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उसने कहा प्रेममेरे कानों में घुला राग खमाज
जुगलबंदी समझा मेरे मन ने
जैसे बाँसुरी पर हरिप्रसाद चौरसिया
और संतूर पर शिवकुमार शर्मा
विरह के दिनों में
बैठी रही वातायन पर
बनकर क़ाज़ी नज़रूल इस्लाम की नायिका
सुना मैंने रहकर मौन राग मिश्र देश
गाते रहे अजय चक्रवर्ती "पिया पिया पिया पापिया पुकारे"
हमारे मिलन पर
शिराओं - उपशिराओं में बज उठा था मालकौंस
युगल स्वरों के परस्पर संवाद में
जैसे बिस्मिल्लाह खान बजाते थे शहनाई पर
और शुभ हुआ जाता था हर एक क्षण
लील लिया जीवन के दादरा और कहरवा को
वक़्त के धमार ताल ने
मिश्र रागों के आलाप पर
सुना मेरी लय को प्रलय शास्त्रीयता की पाबंद
आसपास की मेरी दुनिया ने
काश! इस पृथ्वी का हर प्राणी समझता संगीत की भाषा
और जानता कि बढ़ जाती है मधुरता किसी भी राग में
मिश्र के लगते ही, भले ही कम हो जाती हो उसकी शास्त्रीयता
और समझता कि लगभग बेसुरी होती जा रही इस धरा को
शास्त्रीयता से कहीं अधिक माधुर्य की है आवश्यकता |
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