Thursday, June 24, 2021

मोक्ष

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जैसे कि जीवन नहीं 

था मृत्यु का सघन पूर्वाभ्यास  

निस्तब्ध चेतना-संज्ञा तप्त भाल 

धूमिल स्मृतियों का तंतुवाय जाल 


जैसे कि जीवन नहीं 

था झड़ते ईंट गारेवाला प्राचीन स्मारक 

दीवारों पर जिसकी उग आये थे पीपल 

क्षितिज की ओर जाने को जो थे विह्वल  

 

केतकीपत्र पर हस्तलिखित 

एक पाण्डुलिपि थी जिंदगी 

जब पिघला उम्र का हिमाला 

तो बह गई एक-एक वर्णमाला 

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