Sunday, December 10, 2017

शहर के लड़का गे

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1. 
उन दिनों बाल मजदूरी कोई मुद्दा नहीं हुआ करता था, कम से कम गाँव जवार में तो नहीं|  उन दिनों घरेलू माएँ अपने छोटे बच्चों का साथ देने के लिए छोटे बच्चों को काम पर रख लेती थीं जिनका काम होता सुबह से शाम तक उनके बच्चों के साथ खेलना या फिर उन्हें इधर-उधर घुमाना ताकि माएँ घर का काम आसानी से कर सके| उन दिनों इंसानियत जिंदा थी, तो माएँ आँखें मूँदकर अपनी नवजात लड़कियों को भी किसी ग्यारह-बारह साल के लड़के के सुपुर्द कर देतीं थीं| इसी क्रम में भागलपुर के किसी गाँव से छोटू आया था लगभग सात-आठ महीने की नन्ही सी बच्ची, झुम्पा का साथ देने के लिए| अमूमन लोग काम करनेवाले छोटे लड़कों को छोटू कहते हैं, पर इसका तो नाम ही छोटू था| कुछ ही दिनों में बच्ची उससे पूरी तरह घुलमिल गयी थी| वह उससे अंगिका भाषा में बातें करता, उसे बाज़ार के एक छोर से दुसरे छोर तक घुमाता और शाम होते ही, उसे अपने नन्हें काँधों पर थपकियाँ देकर कुछ गाता हुआ सुला देता| 

एकदिन बच्ची की माँ ने भावविह्वल होकर कहा "आहा रे ! छेले टा निजेई एतो छोटो, ताओ ओके कोतो सुन्दोर भाबे गान कोरे घुम पाराय" (आह! लड़का खुद इतना छोटा है, फिर भी उसे कितने सुंदर तरीके से गाकर सुलाता है)

मधुरा कोई किताब (शायद शरत बाबु का "गृहदाह") पढ़ रही थी| अन्यमनस्क होकर उनसे पूछा "अच्छा! क्या गाता है?"

उन्होंने कहा "पता नहीं, अपनी भाषा में कुछ गा रहा है| लगता है मेला घुमाने की बात कर रहा है"

मधुरा उत्सुकतावश बारामदे में गई जहाँ छोटू बच्ची को अपने काँधे पर रख थपकियाँ देता हुआ गा रहा था - 

"बेटी गे बेटी तोहरा खातिर शहर के लड़का गे 
हाँ गे शहर के लड़का गे 
मेला घुमैतो, जिलेबी खिलैतो, लइयो नै जयतो गे
बेटी गे बेटी तोहरा खातिर शहर के लड़का गे
हाँ गे शहर के लड़का गे
सिनेमा देखैतो, गीत सुनैतो, लइयो नै जयतो गे
बेटी गे बेटी तोहरा खातिर शहर के लड़का गे
शादी करके लैयों न जयतो गे
बिन गौना के अईतो जयतो, लइयो नै जयतो गे"

भूख, प्यास और आँसू तो फिर भी कोई रोक ले, पर हँसी ? हँसी छुट गई | बच्ची की माँ, जो घर बुहारती हुई बारामदे में प्रवेश कर चुकी थी, मधुरा  को बेतहाशा हँसता हुआ पाकर गीत का अर्थ पूछ बैठी| फिर अगले ही पल एक हाथ से साड़ी को थोड़ा ऊपर उठाकर दुसरे हाथ से झाड़ू को किसी दिव्यास्त्र की तरह काँधे तक उठाते हुए छोटू की ओर दौड़ पड़ी| अगले कुछ क्षणों तक उनके गुलाबी होठों से अभिधान के सबसे काले शब्द झरते रहे|  

2. 
छोटू अब बच्ची की देखभाल के कार्य से मुक्त कर दिया गया था| उसका काम अब घर के बर्तन मांजने के अतिरिक्त घर के सदस्यों की जरुरत के मुताबिक बाजार से सामान लाना तय किया गया| छोटू के अंदर का जो गायक था, अब वह बाहर आने में कतराता था| उसे तो मार खाकर भी समझ नहीं आया कि उसके गाने में क्या खराबी थी| वह तो उस रोज भी बराबर लय में ही गा रहा था !

