Friday, December 18, 2015

सर्दी के मौसम में

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घेर लेती हैं स्मृतियाँ सर्दी के मौसम में 
चारों ओर छाये घने कोहरे की तरह  
और महकने लगती हैं रह-रहकर यादें 
जैसे जुड़े के गजरे में लगी बेला की लड़ी 

झटक देना चाहती हूँ मैं स्मृतियों को 
सद्य गीले बालों से पानी की तरह 
स्मृतियाँ ढँक लेती हैं मुझे बनकर लिहाफ़ 
और तप्त हो उठता है मेरा एकाकीपन 

स्मृतियाँ हैं जैसे कोई पुराना असाध्य रोग 
और मैं, ठीक जैसे एक सुश्रुषा-विहीन रोगी 
कभी स्मृतियाँ हैं अतीत का शब्दहीन सुख 
तो कभी कोई आर्तनाद या विषाद -पुराण   

जहाँ बीता हुआ वक़्त लौटकर नहीं आता 
मौसम बेहया है, लौटकर आया है फिर 
सजने लगी हैं ओस की नरम-नरम बूँदें फिर 
कुछ घास की नोंक पर तो कुछ पलकों पर मेरी 

-------सुलोचना वर्मा-----------

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