Saturday, August 24, 2013

ज़िंदगी

23.8.2013
ऐ धरती
समेट लेने दे मुझे मेरी चादर
मेरा आसमान पिघल रहा है
मेरी तकलीफ़ों का सूरज
मेरा चाँद निगल रहा है
आरजू के पहाड़ बढ़ते ही जा रहे हैं
इस पथरीली ज़मीन पर
मेरा पाँव फिसल रहा है
सितारों की बारिश हुए
अरसा बीत गया है
आसमान में अब सिर्फ़
काला बादल निकल रहा है
हौसले की उँची उड़ान
उड़ चुकी हूँ अविरल
उम्र के इस मोड़ पर
मेरा पंख विकल रहा है


-----© सुलोचना वर्मा-------
 

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