अगर खाली पेट को अन्न चाहिए तो खाली मन को चाहिए शब्द | गायक छोटू अब कथाकार बन गया | उसकी कहानियों को सुनकर इस बार घर के ही कई सदस्य उसके मुरीद हो गए | वह कहानी को इतने रोचक ढंग से सुनाता कि सुनने वाले को छोटू जहाँ चाहता वहाँ ले जा सकता था| 

छोटू नापित जाति का था और उसके पिता का सैलून था |  सैलून से पहले उसके पिता घर-घर जाकर दाढ़ी बनाने और बाल काटने का काम करते थे| बकौल छोटू, एकबार घर लौटते हुए उसके पिता को रास्ते में सोने की अशर्फियाँ मिलीं| उन्होंने उन अशर्फियों को अपने लकड़ी के बक्से में रख लिया और अगले ही रोज शहर जाकर बेच दिया| इसके बाद ही उस गाँव को इकलौता सैलून नसीब हुआ| उसके पिता की इच्छा थी कि छोटू सैलून में उनका साथ दे, पर एकबार ऐसी घटना घटी कि छोटू ने तय किया वह अपने पिता के साथ नहीं रहेगा| छोटू अपने बड़े भाई के साथ सैलून गया था| उसके पिता किसी ग्राहक का बाल काट रहे थे| उन्होंने छोटू के बड़े भाई से स्प्रे बोतल से उस ग्राहक के बाल पर पानी छींटने को कहा| उसके भाई ने जैसे ही स्प्रे किया, न जाने कैसे बोतल की नोक घूम गयी और पानी के छींटे उसके पिता पर पड़ गए| इस जरा सी घटना से नाराज होकर उसके पिता ने उसके बड़े भाई के गाल पर उस्तुरा चला दिया| खून का फव्वारा देख छोटू मारे डर के सैलून से भाग कर घर आ गया और कुछ दिनों के लिए पिता की नजरों से ओझल रहा | उसने तय किया कि वह गाँव से ही भाग जाएगा क्यूँकि गाँव में रहते हुए ज्यादा दिन पिता की नजरों से बचना संभव न था| पर उसके आगे एक समस्या थी| अगर वह भाग गया तो उसकी माँ का ख्याल कौन रखेगा| उसका बड़ा भाई तो गाल पर जख्म और बुखार लिए बिस्तर पर पड़ा था| तो उसने फैसला लिया कि बड़े भाई के ठीक होते ही वह भाग जाएगा| 

बीस रोज बाद एकदिन उसने बड़े भाई को पिता के साथ सैलून जाते देखा और मन ही मन तय किया कि वह उसी रोज़ शाम में गाँव छोड़ देगा| उसने माँ से अपनी पसंद का खाना बनाने को कहा और गांव छोड़ने से पहले अंतिम बार अपने दोस्तों से मिलने चला गया| दोपहर को जब वह घर लौटा, उसकी ग्यारह वर्षीय छोटी बहन आंगन में कितकित खेल रही थी| उसने चापाकल से बाल्टी में पानी भरा और अच्छे से साबुन लगाकर नहाया| न जाने फिर कब नहाना नसीब हो ! अगर हुआ भी तो क्या पता साबुन नसीब होगा कि नहीं ! तरह-तरह के ख्याल उसका पीछा कर रहे थे| नहाकर वह खाने ही बैठा था कि देखा उसके पिता अपने किसी दोस्त के साथ दोपहर का खाना खाने आ पहुँचे|  उसकी माँ ने उन दोनों का खाना परोसते हुए उसकी बहन से लोटा में जल भर लाने को कहा| उसकी बहन जल लाकर वापस आंगन जाकर खेलने लगी|  उसके पिता के दोस्त ने खाने का पहला कौर मुँह में डालते ही कहा "अरे बुधवा !  तोहर बेटी नम्‍हर हुअए लगलै,शादी - बियाह में खूब खर्च होय छै| रुपैया जोड़"| 

