Saturday, January 20, 2018

अद्वैत

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अलमारी से लगभग सभी चीजें निकाली जा चुकी थी| अलमारी के ताखों पर अब बस रंगीन कागज़ बिछा था| जैसे ही उसने सबसे ऊपरवाले ताख पर बिछे रंगीन कागज को हटाया, उसे एक लिफ़ाफ़ा नजर आया | उसने लिफ़ाफ़ा खोलकर देखा और उसमें रखे कागज़ के पन्नों को पढते ही वह अवसाद की किसी गहरी खाई में गिर गया | इतने सालों तक जिस माता-पिता पर अभिमान करता रहा, वह तो उसके अपने माता-पिता ही नहीं थे| उसे किसी अनाथालय से गोद लिया गया था| एक साथ न जाने कितने प्रश्न उभर आए उसके जेहन में | थोड़ी देर बाद खुद को संभालता हुआ वह उठ खड़ा हुआ, जेब से माचिस निकालकर पहले सिगरेट सुलगाया और फिर जलती हुई उस तीली को अनाथालय के उस कागज़ पर गिरा दिया| उसने तय किया कि वह इस बाबत अपने किसी रिश्तेदार से कुछ नहीं पूछेगा| पूछता भी तो क्या ! उसे तो यह भी नहीं पता कि यह सच्चाई किसी और को पता भी है या नहीं| यहाँ तक कि उसने यह खबर माधुरी तक से भी साझा करने की जरुरत नहीं समझी| 

माधुरी उस ट्रेनिंग सेंटर की रिसेप्शनिस्ट थी जहाँ अद्वैत पढ़ाता था| उसी ट्रेनिंग सेंटर में सुजाता पढ़ने आती थी जिससे अद्वैत प्रेम कर बैठा था |अभी सुजाता की पढ़ाई ख़त्म होने में वक़्त तो था पर सुजाता के घरवाले उसके लिए वर तलाशने का काम शुरू कर चुके थे| आगे कोई अनहोनी न हो, यही सोचकर एकदिन अद्वैत और सुजाता ने अदालत जाकर विवाह कर लिया| माधुरी के साथ-साथ अद्वैत के घरवाले इस विवाह के साक्षी बने| तय हुआ कि जब सुजाता की पढाई ख़त्म हो जायेगी, तब इस शादी का राज़ सुजाता के घरवालों के सामने खोला जाएगा| अदालत में हुई शादी के बाद सुजाता अपने घर लौट गई और अद्वैत अपने घरवालों के साथ अपने घर| अगले सात-आठ महीनों तक सब ठीकठाक चलता रहा| सुजाता ट्रेनिंग सेंटर आती और शाम में अद्वैत के साथ थोड़ा वक़्त बीताकर अपने घर लौट जाती| फिर एक दिन वही हुआ जिसका डर था| सुजाता के घरवालों ने उसकी शादी तय कर दी| कोई चारा न देख, सुजाता ने घरवालों से अपनी शादी की बात बता दी | उसके घरवालों ने वकील से विमर्श किया, तलाक के कागज़ बनावाकर उस पर जबरन सुजाता से दस्तखत करवाया और फिर कुछ परिजनों के साथ अद्वैत के घर जा पहुँचे| अद्वैत प्यार के लिए मर सकता था और मार भी सकता था ; पर तलाक के कागज़ पर सुजाता के दस्तखत देखने के बाद वह  टूटकर बिखर गया| उसने भी चुपचाप उस कागज़ पर दस्तखत कर दिया और अवसाद के चादर ओढ़कर सो गया| अब वह न किसी से कुछ कहता और न किसी के कुछ पूछने पर जवाब ही देता| उसे इस अवसाद से बाहर निकालने में सबसे ज्यादा मदद की उसके चचेरे भाई  अनुकल्प ने| अनुकल्प हर शाम अद्वैत  को लेने ट्रेनिंग सेंटर आ जाता और फिर उसे लेकर कभी सिनेमा तो कभी थियेटर पहुँच जाता| जब अद्वैत  कहीं जाने से मना कर देता, तो ट्रेनिंग सेंटर के सामने वाले पार्क में बैठकर दोनों देर तक बातें करते| कभी अद्वैत के क्लास ख़त्म होने  में समय लगता, तो अनुकल्प रिसेप्शन पर बैठकर उसका इन्तजार करता| धीरे-धीरे माधुरी से उसकी दोस्ती हो गई और फिर कुछ महीनों में दोस्ती प्यार में तब्दील हो गई| इसी दौरान अद्वैत को पता चला कि नशे की लत ने किस कदर अनुकल्प को अपने गिरफ्त में ले लिया है| उसने कई बार अनुकल्प को समझाया कि सिगरेट तक तो ठीक है पर स्मैक और हेरोइन से उसे दूर रहना चाहिए; पर नशे की लत एकबार लग जाए, तो इतना आसान कहाँ होता है इससे पीछा छुड़ाना| 

