा वक़्त हमसे माँग रहा था केवल प्रेम  

                         2.
वक़्त जो माँग रहा था प्रेम, बदल गया 
अब सिर्फ था वह और थी उसकी जरूरतें 
उन जरूरतों की सूचि में कहीं भी नहीं थी मैं 
लाज़िम था मेरी जरूरतों को नहीं दिया उसने अपना वक़्त  
ऐसे में अब सिर्फ बेशर्म वक़्त ही था जो रह गया मेरे पास  

                        3.
मुस्कुरा देती हूँ मैं अक्सर यह सोचकर कि मालूम था उसे 
कि बंद पड़ी थीं तमाम घड़ियाँ मेरे घर की, एक अरसे से
और मैं नहीं चल रही थी समय के साथ मिलाकर ताल 
वह जानता था बख़ूबी कि वक़्त नहीं लगता है वक़्त बदल जाने में 
और यह भी कि जरूरतें बदल जाती हैं वक़्त के ही साथ 

                       4.
आज भी बंद पड़ी हैं तमाम घड़ियाँ मेरे घर की 
कि उसमें दर्ज है वह समय जब हम पहली बार मिले थे 
घड़ी में तीन बजाते काँटों की शक्ल बनाती है आकार उसकी ऊँची नाक की
जो थोड़ा और तन जाती है मेरी हर शिकायत के बाद 
गिर रही हूँ मैं प्रेम की गहरी खाई में इन दिनों, मुझे घेरे खड़ा है वक़्त का ऊँचा पहाड़ !!!!

आई ऍम फॉलिंग इन लव - प्रेम में गिर जाना जिसे कहते हैं!!!

---सुलोचना वर्मा -------

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