छोटू के पिता ने एक नजर अपने दोस्त को देखा और फिर आंगन में फुदकती बेटी को; फिर चुपचाप खाना खाया| खाने के बाद दोस्त को साथ लेकर सैलून चले गये| शाम में छोटू घर से निकलने ही वाला था कि उसके पिता शराब के नशे में चूर होकर अन्य दिनों की अपेक्षा जल्दी लौट आए|  आंगन में पाँव रखते ही बेटी को पुकारा और सीधे चापाकल के पास गए| वहाँ रखा कपड़े धोने वाला मुगली उठाया ही था कि बेटी आ गयी| उस मुगली से बेटी को तब तक मारते रहे जब तक वह मर नहीं गयी| छोटू की माँ ने बचाने की कोशिश की थी, पर सर पर मुगली से चोट खाकर वह बेहोश हो गयी थी| इस घटना के अगले दिन छोटू गाँव छोड़कर भाग गया | 

छोटू यह कहानी सुनाता हुआ रोने लगता था| उसके चेहरे पर आतंक इस कदर उभर आता कि मानो यह घटना ठीक अभी घट रही हो और वह आँखों देखा हाल बता रहा हो| छोटू  के मुताबिक उसके पिता ने उसकी ग्यारह बरस की बहिन को सिर्फ इसलिए मार डाला था कि वह बड़ी हो रही थी और उसकी शादी में दहेज देना पड़ता| रोते-रोते जब छोटू का गला रुंध जाता, वह पानी पीकर शांत बैठा रहता|

एकबार उसकी मालकिन ने उससे कहा कि अगर वह अपनी बहन को याद कर रोया करेगा तो आँसुओं के जरिये उसकी बहन उसके मन से बाहर निकल जायेगी और उस दिन के बाद से छोटू ने कहानी सुनाना बंद कर दिया| 

3.
वह नब्बे का दशक था| छोटू ने अपने गाँव में कभी टीवी तक नहीं देखा था| इस घर में आने के बाद पहले वह झुम्पा को लेकर अक्सर घर के बाहर घूमा करता था| अब वह झुम्पा के दायित्व से मुक्त था तो सुबह का काम निपटा लेने के बाद उसके पास जो वक़्त बचता, उसे वह टीवी देखकर जाया करता था| कभी शाहरुख खान तो कभी गोविंदा, कभी अक्षय कुमार तो कभी सुनील शेट्टी; इन सभी ने मिलकर छोटू की आँखों में एक नया ख़्वाब डाला| छोटू अब हीरो बनना चाहता था| अपनी जेब में एक कंघी रखने लगा था| जब कभी आईने के सामने से गुजरता, तो कंघी कर लिया करता था| धीरे-धीरे फ़िल्मी दुनिया के पात्र इस कदर उसके जेहन में बस गए कि अब वह नींद में भी अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाए मोटर साइकिल चलाता हुआ गाता "कोई न कोई चाहिए प्यार करने वाला"| नाचते हुए चापाकल से बाल्टी में पानी भरते हुए गाता "किसी डिस्को में जाएँ, किसी होटल में खाएँ "| एकबार छोटू झुम्पा के दादा जी के साथ सब्जी लाने बाजार गया | दादा जी अभी सब्जी मोल भाव कर रहे थे कि कहीं से छोटू के कानों में आवाज आयी "चुरा के दिल मेरा गोरिया चली"| यह आवाज बाजार के एक कोने के पान की दुकान से आ रही थी| छोटू अक्षय कुमार की नकल उतारता हुआ नाचते हुए भीड़ में ऐसा खोया कि दादा जी गुस्से से तमतमाते हुए बस आधा किलो भिन्डी खरीद घर आ गए| छोटू दो घन्टे बाद लौटा| लौटकर उसने बताया कि उसे लगा दादा जी भीड़ में खो गए, इसलिए वह उन्हें ढूँढ रहा था | उस घर के लोग नहाने के बाद जलशुद्धि मन्त्र पढ़ते हुए सूर्य को जल चढ़ाते थे| छोटू नहाने के बाद गमछा लपेटकर सीधे आईने के पास पहुँचता था और वहाँ जाकर "हेल्लो -हेल्लो बोलके, मेरे आजू -बाजू डोल के" पर दस मिनट का अभ्यास करता था| घर के अन्य सदस्यों का खूब मनोरंजन होता था| 

