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लिपटा है हर अप्रकाशित अनुभूति से
अन्धकार की तरह काला कोई दुःख
रख देती हूँ मैं तह करके दुखों को
अपने ही शरीर के हर जोड़ पर
जम जाती है हड्डियों में कैल्शियम की तरह,
और इस प्रकार संभाल लेती है पीड़ा मुझे
मेरे सपने टटोलते हैं अंधकार मे आलोक
पर नहीं पकड़ पाते हैं एक भी कतरा
सुख का फ़ानूस जल-जलकर बुझ जाता है
दुःख है कि टिका रहता है ध्रुव तारा की तरह
अपने निर्धारित स्थान पर- स्पष्ट और धवल
दुःख आसमान है-रंग नीला और सीमाहीन
भले बंजर हो चुकी हो मेरे आँखों की जमीन
और अभिघात बन चुका दिखता हो जीवन
मैं गाउंगी गीत बहारों के, भुलाकर अवसाद
कि कर पाये उम्मीद निराशा पर वज्र संघात
रखा है मौत का सामान जहाँ हर कदम पर
वहाँ ज़िंदा रहना ही है मेरा एकमात्र प्रतिवाद
लिपटा है हर अप्रकाशित अनुभूति से
अन्धकार की तरह काला कोई दुःख
रख देती हूँ मैं तह करके दुखों को
अपने ही शरीर के हर जोड़ पर
जम जाती है हड्डियों में कैल्शियम की तरह,
और इस प्रकार संभाल लेती है पीड़ा मुझे
मेरे सपने टटोलते हैं अंधकार मे आलोक
पर नहीं पकड़ पाते हैं एक भी कतरा
सुख का फ़ानूस जल-जलकर बुझ जाता है
दुःख है कि टिका रहता है ध्रुव तारा की तरह
अपने निर्धारित स्थान पर- स्पष्ट और धवल
दुःख आसमान है-रंग नीला और सीमाहीन
भले बंजर हो चुकी हो मेरे आँखों की जमीन
और अभिघात बन चुका दिखता हो जीवन
मैं गाउंगी गीत बहारों के, भुलाकर अवसाद
कि कर पाये उम्मीद निराशा पर वज्र संघात
रखा है मौत का सामान जहाँ हर कदम पर
वहाँ ज़िंदा रहना ही है मेरा एकमात्र प्रतिवाद
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