Wednesday, May 25, 2016

चापाकल

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मुझे पुकारते हैं बीत गए बचपन के वो दिन 
जब चापाकल के पानी से बुझती थी हमारी प्यास 
दर्ज है उस चापाकल की जगत में दिखते पीलेपन में 
पानी में मौजूद लौह तत्व आज भी बनकर संताप  

मेरे बेहद करीब है पीले रंग का यह पुरातन दुःख 
कि मेरी शिराओं में दौड़ते रक्त में यही पीलापन है मौजूद 
जिससे धड़क रहा है मेरा हृदय और चल रही है मेरी श्वास 
कुछ तकलीफें जिंदा रहती हैं इसी तरह हमेशा, आसपास 

---सुलोचना वर्मा----


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