देखते -देखते दो साल बीत गए| अद्वैत ने तय कर लिया था कि वह फिर दूसरी शादी कभी नहीं करेगा| वह सुजाता को भुला ही नहीं पाया था| अब अनुकल्प ट्रेनिंग सेंटर आता और सिगरेट पीने के बहाने थोड़ी देर अद्वैत के साथ सामने वाले पार्क में बिताने के बाद माधुरी के साथ घूमने निकल जाता| सावन का महीना रिमझिम के तराने लेकर आ चूका था| माधुरी और अनुकल्प घर लौटते हुए कई दिनों से बारिश में भींग रहे थे| फिर अनुकल्प एकदिन बीमार पड़ा| बुखार के साथ पेट दर्द की शिकायत थी| मोबाईल फोन उन दिनों भारत नहीं पहुंचा था| अद्वैत ने जब माधुरी को अनुकल्प की तबियत खराब होने की खबर दी, तो माधुरी ने बताया कि उसे भी हल्का बुखार रह रहा है और उल्टियाँ हो रही हैं | शायद बारिश में भींगने की वज़ह से ऐसा कुछ हुआ हो, ऐसा ही अंदेशा था दोनों का |

पहले अनुकल्प के घर के लोगों को यह मौसमी बुखार लगा जो अमूमन पेट दर्द के साथ ही आता है, पर जब उसे साँस लेने में तकलीफ होने लगी और स्थिति बद से बदतर होती चली गई, उसे शहर के सबसे बड़े अस्पताल में भर्ती करवाया गया|  डॉक्टर ने रक्त जाँच की रिपोर्ट के बाद ही बता दिया कि नशे की लत उसे अपना ग्रास बना चुकी है| तेरह दिनों तक चली जिंदगी और मौत के बीच छिड़ी जंग में जिंदगी हार गई | 

अद्वैत फिर से अवसाद में चला गया| एक अनुकल्प ही तो था जो उसके इतने करीब था| वह भाई कम, दोस्त ज्यादा था| अनुकल्प की मौत के बाद वह पंद्रह दिनों तक ट्रेनिंग सेंटर नहीं गया| फिर एक दिन घरवालों ने उसे समझाकर भेजा| 

ट्रेनिंग सेंटर पहुँचते ही उसका सामना माधुरी से हुआ| वह माधुरी से आँखें चुराकर सीधे क्लास रूम में प्रवेश कर जाना चाहता था पर माधुरी ने आवाज देकर पहले उसे रोका और फिर एक कठिन सवाल अद्वैत की ओर उछाला "अनुकल्प अब कैसा है"

पहले तो अद्वैत किंकर्तव्यविमूढ़ हो मूक खड़ा रहा, फिर खुद को संभालता हुआ माधुरी को क्लास के बाद पार्क में मिलने के लिए कहा| अगले दो घंटों तक तरह-तरह के कयास लगाकर माधुरी का दिमाग सुन्न पड़ चुका था कि तभी अद्वैत को क्लास से बाहर आता देख वह पार्क के लिए निकल पड़ी| 