कुछ समय बाद उसने महसूस किया कि अगर हीरो बनना है, तो पहले लोगों की राय लेनी होगी| अगर उसे गांव-जवार के लोग ही पसंद नहीं करेंगे, तो शहर के लोग कैसे पसंद करेंगे| फिर क्या था ! वह जिससे मिलता उसी से कहता "हमरा हीरो बनैक छै| बैन सकै छिए?" लोग भी उसका दिल तोड़े बिना कह देते "जरूर"| 

छोटू अभी हीरो बनने ही जा रहा था, सिने जगत के आसमान में एक नया सितारा उगने ही वाला था कि वह अप्रिय घटना घट गयी| दिव्या भारती चल बसी| छोटू ने तय किया था कि जब वह हीरो बनेगा, तब वह दिव्या भारती को ही अपनी हीरोइन बनाएगा| अब जब वही न रही, तो छोटू की हीरोइन कौन बनती| छोटू को लगा कि बिना दिव्या भारती के फिल्म इंडस्ट्री ही शायद बंद हो जाए| ऐसे में हीरो बनना न तो समझदारी की बात थी और न ही उसका मन तैयार था| फिर मौत तो हीरो-हीरोइन को भी नहीं छोड़ती|  दिल पर पत्थर रख कर छोटू ने हीरो बनने का निर्णय त्याग दिया | 

कई रोज़ तक उसका मन अशांत रहा | एक तरफ दिव्या भारती के नहीं रहने का गम और दूसरी ओर उसके हीरो बनने के सपने का टूट जाना; उसे सब कुछ बेमानी लग रहा था| उसने महसूस किया कि मन की शांति बेहद जरूरी है और इसलिए उसने तय किया कि वह अब पूजा-पाठ में मन लगाएगा और बड़ा होकर पुजारी बनेगा|

4.
छोटू अब बिना स्नान किए खाना नहीं खाता था| नहाने के बाद वह उस घर के अन्य सदस्यों की तरह संस्कृत में जल शुद्धि मन्त्र नहीं पढ़ सकता था, इसलिए उसने बहुत सोच-विचार के बाद बजरंग बलि को अपना इष्टदेव माना| हर सुबह गाँव के हनुमान मंदिर में हरिओम शरण की आवाज में हनुमान चालीसा बजता था| छोटू ने याद कर लिया| छोटू ने जब से होंश संभाला, उसने अपने सर पर टीक पाया| उसके गाँव में लोग कहते थे कि जो हिन्दू पुरुष टीक कटवा लेता है, वह मुसलमान हो जाता है| छोटू की इस बात में गहरी आस्था थी| गाँव छोड़ने के बाद भी वह टीक रखने की परम्परा निभाता रहा | कोशी और गंगा के बीच जिस गाँव में छोटू अब रह रहा था, वहाँ सालों भर धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम चलता रहता था | कभी अष्टजाम, नवा और गायत्री यज्ञ, तो कभी "जागो महादेव" अनुष्ठान ! फाल्गुन पूर्णिमा  के अवसर पर होनेवाले सांस्कृतिक कार्यक्रम में हर साल शाम के वक़्त छोटे - छोटे लड़के कृष्ण और राधा की तरह सजकर आते और घर- घर जाकर लोक नृत्य करते और गाते "सदा आनंद रहे यही द्वारे मोहन खेले होरी हो......"| हर घर की श्रद्धा -भक्ति के अनुरूप उन्हें कुछ रुपए या अन्न मिल जाते | छोटू, जो कभी हीरो बनना चाहता था, हर बार राधा बनता| साड़ी पहनता, बिंदी लगाता, होंठ रंगता और चेहरे पर हल्का गुलाबी रंग लगाता | राधा बनकर नाचते हुए अक्सर लजा जाता, पर साल में एकबार लड़की बनकर श्रृंगार करने का लोभ संवरण करना उसके बूते के बात नहीं थी| साथ ही, वह सोचता कि ऐसे धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों से जुड़कर वह धर्म के और करीब होता जा रहा है| 

