Friday, September 1, 2017

कष्टार्तव

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जकड लेता है जन्म-विषाद अजगर की तरह 
मचाता है हाहाकार भीषण दर्द श्रोणि क्षेत्र में 
किंचित यहीं से शुरू होती है भग्नयात्रा स्त्रियों की 

जिह्वा से कंठ के मार्ग उतरता काढ़ा आर्द्रक का 
देता है आजन्म स्वाद बचे रहने का मृत्यु-उत्सव में 
मन करता है चित्कार - रक्त-स्तम्भक नागकेसर 

कहता है मस्तिष्क बचे रहने की तीव्र इच्छा पर धरकर हाथ 
करना पड़ता है खुद को ध्वंश कई-कई बार गढ़ने के लिए 
फिर क्षुद्र देह्कोष और जीवन के मूल में निहित है रक्तपात 

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