"अनुकल्प कैसा है और आपने मुझे पार्क में क्यूँ बुलाया" माधुरी का धैर्य जवाब दे चूका था|

"अनुकल्प को सभी परेशानियों से मुक्ति मिल गयी | वह अब इस दुनिया में नहीं रहा" अद्वैत ने माधुरी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

माधुरी पिछले दो घंटों से वैसे ही कशमकश में थी और अचानक से जो कुछ भी उसने सुना, उसे सह पाने की शक्ति शायद उसमें नहीं बची थी| वह बेहोश हो गयी| अद्वैत घबराकर पार्क में लगे फव्वारे से पानी लाकर माधुरी के चेहरे पर छिड़कने लगा|  थोड़ी देर बाद जब माधुरी को होश आया तो वह बुदबुदा रही थी "मुझे भी अब मर जाना होगा...और कोई चारा नहीं.."

"संभालो खुद को माधुरी| मुझे पता है तुम पर क्या गुजर रही है, पर इस सच को स्वीकार करना ही होगा" अद्वैत ने समझाते हुए कहा |

"आपको कुछ नहीं पता....कुछ भी नहीं " माधुरी विलाप किए जा रही थी|

"क्या बात है...क्या नहीं पता.. " अद्वैत ने पुछा |

"मैं माँ बनने वाली हूँ, अनुकल्प को बता भी नहीं पायी..." माधुरी बेतहाशा रो रही थी| 

यह सुनते ही पहले तो अद्वैत के पैरों तले की जमीन खिसक गयी, फिर उसके मुँह से अचानक निकला "अब"?

कुछ प्रश्नों के कोई जवाब नहीं होते | यह प्रश्न भी ऐसा ही था | माधुरी निरुत्तर बैठी रही | 

थोड़ा ठहर कर अद्वैत ने कहा "चलो"

"कहाँ" माधुरी दिशाहारा थी|

"वहाँ, जहाँ तुम और अनुकल्प की अमानत सुरक्षित रह सको"  कहता हुआ अद्वैत आगे बढ़ने लगा |

"पर ऐसी कौन सी जगह होगी" माधुरी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था |

"मेरा घर" कहता हुआ अद्वैत रुक गया |

"ऐसा कैसे हो सकता है? लोग क्या कहेंगे? आप क्या जवाब देंगे?" माधुरी ने सवालों की लड़ी लगा दी थी|

"परेशान होने की जरुरत नहीं| हम आज ही शादी करेंगे और फिर तुम मेरे घर रहने आ जाओगी" अद्वैत के चेहरे पर आत्मविश्वास था|

"पर..."

माधुरी वाक्य पूरा कर पाती, उसके पहले ही अद्वैत ने कहा "चिंता मत करो | यह सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए होगा | तुम हमेशा अनुकल्प की अमानत ही रहोगी और बच्चे के आ जाने के बाद मुझे भी अनुकल्प नए दोस्त के रूप में मिल जाएगा "

माधुरी अद्वैत के साथ चल पड़ी और फिर उसके साथ रहने लगी | अद्वैत को रिश्तेदारों के ताने सुनने पड़े, पर वह चुप रहा | कुछ समय बाद वह माधुरी और बच्चे को लेकर दुसरे शहर चला गया | नए शहर में माधुरी ने भी अपने लिए एक नौकरी का इंतजाम कर लिया | बच्चे के स्कूल में पिता के नाम की जगह अद्वैत ने अपना नाम लिखा | माधुरी नौकरी और बच्चे में व्यस्त हो गयी और अद्वैत ने भी उन दोनों की देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़ी |  महीने दर महीने और साल दर साल बीतते रहे | अद्वैत ने खूब तरक्की की, गाड़ी और घर के अतिरिक्त भी सुख -सुविधा के तमाम साधनों का इंतजाम किया | नहीं खरीद पाया, तो अपने लिए प्यार | खरीदता भी कैसे ! प्यार को भी भला रुपया-पैसों से खरीदा जा सकता है !! वह घर में सामान भरता रहा और उसके मन का महल खाली ही रहा | उसने खुद को दफ्तर के कामों में बेतरह व्यस्त कर लिया था |