जिस रोज गाँव में अष्टजाम शुरू होता, छोटू अपना काम समय से पहले निपटाकर वहाँ पहुँच जाता| कीर्तन मंडली में शामिल होकर राम नाम जपने लगता और फ़िल्मी धुनों पर बने भक्ति गीतों में उनका साथ देता | कई बार तो छोटू बकायदा अपनई मालकिन से छुट्टी लेकर गाँव के बाहर नवा या जागो महादेव जैसे कार्यक्रम में जाता | लौटते हुए मालकिन को खुश करने के लिए कभी अमरुद का पेड़ तो कभी चीकू इत्यादि ले आता | झुम्पा, जो अब तीन साल की हो चुकी थी, चीकू बड़े चाव से खाती थी|

वह अगस्त का महीना था| आसमान में रंग-बिरंगे पतंगों को उड़ता देख छोटू ने मालकिन से रुपया लिया और पतंग ले आया| पड़ोस के एक जुलाहे के लड़के ने उसकी पतंग काटने के लिए दस रूपये की बाजी लगाई | छोटू ने चुनौती को सहर्ष स्वीकार कर लिया| कुछ ही देर में दोनों की पतंगे आसमान की सैर करने लगीं| पतंग तब आसमान की ओर बढ़ती है जब हवा का प्रवाह पतंग के उपर और नीचे से होता है, जिससे पतंग के उपर कम दबाव और पतंग के नीचे अधिक दबाव बनता है। यह विक्षेपन हवा की गति की दिशा के साथ क्षैतिज खींचाव भी उत्पन्न करता है। छोटू जिस काम को करता, बड़े लगन से करता| फिर यह तो उसका मनपसंद काम था| पड़ोस के जुलाहे का लड़का अस्त व्यस्त अवस्था में ज़मीन पर आती पतंग को देखता रहा |  छोटू ने उसका पतंग काट दिया था| वह गुस्से में अपनी छत से उतरा और कुछ ही देर में जिन सीढ़ियों से नीचे गया था, उन्हीं सीढ़ियों से ऊपर वापस आया और कूद कर उस छत पर आ गया जहाँ छोटू अब भी आसमान में अपनी पतंग को उड़ता देख खुश हो रहा था| उसने अपनी जेब से कैंची निकाली और छोटू की टीक काट दी | छोटू जब तक अपनी टीक संभालता, घटना घटित हो चुकी थी| वह जोर-जोर से चिल्लाकर रोने लगा और साथ ही पड़ोस के उस लड़के को भी खूब कूटा | उसका रोना सुन मालकिन छत पर नमूदार हुईं | वारदात की पड़ताल के बाद मालकिन ने छोटू को समझाया कि टीक फिर उग जाएगा| पर छोटू रोता हुआ दोहराता रहा "मुसलमान बना दिया हमको....हमारा धर्म खराब कर दिया ..."

छोटू ने मंदिर जाना छोड़ दिया| मंदिर क्या, सभी प्रकार की धार्मिक -सांस्कृतिक गतिविधियों से खुद को अलग कर लिया| टीक के कट जाने से उसका धर्म जो नष्ट हो चूका था !! कई दिनों तक मायूस होकर बर्तन माँजता रहा, बाज़ार से मुँह लटकाए सब्जी लाता रहा और अंततः एकदिन उसने मालकिन के पाँव छूकर आशीर्वाद लेते हुए अपने मन की बात मालकिन को बताई | वह अब घर के काम करने की बजाय बाहर का काम करना चाहता था| उसने वह गाँव छोड़ दिया |

5.

