Thursday, February 25, 2021

रूचि भल्ला के लिए

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वह प्रयागराज के मानचित्र में सहेजकर रखती है इलाहाबाद

ठीक जैसे सहेजती है अपना बचपन कोई किशोरवय लड़की

संगम तट पर की गई सहस्र प्रार्थनाओं की वयः संधि है वह

इलाहाबाद ने दबा रक्खा है अपने सीने में जिसके दूध के दाँत


वह अमरुद को सिर्फ़ खाती ही नहीं, कुतरती है असंख्य स्मृतियों को 

फँस ही जाता है कोई बीज दाँतों में अक्सर, जैसे इलाहाबाद यादों में

वह खिला सकती है गेंदा फूल महबूब शहर की छत पर, घूमा सकती है 

नखासकोना से लूकरगंज, अतरसुइया से मीर गंज बिना ट्रेफिक जाम के 


उसकी कविता के आलोक में प्रज्वलित है चौदह गिरजे की मोमबत्तियाँ 

और इलाहाबाद तो ऐसे करता है झलमल कि कह देती हूँ अक्सर ही 

कि मैं नहीं जानती कौन है रुचि भल्ला! वह जिसे मैं जानती हूँ, करती हूँ 

जल, जंगल और जीवन की बात, प्रयागराज से दूर बसा इलाहाबाद है|  

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