वह जून की एक दोपहर थी जब कई सालों बाद अद्वैत की मुलाक़ात उसके पिछले दफ्तर में काम करने वाली शालिनी कौशल से हुई | 

"अरे! कैसी हो शालिनी? पूरे नौ साल हो गए, अब भी वैसी ही दिखती हो" अद्वैत का चेहरा खिल उठा था 

शालिनी ने आदतन मुस्कुरा कर नजरें झुका लीं थी | 

"चलो, किसी कॉफ़ी शॉप पर बैठते हैं" अद्वैत ने कहा और कॉफ़ी शॉप की ओर मुड़ गया |

दोनों कॉफ़ी शॉप गए, दो कैपेचीनो आर्डर किया और एक-दुसरे का हाल समाचार पूछा | बातों ही बातों में शालिनी ने बताया कि दिल की बायपास सर्जरी के वक्त उसने यह सोचकर इस्तीफ़ा दे दिया था कि उसका पति कौशल उसको और घर को, दोनों को संभाल लेगा , पर अब घर की स्थिति बद से बदतर होती देख उसने नौकरी का निर्णय लिया और अब वह नौकरी की तलाश कर रही थी| अद्वैत ने शालिनी से कहा कि उसे आराम करना चाहिए और वह कौशल के लायक कुछ काम का बन्दोवस्त कर सकता है| शालिनी ने एक अन्तराल के बाद बताया कि उसने गलत इन्सान को अपना जीवन साथी बना लिया था जिसका खामियाजा वह आज तक भुगत रही है| वह नशे की लत का शिकार है, घर पर ही रहता है और आए दिन उससे मारपीट करता रहता है| 

"ओह ! पुलिस की सहायता क्यूँ नहीं लेती" अद्वैत ने जल्दबाजी में कहा |

"कोशिश की थी, कुछ नहीं हुआ | हर ओर से मुझे ही ज्ञान मिला | खैर, छोड़िये इन बातों को | आपके दफ्तर में मेरे लायक कोई नौकरी हो तो ..." शालिनी ने कातर होकर कहा |

"जरूर | जो कुछ मुझसे बन पड़ेगा, करूँगा | " अद्वैत ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा |

थोड़ी देर तक दोनों चुपचाप कॉफ़ी पीते रहे और फिर अद्वैत ने मौन तोड़ते हुए दार्शनिक अंदाज में कहा "कितनी अजीब बात है न कि इतने सालों से परिचित हैं हम और एक-दुसरे के बारे में कुछ भी नहीं जानते | एक ही दफ्तर में आजू-बाजु बैठकर सुबह से शाम न जाने कितनी बातें की होंगी हमने, पर एक-दुसरे के जीवन का यह रंग हम देख ही न पाए | एक बात है जो मुझे पिछले कुछ महीनों से भीतर ही भीतर खाए जा रही है| किसी से बता सकूँ, ऐसा कोई इन्सान जिंदगी में नहीं है| आज तुम्हारे जीवन के एक नए पहलू से वाकिफ़ हुआ, तो लग रहा है कि अपने जीवन का काला सच तुम्हें बताकर इस बोझ से मुक्ति पा लूँ | 

"कैसा सच !" शालिनी अवाक् थी |

अद्वैत ने उसे बताया कि किस तरह पिता की मृत्यु के बाद उसे अपने अनाथ होने का पता चला था और वह टूट गया था | उसने अपने और माधुरी के बीच का सच भी बताया| 