समय पंख लगाकर उड़ता रहा | बीस साल बीत गए | अचानक एकदिन छोटू झुम्पा के दरवाजे पर नमूदार हुआ| 

"चाची, पहचाने ?" छोटू ने झुम्पा की दादी के चरण स्पर्श करते हुए पूछा|

"छोटू! कैसा है रे " झुम्पा की दादी ने आवाज से पहचान लिया|

"होटल में काम करते हैं|  थकान हो जाती है, पर अच्छा भी लगता है कि हमारे हाथों लोगों की भूख मिट रही है| एक संतोष रहता है| आपकी बहुत याद आती है| आपके जितना स्नेह किसी ने नहीं दिया| कई सालों से सोच रहे थे आने का, पर अब नहीं रहा गया| हमारा नाम अब संजीत ठाकुर है| छोटू नाम के लड़के से कौन शादी करती| तीन बेटा है" छोटू को बहुत कुछ कहना था, सो कहता चला गया|

"अच्छा, तो हमारा छोटू अब संजीत ठाकुर बन गया !"दादी ने अपना चश्मा ठीक करते हुए कहा |

"हम तो इ सोचकर आए थे कि यह गाँव अब शहर बन गया होगा और हमको यहाँ नौकरी मिल जाएगी| रहने के लिए आपका घर तो है ही| पर स्टेशन से घर तक 

आते हुए समझ आ गया कि यहाँ कुछ ख़ास बदलाव नहीं आया" छोटू ने मन की बात बताई 


"हाँ, सो तो है" दादी ने उसके आने का मकसद जानते हुए कहा|

"घर में कैसी मायूसी पसरी है" छोटू ने आंगन तक नजर दौड़ाते हुए पूछा |

"तू गाता था न "मेला घुमैतै, जिलेबी खिलैतै, लइयो नै जइतै गे", तेरी जुबान में हो न हो काला दाग रहा होगा| मुआ किसी शादी में हमारे गाँव आया था; वहाँ झुम्पा से उसकी मुलाक़ात हुई और फिर न जाने कब हमारी भोली बच्ची उसके साथ सात फेरों का सपना देख बैठी| चार सालों तक लुका-छिपी का खेला चला | तीन दिन पहले उस लड़के ने बताया कि उसकी शादी होने वाली है और झुम्पा ने बाएँ हाथ की नसें काटकर अपनी जान लेने की कोशिश की| किसी तरह उसकी जान बचा ली गयी"  दादी उदास होकर चुप हो गयी |

छोटू ने दिन का खाना खाया| घर के सभी सदस्यों से मिला| जो घर में नहीं मिले, उनका हाल-समाचार पुछा| फिर उसने बताया कि उसे दो दिन की ही छुट्टी मिली है और उसे शाम की ट्रेन से वापस जाना है| दादी ने उसे कपड़े और रूपये देकर विदा किया| घर छोड़ने से पहले वह दादी से अनुमति लेकर झुम्पा के कमरे में गया| झुम्पा सो रही थी| वह अब एक खूबसूरत युवती थी| कुछ देर तक अचरज मिश्रित खुशी से उसकी ओर देखता रहा और फिर उसके माथे पर हाथ फेरकर गाने लगा -

"घोड़िया चढ़ल आबै, राजा छतरी के बेटबा
काहे धनि ठाढ़ि अकेली, राजली टोनमा
हमरी जे दादी, असले जोगिनियाँ
जोग करै निसि राति, राजली टोनमा..."

"तू सचमुच बड़ा हो गया रे छोटू" झुम्पा की दादी ने छोटू के सर पर हाथ फेरते हुए कहा | 

जो गाँव आया था, वह भले ही छोटू था, वह संजीत ठाकुर था जो शाम की रेलगाड़ी से वापस चला गया | वह फिर लौटकर कभी नहीं आया |

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