Wednesday, November 18, 2015

अव्यक्त

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मुझे समझना इतना जटिल तो न था
जितना होता है दुरूह व्याकरण
जैसे क्रिया के रूप, अव्यय, समास
मेरे दुःख में है शामिल सर्वनाम
जो आया तुम्हारे हिस्से संज्ञा की जगह


जहाँ मुझे समझने की कोशिश की
अंकगणित के किसी प्रमेय की तरह तुमने
सरल रही मैं बीजगणित के संकेतों सी
अज्ञात रहा मेरा मान तुम्हें आरम्भ से अंत तक
और नहीं निकल पाया रिश्तों के समीकरण का हल


रेवती, स्वाति,मृगशिरा या अनुराधा 
नहीं रही मैं आकाश में स्थित नक्षत्र ही
कि मुझ तक पहुँच पाना हो दुष्कर
मुझे जल्दी थी पहुँचने की मंजिल तक
और तुम्हें जाना ही नहीं था कहीं भी


कुछ बातें थीं मेरी जो रह गयीं अनुच्चारित
जानने की कोशिश ही नहीं की जिन्हें तुमने
किसी गैर-जरूरी प्रागैतिहासिक भाषा की तरह
जहाँ सालता रहा मुझे कुछ न कह पाने का कष्ट
अव्यक्त इच्छाएं तुम्हारी समय करता रहा स्पष्ट


----सुलोचना  वर्मा--------

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