"मैं काफी हल्का महसूस कर रहा हूँ अब" अद्वैत ने दीर्घ निश्वास लेते हुए कहा |

कुछ देर बाद दोनों अपने-अपने घर लौट गए |

अब अद्वैत फोन के मार्फत शालिनी का हाल समाचार लेता रहता था | कई जगह शालिनी की नौकरी के लिए उसने बात भी की | फिर एक दिन उसने शालिनी से फोन पर ही कहा "हमारे दुःख एक जैसे हैं| तुम अपने संसार में अकेली हो और मैं अपने संसार में | इतने सालों के बाद इस तरह अचानक मिलना, ऊपरवाले की साजिश भी तो हो सकती है! "

"मैं कुछ समझी नहीं" शालिनी शायद समझ ही गयी थी |

"मैं तुम्हें तब से पसंद करता हूँ जबसे तुम हमारे पिछले दफ्तर नौकरी के लिए पहले दिन आयी थी| संयोग था कि हम आस-पास ही बैठे और खूब बातें भी की| तुम शादीशुदा थी, तो इसलिए कभी मन की बात तुमसे कह नहीं पाया | अब जब जान गया हूँ कि तुम किसी शादी में नहीं, बल्कि धोखे में जी रही हो, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम एक हो जाएँ और हम दोनों की समस्या ही खत्म हो जाए| तुम्हें आराम चाहिए और मुझे तुम्हारा साथ | क्या कहती हो?" अद्वैत की आवाज में आत्मविश्वास था |

"तो माधुरी !!" शालिनी को न जाने क्यूँ अद्वैत का ऐसा पूछना अटपटा लगा |

"वो मुझे तलाक दे देगी | अब उसका बच्चा बड़ा हो गया है| नौकरी भी पहले से बेहतर है| उसे मेरी जरुरत नहीं| तुम बताओ" अद्वैत जैसे सब सोचकर ही बैठा था |

"मैं एक विचित्र सी मनोदशा से होकर गुजर रही हूँ और ऐसी मनोदशा में कुछ भी कहना ठीक न होगा" कहते हुए शालिनी ने फोन काट दिया |

शालिनी ने अद्वैत से बात करना बंद कर दिया | शालिनी की परिस्थितियों से जो भी अवगत होता, वह अपनी कोई दुखभरी कहानी सुनाकर उसके करीब आने की कोशिश करता और अब अद्वैत की बातें भी शालिनी को ठीक उन्हीं की तरह लग रही थी | जब भी वह फोन करता, बस काम की बात कर वह फोन रख देती | अद्वैत भी उससे आगे कुछ नहीं कहता | फिर एकदिन अद्वैत की मेहनत ने रंग दिखाया और शालिनी को नौकरी का बुलावा आया | दो इंटरव्यू और नौकरी पक्की | 
शालिनी ने खुश होकर अपनी ख़ास सहेली और राजदार सोनाली को फोन लगाया तो उसने कहा "अद्वैत सही इन्सान है तुम्हारे लिए |"

शालिनी अब नौकरी में व्यस्त हो गयी थी, पर अद्वैत के प्रति वो सम्मान जगा था उसके मन में, वह अद्वैत को अक्सर फोन कर लेती और उसका हाल-समाचार पूछ लेती | इसी बीच बातों ही बातों में अद्वैत ने शालिनी से कहा था कि वह समझ गया है कि वह उसके दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं है|  शालिनी को जब भी जरूरत पड़ती, अद्वैत हाज़िर हो जाता | महीने में एक -दो बार मिलना भी हो जाता | शालिनी उस पर भरोसा करने लगी थी | अद्वैत शालिनी के बदले हुए व्यवहार देखकर कभी - कभार पुराना सवाल दाग दिया करता था | शालिनी के असमंजस को देख कहता कि उसे कोई जल्दी नहीं है, वह आजन्म इन्तजार कर सकता है|

मार्च की एक दोपहर शालिनी ने अद्वैत को बताया कि कौशल उसे तलाक देने को राजी हो गया है| अद्वैत खुश हुआ | अगले एक साल तक दोनों दोस्त की तरह ही मिलते रहे | एक दिन शालिनी ने उसे बताया कि तलाक की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और वह अब आज़ाद है| सुनते ही अद्वैत ने पूछा " तो अब शादी ?"

