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एक दिन किसी साहसिक कथा ने पसारे अपने पंख
और जिस उम्र में ब्याही जा रही थीं मेरी सखियाँ
पिता ने मुझे पढ़ने, कुछ बनने के लिए दूर शहर भेजा
एक दिन अंधकार सहसा गया सालाने अवकाश पर
और जब लड़कियों का स्वप्न देखना भी होता था गुनाह
पिता ने मुझे दिलाया मेरा पसंदीदा रंगीन धूप चश्मा
एक दिन कहानियों से रूपकथा उतर आई जीवन में
और जहाँ समाज में कन्याओं का दान किया जाता रहा
पिता ने की मेरे प्रेमी से रो-रोकर मेरे लिए प्रेम की याचना
दिन प्रतिदिन पितृसत्ता ढ़ोते पुरुष ने सहा प्रेम का चाबुक
प्रेम है, ऐसा कुछ नहीं कहा पिता ने कभी
प्रेम है, पिता ने हर बार निभाकर दिखाया
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