"हम्म..."मुस्कुराते हुए शालिनी ने कहा |

"तो मैं भी तलाक की अर्जी डाल दूँ अब" अद्वैत ने आत्मविश्वास से कहा |

"अरे नहीं | मैं तुम्हें कबसे बताना चाहती थी, पर तुमने मेरे लिए इतना कुछ किया कि जब भी बताना चाहा तुम्हारे प्यार को देखकर चुप हो गयी | मैं तुम्हें दुखी नहीं करना चाहती थी | दो साल पहले एक कार्यक्रम में मेरी मुलाक़ात नवोदित से हुई थी | वो तलाकशुदा है और हम काफी हद तक एक जैसे हैं| दो-चार मुलाकातों के बाद ही हम दोनों को लगा था कि हमें एक-दुसरे का हाथ थाम लेना चाहिए | कौशल तलाक के लिए नहीं मान रहा था | अब जाकर सब खत्म हुआ | नवोदित ने अगले महीने की तीन तारीख का दिन तय किया है| समझ सकती हूँ तुम्हें बहुत बुरा लग रहा होगा, पर दिल का मामला दिल ही निपट लेता है| कमबख्त नाम का ही हमारा होता है| वहाँ कौन है, हम यह तब जान पाते हैं जब अगला वहाँ सेंध लगाकर फ़ैल चूका होता है| तुम समझ रहे हो न ... आई एम् सॉरी" शालिनी सफाई देती रही |

"अरे वाह ! चलो पार्टी करते हैं| यह बात बता सकती थी तुम पहले भी | उसको भी बुलाओ | यह तो बहुत खुशी की बात है" अद्वैत ने मुस्कुराते हुए कहा |

"तुम्हें सचमुच बुरा नहीं लगा ?"शालिनी अद्वैत के लिए चिंतित थी |

"क्यों लगेगा बुरा भला ? इसलिये कि तुम मेरी न हो सकी ? इतना ही तो चाहता हूँ तुम्हारे लिए कि तुम खुश रहो | क्या फर्क पड़ता है कि खुशी का जरिया मैं बनूँ या नवोदित ? जिंदगी ने मुझे समझा दिया है कि प्रेम में जिसे चाहते हैं, उससे कुछ नहीं चाहते | यु सी, नियति ने मेरे हिस्से महान बनना लिखा है| पर एक बात कान खोलकर सुन लो | अब अगर नवोदित ने तुम्हें किसी प्रकार का दुःख दिया, तो मैं उसे तुम्हारे घर आकर मारूँगा " अद्वैत ने हँसते हुए कहा |

शालिनी की आँख भर आयी | उसने अद्वैत का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा " तुम नाम से ही नहीं, काम से भी अद्वैत हो| अपने लिए कभी सोचते ही नहीं| हमेशा दूसरों के लिए ही.."

"एक जरूरी काम आ गया है| मुझे जाना होगा " अद्वैत ने शालिनी की हाथों से अपना हाथ खींचते हुए कहा और पलट कर जाने लगा  |

"कभी कोई जरुरत पड़ी या मैंने मिलने बुलाया तो आओगे" शालिनी इतना अच्छा दोस्त नहीं खोना चाहती थी |

"मैं मनुष्यों में गधा हूँ और गधों में गर्धवराज | जब मनभर बोझ तैयार हो जाए, आवाज देना " अद्वैत ने बिना पलटे ही जवाब दिया और आगे बढ़ गया | आँखों के आँसुओं को छुपा लेना बेहद जरूरी था उस वक़्त | 

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